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यूरोप की सीमा पर CO2 टैक्स : संरक्षणवाद या क्रांति

१५ दिसम्बर २०२१

जलवायु संरक्षण अधिनियमों पर यूरोपीय संघ तेजी से काम कर रहा है. इसी संदर्भ में विदेशों से किसी तरह के आयात पर जल्द ही कार्बन टैक्स लगाया जाएगा. किंतु, गरीब देशों को इससे खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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तस्वीर: Nikolay Doychinov/DW

इस साल के प्रारंभ में यूरोपीय संघ ने 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 55 प्रतिशत कमी की योजना की घोषणा की, जबकि पहले यह लक्ष्य 40 फीसद निर्धारित किया गया था. इस अति महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यूरोपीय संघ को अधिक उत्सर्जन करने वाले उद्योगों का तेजी से पुनर्गठन करना होगा. तात्पर्य यह कि अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को अधिक CO2 शुल्क का भुगतान करने को कहा जाएगा, लेकिन इसके साथ ही उन्हें जलवायु अनुकूल उत्पादन प्रक्रियाओं को अपनाने के लिए मजबूर भी किया जाएगा.

यूरोपीय संघ के निर्माताओं को अपनी सीमा के बाहर की प्रतिस्पर्धा से नुकसान नहीं पहुंचे, इसे सुनिश्चित करने के लिए यूरोपीय आयोग विदेशों से होने वाले आयात पर CO2 टैक्स लगाने की योजना बना रहा है. जैसा कि कहा जाता है, विश्व का पहला कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) विशेषकर अधिक उत्सर्जन वाले उद्योगों के उत्पाद यथा, स्टील, सीमेंट, अल्युमिनियम व उर्वरक के आयात को प्रभावित करेगा. यूरोपीय आयोग के अनुसार 2026 से नए नियमों के पूरी तरह प्रभावकारी होने पर उत्पादन के दौरान अपने यूरोपीय समकक्ष की अपेक्षा अधिक CO2 उत्सर्जन करने पर चीनी स्टील कंपनी को आयात पर यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित प्रति टन CO2 शुल्क देना होगा.

टिकाऊ किंतु गैर प्रतिस्पर्धी 

यूरोपीय संघ में औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य वैश्विक स्तर पर कीमतों की प्रतिस्पर्धा में बढ़े हुए CO2 टैक्स से प्रभावित हुए बिना निरंतर उत्पादन करना है. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री हेक्टर पॉलिट कहते हैं, "इसका बुनियादी अर्थशास्त्र बिल्कुल सरल है." "यूरोपीय संघ में उच्च कार्बन मूल्य है और इतना अधिक मूल्य और कहीं नहीं है. तब अन्य देशों की तुलना में यूरोपीय संघ के उत्पादक प्रतिस्पर्धात्मक रूप में नुकसान में रहेंगे." यूरोपीय संघ में करीब 1100 औद्योगिक इकाइयां हैं. इनमें रिफाइनरी, स्टील मील, अल्युमिनियम, मेटल, सीमेंट व केमिकल कंपनियां हैं, जिन्हें पहले से ही एक तय मानक से अधिक  CO2 के उत्सर्जन पर लेवी का भुगतान करना पड़ता है.

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कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से 2005 में बनाई गई तथाकथित यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार योजना के तहत कार्बन मूल्य काफी कम रखी गई. 2016 में यह प्रति टन €3 ($3.40)  था. यह अब बदल रहा है. यूरोपीय यूनियन में एक साल के अंदर 2021 में दोगुना से अधिक बढक़र  CO2 मूल्य प्रति टन €69   हो गया. इस नए तंत्र को कम पर्यावरणीय मानकों वाले देशों में यूरोपीय संघ से बाहर जाने वाली कंपनियों के खिलाफ बचाव के रूप में तैयार किया गया है, ताकि वहां से यूरोपीय संघ में सामान की बिक्री की जा सके. यूरोपीय संघ के इकोनॉमी कमिश्नर पाओलो जेंटिलोनी ने इस योजना पर कहा, "इसके पीछे का तर्क कार्बन रिसाव की जोखिम को कम करना है. कार्बन मूल्य निर्धारण से बचने के लिए उत्पादन को कहीं और ले जाने से यह हमारी कोशिशों को कम कर सकता है."

व्यापार युद्ध या कार्बन क्लब

रूस, चीन, तुर्की, ब्रिटेन, यूक्रेन, दक्षिण कोरिया और भारत सीबीएएम से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देशों में हैं। यह देखा जाना बाकी है कि विश्व व्यापार संगठन की नजर में नियोजित यह टैक्स यद्यपि मान्य है या नहीं. हालांकि, यह साफ है कि इससे एक संभावित संघर्ष की स्थिति बन सकती है. कैम्ब्रिज के सीआईएसएल के वरिष्ठ विश्लेषक सना मार्क कानन का कहना है कि अगर  CO2 टैक्स को अन्य देश संरक्षणवाद के रूप में देखते हैं और वे जवाबी कार्रवाई शुरू करते हैं, तो यह व्यापार युद्ध का कारण बन सकता है. किंतु कमिश्नर जेंटिलोनी का कहना है कि सीबीएएम पर्यावरण नीति संबंधी साधन है, न कि दर निर्धारण संबंधी.

मार्क कानन यह भी कहतीं हैं कि वह वर्तमान में स्थाई अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के विकास के लिए अधिक सकारात्मक संकेत देख रही है. वे कहतीं हैं, "यूरोपीय संघ और अमेरिका वास्तव में एक साथ काम करना चाह रहे हैं और कार्बन क्लब जैसा कुछ बना रहे हैं." यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच सहयोग चीन में उत्पादित स्टील की कीमत बढ़ा सकता है. उत्तरी अमेरिकी स्टील उत्पादकों के संगठन, अमेरिकी आयरन एंड स्टील इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष केविन डेम्पसी कहते हैैं कि चीनी कंपनियों के प्रतिस्पर्धी लाभ को संभावित रूप से बदल सकते हैं जो सरकारी सब्सिडी और निम्न पर्यावरण मानकों से लाभान्वित होते हैं. यूरोपीय संघ की CO2  लेवी का उद्देश्य अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा के अलावा अन्य देशों पर अपनी अर्थव्यवस्था को जल्द से जल्द अधिक टिकाऊ बनाने के लिए दबाव डालना भी है.

दूसरे देशों पर बढ़ रहा दबाव

कुछ ऐसे संकेत हैं, जिन्हें पहले से ही महसूस किया जा रहा है. अक्टूबर में पेरिस जलवायु समझौते की पुष्टि के लिए तुर्की को मनाने में मदद करने को नियोजित टैक्स का हवाला दिया गया है. ऑस्ट्रेलियाई व्यापार मंत्री डैन तेहान ने हाल ही में बताया कि टैक्स के परिणामस्वरूप उनके देश को अपनी निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा. ऑस्ट्रेलिया जो  दुनिया के सबसे बड़े  CO2 उत्सर्जकों में से एक है, जीवाश्म ईंधन ऊर्जा उत्पादन के बड़े पैमाने पर विस्तार की योजना बना रहा है.

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इस बीच, हालांकि इस देश ने 2050 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना तय किया है. शोधकर्ता सना मार्ककानन और हेक्टर पोलिट की गणना के अनुसार, यूरोपीय संघ की कंपनियों को विदेशों से जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाले सामानों की अधिक मांग और उच्च कीमतों से लाभ हो सकता है. उनके निष्कर्षों पर आधारित एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक यूरोपीय संघ के देशों के सकल घरेलू उत्पाद में 0.2 प्रतिशत तक की वृद्धि और 600000 नई नौकरियों का सृजन संभव है.

गरीब देशों को नुकसान पहुंचा सकते हैं पर्यावरण मानक

यूरोपीय संघ के कार्यालय में गरीबी के खिलाफ काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ऑक्सफैम के टैक्स सलाहकार चियारा पुतातुरो का कहना है कि बड़े व्यापारिक भागीदारों और वित्तीय रूप से शक्तिशाली देशों के साथ संतुलन के संदर्भ में यह तंत्र उत्तोलक के रूप में काम कर सकता है तथा गरीब राष्ट्र जो यूरोपीय संघ के साथ व्यापार पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं, वे पीछे छूट सकते हैं. वे कहती हैं, "उत्पादों की मूल्य बढ़ोतरी के कारण यूरोपीय संघ को कम निर्यात हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप नौकरियों पर नकारात्मक प्रभाव तो पड़ता ही है, इन देशों में घरेलू राजस्व जुटाने पर भी असर पड़ सकता है."

इस नए टैक्स से मोजाम्बिक, जांबिया, सिएरा लियोन और द गाम्बिया में इस्पात और अल्युमीनियम उद्योग विशेष रूप से प्रभावित होंगे. कम विकसित देशों (एलडीसी) से आयात यूरोपीय संघ के सभी आयातों का सिर्फ 0.1 प्रतिशत है. किंतु, अधिक टैक्स लगाने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. उदाहरण के तौर पर मोजाम्बिक में, जहाँ 70 फीसद आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है, देश के आधे से अधिक स्टील और अल्युमीनियम उत्पाद का निर्यात यूरोपीय संघ को किया जाता है.

नियम अभी तक स्पष्ट नहीं

ऑक्सफैम के अनुसार, विश्व की आबादी का 10 प्रतिशत सबसे अमीर हिस्सा, जिनमें से अधिकांश अमेरिका और यूरोपीय संघ के निवासी हैं, 1990 से 2015 के बीच वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग आधे हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं. इसके विपरीत, दुनिया की सबसे गरीब 50 फीसद आबादी सिर्फ सात प्रतिशत उत्सर्जन का कारण बनी. पुतारो कहते हैं, "हमें अन्य देशों को इस समस्या के लिए भुगतान करने को कहने में वाकई सावधान रहना होगा जिसके लिए हम पहले जिम्मेदार हैं."

और वास्तविक रूप में किसी उत्पाद के कार्बन फुटप्रिंट की गणना कैसे की जाएगी, यह भी अभी स्पष्ट नहीं है. सीआईएसएल की सना मार्ककानन के अनुसार, अभी तक इसका कोई प्रमाणिक तरीका नहीं है. साथ ही, विकासशील देशों के लिए इस प्रणाली को लागू  करना बहुत महंगा हो सकता है जब तक कि छोटे उत्पादकों में इन तंत्रों को विकसित करने की क्षमता न हो. अब तक, यूरोपीय संघ के राजस्व को बढ़ाने में कार्बन टैक्स को शामिल करने की कोई योजना नहीं है. बड़ी संख्या में गैर सरकारी संगठन यूरोपीय संघ में, विशेष रूप से कम आय वाले देशों में जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु जलवायु संरक्षण और प्रौद्योगिकी के लिए इस धन को उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं.

रिपोर्टः टिम शाउएनबर्ग

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