क्या दुनिया को बदल सकती है सर्कुलर इकॉनमी?
२६ नवम्बर २०२१महासागर में फैले मलबे के द्वीप हों या कुवैत के रेगिस्तान में चार करोड़ घिसे टायरों का जखीरा- अंतरिक्ष से सब दिखता है. दुनिया का दम घोंटते ऐसे निशान हर कहीं मिल जाएंगे. जलवायु, पारिस्थितिकीय तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर इसके विनाशकारी नतीजे होते हैं.
पेशे से डिजाइनर और संवहनीयता यानी टिकाऊ व्यवस्था की विशेषज्ञ लैला अकारोग्लु कहती हैं कि हम लोग फिलहाल एक रेखीय यानी लीनियर आर्थिक व्यवस्था में रहते हैं "जिसके तहत कच्चा माल निकाला जाता है, उसे ठोकपीट कर या प्रोसेसिंग से उपयोगी सामान बनाए जाते हैं और इस्तेमाल के बाद उन्हें अंत में किसी कचरे के ठिकाने में डाल दिया जाता है या रिसाइकिल कर दिया जाता है या प्रकृति में ही कहीं फेंक दिया जाता है.”
इसके विपरीत, एक चक्रीय अर्थव्यवस्था यथासंभव कचराविहीन प्रणाली निर्मित करती है जिसमें नये उत्पाद बनाने में संसाधनों का दोबारा उपयोग किया जाता है.
एक उत्पाद का जीवन चक्र
ये हासिल करने के लिए पूरी तरह से पुनर्विचार की जरूरत है कि नयी रूपरेखा या नयी अभिकल्पना से किसी उत्पाद का जीवन चक्र कैसे बढ़ाया जा सकता है. मिसाल के लिए कॉफी के डिस्पोजेबल कपों को लीजिएः गत्ते के बने होते हैं लेकिन उनमें प्लास्टिक की परत लगी होती है. जिससे उन्हें रिसाइकिल करना चुनौती भरा ही नहीं बाजदफा नामुमकिन हो जाता है.
और बात आती है इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की तो ये ज्यादा सीधा, सहज और सस्ता तरीका है कि पुराने सामान की मरम्मत या उसका कोई पार्ट बदलने के बजाय पूरा नया ही सामान खरीद लिया जाए. चक्रीय अर्थव्यवस्था ये सुनिश्चित करती है कि ये तमाम बातें, समूचे प्रारूप और उत्पादन प्रक्रिया में ही निहित हों.
सर्कुलर इकोनमी का मतलब सिर्फ रिसाइक्लिंग नहीं
करीब एक अरब घिसे टायर हर साल फेंक दिए जाते हैं क्योंकि रबर कच्चे तेल का बना होता है जिसे रिसाइकिल करना बहुत कठिन है. टायरों को अक्सर जला दिया जाता है और वे हल्की क्वॉलिटी वाले रबर मैट बनाने में काम आते हैं. लेकिन चक्रीय अर्थव्यवस्था का लक्ष्य, उत्पाद के मूल्य को संरक्षित रखकर उसे घटिया सामग्री में तब्दील होने से बचाना है.
जर्मन कंपनी पाइरुम इनोवेशंस ने पिछले कुछ वर्ष, एक ऐसी प्रौद्योगिकी को विकसित करने में लगाए हैं जो इस्तेमाल हुए टायरों से करीब करीब पूरा तेल खींच लेती है. कंपनी का कहना है कि इस प्रक्रिया की मांग अब बढ़ने लगी है. पाइरुम के सह-संस्थापक पास्कल क्लाइन कहते हैं, "दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां से हमारे पास इस बारे में पूछताछ न आई हो.” कंपनी का इरादा 2025 तक यूरोप में 50 संयंत्र निर्मित कर रसायन की बड़ी कंपनी बीएएसएफ को एक लाख टन तेल आपूर्ति करने का है.
प्रौद्योगिकी की भूमिका
नौ करोड़ बीस लाख टन पुराना कपड़ा हर साल कचरा बन जाता है, इसमे से सिर्फ एक प्रतिशत ही रिसाइकिल होता है. इसके अलावा फैशन उद्योग में रिसाइकिल होने वाले उत्पाद अक्सर अपनी गुणवत्ता या मूल्य गंवा देते हैं.
कपड़ों की रिसाइक्लिंग में एक खास पहलू अनदेखा रह जाता है और ये वो विस्तृत सूचना है जो इस्तेमाल सामग्री के बारे में होती है. इसीलिए बर्लिन स्थित सर्कुलर डॉट फैशन ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है जो स्वतः ही कपड़े के रेशों को पहचानकर उन्हें अलग कर देती है और उन्हें एक "सर्कुलर आईडी” यानी "चक्रीय शिनाख्त” मुहैया कराती है. कंपनी के सह-संस्थापक मारियो मालसाखेर कहते हैं, "इससे हमें फौरन ये पता लगाने में आसानी हो जाती है कि किसी उत्पाद का दोबारा इस्तेमाल जरूरी है या कि उसकी रिसाइक्लिंग.”
सर्कुलर आईडी की अवधारणा को यूरोपीय स्तर पर "प्रॉडक्ट पासपोर्ट” के रूप में जाना जाता है. संसाधन बचाऊ अर्थव्यवस्था के लिए यूरोपीय संघ की चक्रीय अर्थव्यवस्था कार्ययोजना का, ये एक अनिवार्य पहलू है. पहचान के लेबल में उत्पाद के स्रोत, संयोजन, मरम्मत के निर्देश और मियाद की जानकारी रहती है.
चक्रीय अर्थव्यवस्था अचूक नहीं
येल यूनिवर्सिटी में चक्रीय अर्थव्यवस्था पर हुए एक अध्ययन में इसका "उल्टा असर” होने की आशंका से भी आगाह कराया गया है. यानी ज्यादा सही और प्रभावशाली ढंग से तैयार सस्ते उत्पादों की, कम के बजाय भारी खपत भी होने लग सकती है.
रिसाइक्लिंग में खास बात ये है कि उसमें निष्कर्षण और निस्तारण की अपेक्षा कम संसाधनों की खपत होती है. वरना वो कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने की बजाय उसे बढ़ाने लगता है. ऐसा न होने देने के लिए जानकारों का कहना है कि शोध जारी रहने चाहिए और चक्रीय पद्धतियों को सावधानी से लागू करना चाहिए.
इस सब के बावजूद चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव अभी शुरुआती अवस्थाओं में है. सर्कुलर इकॉनमी गैप रिपोर्ट के मुताबिक आज वैश्विक अर्थव्यवस्था के नौ प्रतिशत से भी कम हिस्से में चक्रीय सिद्धांतों पर अमल होता दिखाई देता है. संसाधानों का पूरी रफ्तार से दोहन किया जा रहा है, खपत बढ़ रही है और उत्पादों की मियाद पूरी होने पर उनके निस्तारण के बारे में बहुत कम प्रगति हुई है जबकि शोध बताता है कि इन चुनौतियों से निपटने के लाभ महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं.
विश्व आर्थिक मंच के मुताबिक चक्रीय अर्थव्यवस्था का रुख करने से सालाना स्तर पर वैश्विक वित्तीय लाभ साढ़े चार खरब डॉलर का होगा. औलन मैकआर्थर फाउंडेशन का शोध बताता है कि उससे ग्रीन हाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन में 20 प्रतिशत की कटौती भी आ सकती है. इस तरह जलवायु संकट से निपटने में ये अहम औजार की तरह काम करती है.