भारत को छोड़ गई एक और ऑटो कंपनी
१० सितम्बर २०२१फोर्ड कंपनी अब भारत में कारें नहीं बनाएगी. भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया' योजना के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि इससे पहले दो और कंपनियां ऐसा ही कर चुकी हैं. पिछले साल हार्ली डेविडसन ने भी ऐसा ही फैसला किया था. 2017 में जनरल मोटर्स ने भारत छोड़ दिया था.
फोर्ड ने कहा कि पिछल 10 साल में उसे दो अरब डॉलर से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. 2019 में उसकी 80 करोड़ डॉलर की संपत्ति बेकार हुई. एक बयान में कंपनी के भारत में अध्यक्ष और महाप्रबंधक अनुराग मेहरोत्रा ने कहा, "हम लंबी अवधि में मुनाफा कमाने के लिए एक स्थिर रास्ता खोजने में नाकाम रहे.”
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मेहरोत्रा की ओर से जारी बयान में कहा गया कि कंपनी को उम्मीद है कि कंपनी के पुनर्गठन में करीब दो अरब डॉलर का खर्च आएगा. इसमें से 60 करोड़ तो इसी साल खर्च हो जाएंगे जबकि अगले साल 1.2 अरब डॉलर का खर्च होगा. बाकी खर्च आने वाले सालों में होगा.
40 हजार से ज्यादा लोगों पर होगा असर
फोर्ड ने भारत में बिक्री के लिए वाहन बनाना फौरन बंद कर दिया है. उसकी फैक्ट्री पश्चिमी गुजरात में है, जहां निर्यात के लिए कारें बनाई जाती हैं. फैक्ट्री का कामकाज साल के आखिर तक बंद कर दिया जाएगा.
फोर्ड की इंजन बनाने वाली और कारों को असेंबल करने वाली फैक्ट्रियां चेन्नई में हैं जिन्हें अगले साल की दूसरी तिमाही तक बंद कर दिया जाएगा. इस कारण करीब चार हजार कर्मचारी प्रभावित होंगे.
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आईएचएस मार्किट नामक फर्म के एसोसिएट डायरेक्टर गौरव वंगाल ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "कार निर्माण क्षेत्र के लिए यह बड़ा झटका है. भारत में कार बनाकर अमेरिका निर्यात करने वाली यह एकमात्र कंपनी थी. और वे ऐसे वक्त में जा रहे हैं जब हम (भारत) कार निर्माताओं को निर्माण के बदले लाभ देने पर विचार कर रहे हैं.”
फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन ने फोर्ड के इस फैसले पर निराशा जाहिर की है और कहा है कि इस कारण कार डीलरशिप से जुड़े लगभग 40 हजार कर्मचारी प्रभावित होंगे. एसोसिएशन के अध्यक्ष विंकेश गुलाटी ने एक बयान में कहा, "मेहरोत्रा ने खुद मुझे फोन किया और कहा कि वे उन डीलरों को समुचित मुआवजा देंगे जो ग्राहकों को सेवाएं देना जारी रखेंगे. हालांकि यह अच्छी शुरुआत है लेकिन काफी नहीं है.”
पहले से जूझ रही थी फोर्ड
भारत के कार उद्योग में मारुति सुजुकी का बड़ा प्रभाव है. देश भी की कुल कारों के आधे से ज्यादा वही बेचती है. फोर्ड ने 1990 के दशक में भारत में प्रवेश किया था. उसे दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में गिने जाने वाले भारत से बड़ी उम्मीदें थीं. लेकिन कीमतों को लेकर बेहद संवेदनशील माने जाने वाले इस बाजार में जगह बनाने के लिए कंपनी को खासा संघर्ष करना पड़ा.
2019 में फोर्ड ने अपनी भारतीय हिस्सेदारी के लिए महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ समझौता कर लिया था. लेकिन इसी साल की शुरुआत में यह समझौता रद्द हो गया जिसके लिए कोविड महामारी के कारण खराब हुईं ओद्यौगिक परिस्थितियों को जिम्मेदार बताया गया.
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)