मुक्केबाजी से बदल रही तकदीर
२० जुलाई २०२१केन्या की राजधानी नैरोबी की मलिन बस्तियों के सामुदायिक केंद्र के बाहर से गुजरने वाले लोगों का ध्यान चमड़े के दस्तानों की तेज आवाजें आकर्षित करती हैं. उत्तरी करियोबंगी में स्थित सामुदायिक केंद्र में महिलाएं और लड़कियां मुक्केबाजी के दांव-पेंच सीख रही हैं. इनके कोच का नाम अल्फ्रेड एनालो अंजेरे है, जिन्होंने बॉक्सगर्ल्स केन्या की स्थापनी की है.
14 सालों में तीन हजार से अधिक लड़कियों और महिलाओं ने इस केंद्र में खेल को खेलना सिखा है, केंद्र की जर्जर दीवारों को कार्टून कैरेक्टर एस्टेरिक्स की एक फीकी तस्वीर और बॉक्सिंग दस्ताने सजाती है. बॉक्सिंग सीखने वाली सभी महिलाओं की कहानी करीब-करीब एक जैसी ही है. वे अपने इलाकों की कठोर परिस्थितियों से निपटना चाहती हैं और उस गरीबी से लड़ना चाहती हैं जो उनके जीवना का आम हिस्सा है.
प्रोफेशनल बॉक्सर बन चुकी 34 साल की सारा एचियांग कहती हैं, "एक दिन, जब मैं जॉगिंग करने जा रही थी, एक आदमी कहीं से आया और मुझे थप्पड़ मारकर भाग गया. इसलिए मैं वापस जिम जाने लगी और कौशल हासिल कर उस शख्स से बदला लेना चाहती थी." बॉक्सगर्ल्स केन्या में अधिकांश के लिए बॉक्सिंग खाली समय में खेलने वाला खेल है, लेकिन कई लड़कियां इस खेल को अपनाकर बतौर पेशेवर खिलाड़ी बन गई हैं.
स्लम की लड़कियों को सलाम
कुछ लड़कियां ने ओलंपिक में भी जगह बनाई है जैसे एलिजाबेथ एंडिएगो, जिन्होंने 2012 में लंदन खेलों में भाग लिया था. क्रिस्टीन ओंगारे इस साल टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा ले रही हैं. अंजेरे जिन्हें "पादरी" कहकर भी बुलाया जाता है, कहते हैं कि वे मुक्केबाजी को एक बदले के रूप में नहीं देखना चाहते. अंजेरे कहते हैं, "मुक्केबाजी का उद्देश्य एक टूल बनाना है...यह लड़कियों को सशक्त बनाने का साधन और यह उनकी आवाज उठाने के लिए है."
आर्थिक आजादी भी चाहिए
अंजेरे खुद करियोबंगी के मूल निवासी हैं. वे क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं के साथ शारीरिक, मानसिक शोषण समेत बलात्कार जैसी समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. अक्सर, लड़कियों को गरीबी, गर्भावस्था या कम उम्र में शादी के कारण स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है. वे कहते हैं कि महिलाएं भी कमजोर होती हैं क्योंकि वे अक्सर आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होती हैं.
2007 में केन्या में चुनाव के बाद की खूनी हिंसा में जब महिलाओं और लड़कियों को अक्सर निशाना बनाया गया तो उन्होंने इस पर कार्रवाई करने का फैसला किया और बॉक्सगर्ल्स केन्या की स्थापना की. 22 साल की एमिली जुमा कहती हैं, "बिना आत्मरक्षा के इन मोहल्लों में बड़ा होना थोड़ा चुनौतीपूर्ण है." पुरुष प्रधान खेल में वो एक उभरती हुई प्रतिभा हैं.
वे कहती हैं, "कई लोग लड़कियों को सेक्स ऑबेज्केट की तरह देखते हैं." जुमा कहती हैं लड़कियां हमेशा हमला के लिए आसान शिकार होती हैं. अंजेरे की नजरें अब क्रिस्टीन ओंगारे पर टिकी हैं, जिनको उन्होंने 2008 में बॉक्सिंग से मुलाकात करवाई थी, इस साल वे टोक्यो में अपनी किस्मत आजमा रही हैं. अंजेरे कहते हैं, "अगर लड़कियां मुक्केबाजी में सफल होती हैं तो हम खुश होंगे और गर्व महसूस करेंगे."
एए/सीके (एएफपी)