मानसून की बारिश और बैलों की दौड़
गाय और बैलों की रेस पश्चिम बंगाल के कुछ गांवों में आयोजित की जाती है. मानसून के मौसम में किसान भूमि उपजाऊ बनाने के लिए इस तरह की रेस कराते हैं.
खेत में बैलों की दौड़
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना के गांव में पिछले 29 सालों से बैलों की दौड़ होती आ रही है. दौड़ के अवसर पर पूरे गांव में उत्सव जैसा नजारा होता है.
बैलों की रेस
बंगाल के कई इलाकों में इस तरह की रेस होती है. हर साल यहां धान की खेती शुरू होने से पहले की बैलों की रेस की जाती है.
मानसून आने के बाद
पश्चिम बंगाल के गांवों में जुलाई से अक्टूबर के बीच इस तरह का मंजर दिखाई देना कोई अजीब बात नहीं. गाय बैलों की दौड़ का आयोजन मानसून की खुशी मनाने का एक तरीका है.
रेस के फायदे
यह रेस खेती योग्य भूमि में होती है. लोगों का मानना है कि बैल व गाय दौड़ाने से फसल बेहतर होगी. इसलिए इस उत्सव की शुरुआत मानसून से होती है.
सिर्फ दौड़ने के लिए
इस दौड़ में भाग लेने वाले जानवरों को मालिकों द्वारा विशेष रूप से तैयार किया जाता है. बैलों को केवल दौड़ने के लिए पाला जाता है.
किसान और बैल
रेस के दौरान जितनी तेजी से बैल भागते हैं, उतनी ही तेजी से किसान भी भागते हैं.
रेस की दिशा
बैलों के साथ किसान इसलिए भागते हैं ताकि बैल अपनी दिशा न बदल लें और कहीं रेस से बाहर न हो जाए.
परंपरा बन गई दौड़
गांव के लोगों का कहना है कि पहली बारिश के बाद मिट्टी की ऊपरी परत खुरचने के लिए इस दौड़ का आयोजन किया जाता था, जो कि अब एक परंपरा बन गई है.
दांव लगाते लोग
बैलों की दौड़ को देखने के लिए खासी भीड़ जुटती है और लोग जानवरों पर दांव लगाते हैं.
रोमांचक पल
दर्शक बैलों की रोमांचक दौड़ को कैमरे में कैद करने से नहीं चूकते हैं.