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समानताविश्व

क्या पुरुष भी नारीवादी हो सकते हैं?

रितिका
२६ मार्च २०२४

नारीवादी विचारधारा को पुरुषों की तरफ से एक विरोध का सामना करना पड़ा है. ऐसे में यह सवाल आज भी बरकरार है कि क्या पुरुष भी नारीवादी हो सकते हैं?

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इटली में महिलाओं के साथ हिंसा के विरोध में महिला प्रदर्शनकारियों का एक मार्च. तस्वीर सितंबर 2023 की है.
अपने विशेषाधिकारों को पहचाने बिना, अपने अंदर के स्त्रीद्वेष को दूर किए बगैर एक पुरुष नारीवादी या नारीवाद का समर्थक नहीं बन सकता. तस्वीर: Mauro Ujetto/NurPhoto/picture alliance

नारीवादी आंदोलनों की शुरुआत से महिलाएं इसके केंद्र में रही हैं. चाहे सड़कों पर आकर प्रदर्शन करना हो, समान अधिकारों से जुड़े कानून पास करवाने हों, महिलाओं ने ही इसकी अगुआई की. लेकिन नारीवादी आंदोलन के भीतर हमेशा यह सवाल उठता रहा है कि इसमें पुरुषों की भूमिका क्या हो? चूंकि नारीवादी विचारधारा को पुरुषों की तरफ से हमेशा ही एक विरोध का सामना करना पड़ा है, इसलिए यह सवाल आज भी बरकरार है कि क्या पुरुष भी नारीवादी हो सकते हैं?

नारीवाद को सीधे तौर पर हमेशा से सिर्फ महिलाओं के द्वारा और महिलाओं के लिए चलाए गए आंदोलन के रूप में देखा गया है. इसलिए इस विचारधारा के बारे में यह मिथक बेहद मजबूत हो गया है कि नारीवाद का मकसद पुरुषों की सत्ता हटाकर महिलाओं की सत्ता स्थापित करना है. यह भी एक वजह है कि शायद पुरुष भी नारीवादी होने के टैग से बचते रहे हैं.

इराक में दीवार पर बना एक ग्रैफिटी आर्ट, जिसमें अरबी भाषा में नारा लिखा है, "ये हैं हमारी महिलाएं."
नारीवाद की परिभाषा कहती है कि लैंगिक समानता के अधिकारों का समर्थन करने वाला हर इंसान नारीवादी है.तस्वीर: AHMAD AL-RUBAYE/AFP

नारीवादी आंदोलन में क्या हो पुरुषों की भूमिका?

लैंगिक समानता का समर्थन करने के लिए किसी का जेंडर मायने नहीं रखता है. नारीवाद की परिभाषा भी यही कहती है कि हर वो इंसान, जो लैंगिक समानता के अधिकारों की वकालत करता है, नारीवादी है.

लेकिन नारीवादी आंदोलन का केंद्र हमेशा से ही पितृसत्ता से महिलाओं की आजादी के बारे में रहा है. पितृसत्तात्मक मानसिकता को आगे बढ़ाने में पुरुषों की अहम भूमिका रही है. इस पितृसत्तात्मक ढांचे से पुरुषों को हमेशा ही आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक लाभ मिलता रहा है. इसलिए नारीवाद का एक धड़ा मानता है कि बिना किसी योगदान के पुरुष कैसे खुद को नारीवादी मान सकते हैं. यह धड़ा मानता है कि पुरुष नारीवाद के समर्थक हो सकते हैं, लेकिन नारीवादी नहीं.

लेकिन क्या नारीवादी विचारधारा एक खास जेंडर, यानी पुरुषों के खिलाफ है? क्या इसलिए पुरुष नारीवादी नहीं हो सकते? मशहूर भारतीय नारीवादी कमला भसीन का मानना था कि सालों से चली आ रही महिलाओं की यह लड़ाई पुरुषों से नहीं, बल्कि पितृसत्ता से है. उनसे है, जो इस विचारधारा में यकीन करते हैं. पुरुष इस पितृसत्तात्मक ढांचे के खिलाफ अपने विशेषाधिकारों को पहचानते हुए नारीवादी आंदोलन का हिस्सा जरूर बन सकते हैं.

बेल हुक्स भी अपनी किताब ‘फेमिनिजम इज फॉर एवरीबडी' में लिखती हैं कि नारीवाद स्त्रीद्वेष, स्त्रीद्वेषी मानसिकता और शोषण को खत्म करने का आंदोलन है. यह परिभाषा अपने आप में काफी है नारीवाद को समझने के लिए. नारीवाद की ये परिभाषाएं पुरुषों के लिए इस आंदोलन के समर्थन का रास्ता बेहद आसान बनाती हैं.

पितृसत्ता से पीड़ित पुरुषों के लिए भी जरूरी

एक पितृसत्तात्मक ढांचे में पावर, यानी सत्ता की अहम भूमिका होती है. इस ढांचे में जरूरी नहीं कि हर पुरुष ताकतवर और हर महिला कमजोर हो. इसीलिए अमेरिकी नारीवादी और प्रोफेसर किंबरले क्रेशॉ ने 'इंटरसेक्शनल फेमिनिजम' की थ्योरी को जन्म दिया. इंटरसेक्शनैलिटी शब्द को नारीवादी प्रोफेसर किंबरले क्रेनशॉ ने साल 1989 में सबसे पहले इस्तेमाल किया था.

उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल यह परिभाषित करने के लिए किया था कि कैसे नस्ल, वर्ग, जेंडर और दूसरे कारण गैर-बराबरी को समझने के लिए जरूरी हैं. इसलिए अहम है कि पुरुष इस बात को समझें कि कैसे पितृसत्ता ने उनका भी दोहन किया है. ऐसे में लैंगिक समानता की वकालत कर या खुद को नारीवादी कहकर वे अपनी स्थिति बेहतर कर सकते हैं.

ब्राजील में यौन हिंसा के विरुद्ध एक प्रोटेस्ट में शामिल महिला प्रदर्शनकारी.
नारीवादी होने के मतलब सिर्फ खुद को नारीवादी घोषित करने तक सीमित नहीं है. खासकर तब, जब बात पुरुषों की हो. तस्वीर: Beto Barata/AFP

नारीवादी पुरुषों ने कैसे दिया आंदोलन का साथ

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक इंटरव्यू में कहा था, "पिछले 100-50, यहां तक कि पिछले आठ सालों में हमने जो प्रगति की है, उसने मेरी बेटियों के लिए मेरी दादी मां के मुकाबले चीजें जरूर बेहतर की हैं. मैं यह सिर्फ एक राष्ट्रपति नहीं, बल्कि बतौर एक नारीवादी कह रहा हूं." ऐसे कई मौके आए हैं जब सामाजिक रूप से ताकतवर और मशहूर पुरुषों ने खुद को बतौर नारीवादी कहकर संबोधित किया है.

नेल्सन मंडेला का भी कहना था कि जब तक महिलाएं हर तरीके के शोषण से मुक्त नहीं होतीं, तब तक आजादी हासिल नहीं की जा सकती है. वह महिला अधिकारों को एक आजाद समाज का अहम हिस्सा मानते थे.

डॉ. भीमराव आंबेडकर भारत में महिला अधिकारों के सबसे बड़े समर्थक के रूप में देखे जाते हैं. आंबेडकर ही वह शख्स थे जो महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश, समान वेतन, संपत्ति में हक जैसे अधिकार लेकर आए. मशहूर समाज सुधारक पेरियार ने विधवाओं के पुनर्विवाह से लेकर गर्भनिरोधक तक की वकालत की. सावित्रीबाई फुले के साथ-साथ ज्योतिबा फुले ने महिलाओं को शिक्षित करने में एक अहम भूमिका निभाई. इतिहास और वर्तमान दोनों में ही दुनियाभर में कई ऐसे पुरुष रहे, जिन्होंने महिला अधिकारों के आंदोलन को और मजबूत किया है.

भारतीय महिला ड्रोन पायलटों की ऊंची उड़ान

लेकिन क्या सिर्फ खुद को नारीवादी कहना काफी है?

नारीवादी लेखिका चिममहनदह गोजी अदीचे कहती हैं कि पुरुष न सिर्फ नारीवादी हो सकते हैं, बल्कि उन्हें तो नारीवादी होना ही चाहिए. उनका मानना है कि हम महिलाओं को जितना चाहें बदल दें, लेकिन जब तक पुरुष नहीं बदलेंगे यह आंदोलन अधूरा रहेगा.

लेकिन नारीवादी होने के मायने सिर्फ खुद को नारीवादी घोषित करने तक सीमित नहीं हो सकते. खासकर तब, जब बात पुरुषों की आती है. बिना खुद के विशेषाधिकारों को पहचाने, अपने अंदर के स्त्रीद्वेष को दूर किए एक पुरुष नारीवादी या नारीवाद का समर्थक नहीं बन सकता. बतौर नारीवादी पुरुषों की भूमिका आंदोलन का केंद्र बनने की जगह, इसे आगे ले जाने की होनी चाहिए.