कम उम्र में गांजा पीना हो सकता है बहुत खतरनाक
२७ जनवरी २०२३दुनिया में गांजा लेने वालों की संख्या हर साल बढ़ रही है. यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से मिलती है. खासतौर पर किशोर और युवा, पहले से कहीं ज्यादा इसका सेवन कर रहे हैं. इससे उनके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. डॉक्टर मैक्सीमिलियन गार इस विषय पर शोध कर रहे हैं. वह चेतावनी देते हैं कि गांजे का सेवन करने वाला जितनी कम उम्र का होगा, ब्रेन डैमेज का जोखिम उतना ही ज्यादा बढ़ जाता है.
मरीजों को किस तरह की दिक्कतें हो सकती हैं, इस बारे में डॉक्टर गार कहते हैं, "मैंने पाया कि जो लोग 13 से 15 साल की उम्र से ही इसका बहुत ज्यादा सेवन करने लगते हैं, उनके दिमाग में स्थायी बदलाव होते हैं. इससे मुख्यतौर पर मस्तिष्क का अगला हिस्सा प्रभावित होता है, जो दिक्कतें सुलझाने, गुस्से पर काबू पाने और भावनाओं को नियंत्रित करने जैसे काम करता है. सेवन ना करने वालों की तुलना में, कम उम्र से ही लगातार इसका सेवन करने वालों के फ्रंटल लोब के आकार में कमी देखी गई."
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किस तरह की दिक्कतें हो सकती हैं
लीनुस नॉएमायर का भी अनुभव कुछ ऐसा ही है. लीनुस को कभी मनोवैज्ञानिक दिक्कतें नहीं थीं. फिर उन्होंने गांजा पीना शुरू कर दिया. कुछ ही महीनों के सेवन के बाद उन्हें पहला पैनिक अटैक हुआ. तब की अपनी स्थिति साझा करते हुए लीनुस बताते हैं, "पसीना आता था, धड़कन बढ़ जाती थी. बहुत थकान होती थी. बीमार सा महसूस होता था. मेरा सिर चकराता था और मैं किसी एक चीज पर ध्यान नहीं लगा पाता था. मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं थी और मैं डरा हुआ था. यह सुनने में मूर्खतापूर्ण लगता है, लेकिन मुझे महसूस हो रहा था कि मैं मरने वाला हूं, मानो मेरी धड़कन रुक जाएगी या मेरी सांस थम जाएगी. चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन आप खुद पर काबू नहीं कर सकते."
गांजा पीने वाले सभी लोगों पर इसका एक जैसा असर नहीं होता है. कुछ लोगों के स्वास्थ्य पर औरों के मुकाबले ज्यादा गंभीर असर होता है. ऐसे में रिसर्चर ऐसे आनुवांशिक कारकों की भी जांच कर रहे हैं, जिनके कारण कुछ लोगों को दिक्कतें पैदा होने का जोखिम बढ़ जाता है.
ड्रग की संरचना से भी असर पड़ता है. डॉक्टर गार कहते हैं, "हालिया सालों में ज्यादा टीएचसी कॉन्टेंट वाले भांग के पौधे उगाने की कोशिशें हुई हैं. ऐसे में जाहिर है मनोवैज्ञानिक असर ज्यादा गंभीर होगा. हमने 2000 से 2018 के बीच जर्मनी के अस्पतालों में भर्ती हुए मरीजों पर एक शोध किया, और हमने पाया कि गांजे के इस्तेमाल के कारण हुई मानसिक परेशानियों के चलते अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है."
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गांजे की लत लग सकती है
ऐसे मरीजों की संख्या में करीब पांच गुना तक वृद्धि हुई है. इनके अलावा लीनुस नॉएमायर जैसे मरीज भी हैं. जब लीनुस को होने वाले पैनिक अटैक की नियमितता बढ़ने लगी, तो उन्होंने डॉक्टरी मदद ली. एक मनोचिकित्सक ने जांच में पाया कि लीनुस को हो रही परेशानी का कारण गांजा है. डॉक्टर ने एंग्जाइटी घटाने के लिए उन्हें एंटीडिप्रेसेंट दिया. लीनुस उसी समय हाई स्कूल पास करके निकले थे. ऐसे में वह ज्यादा संवेशनशील स्थिति में थे.
दवाएं लेने के अलावा लीनुस साइकोथैरेपी सेशंस में भी गए. इनमें उन्होंने सीखा कि अचानक अटैक आने पर क्या करना चाहिए. वह बताते हैं, "मैंने पाया कि अगर आप दबाने की कोशिश ना करें, तो अटैक की तीव्रता कम होती है. जब मैंने महसूस किया कि पैनिक शुरू हो रहा है, तो मैंने सोचा, "मुझे फर्क नहीं पड़ता. या तो बेहोश होऊंगा या मर जाऊंगा." स्वीकार करने से ही चीजें बेहतर होने लगीं."
लत छुड़ाने के लिए साइकोथेरैपी की मदद
गांजा पीने वाले कई लोग दावा करते हैं कि इसकी लत नहीं लगती, लेकिन जानकार इन दावों से सहमत नहीं हैं. गांजे की लत लग सकती है. ऐसे में रीकवरी मुश्किल हो जाती है. डॉक्टर गार बताते हैं, "अगर मरीज को सच में लत लग जाए, तब बहुत कम लोग ही सेवन छोड़ पाते हैं. एक बार छोड़कर दोबारा शुरू करने वालों की भी संख्या बहुत ज्यादा है. अगर मरीज गांजा लेना जारी रखे, तो ठीक होने में दिक्कत आती है. बेहतर होगा कि वो सेवन छोड़ दे. हालांकि छोड़ने के बावजूद कुछ लक्षण बने रह सकते हैं."
ऐसा नहीं कि गांजे की लत से छुटकारा नहीं पाया जा सकता. लीनुस ने बहुत कम उम्र में ही गांजा लेना शुरू किया और इसके चलते काफी परेशानी भी झेली. काफी कोशिशों के बाद वह अपनी लत छोड़ने में कामयाब रहे. छह साल की साइकोथैरेपी के बाद उनके लक्षण खत्म हो गए हैं. अब वो धीरे-धीरे दवा लेना भी बंद करना चाहते हैं. वो यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हो चुके हैं और एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मैनेजर की नौकरी करते हैं. उनका संकल्प है कि वह फिर कभी गांजा नहीं फूंकेंगे.