जर्मनी में आप्रवासन के नए नियमों से क्या बदलेगा
२० नवम्बर २०२३जर्मन कंपनियों में हजारों कुशल कामगारों की जरूरत है. आइटी, तकनीक, मेडिकल, निर्माण समेत लॉजिस्टिक क्षेत्र भी कामगारों की कमी से जूझ रहा है. गर्मियों में जर्मनी की संसद बुंडेस्टाग ने स्क्लिड इमीग्रेशन ऐक्ट पास किया, जिसका मकसद यूरोपीय संघ यानी ईयू के बाहर से आने वाले कुशल कामगारों को वीजा देने की प्रक्रिया को आसान बनाना है.
इस दिशा में पहला बदलाव 18 नवंबर से लागू हो चुका है. नए नियम तीन चरणों में अस्तित्व में आएंगे. सरकारी वेबसाइट पर इस बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाई गई है.
ईयू ब्लू कार्ड
इन नियमों के मुताबिक, अकादमिक और दूसरे क्षेत्रों में प्रशिक्षित कर्मचारी बिना जर्मन भाषा जाने भी ईयू ब्लू कार्ड पर जर्मनी आ सकेंगे. इसके साथ तन्ख्वाह की सीमा को नीचे लाते हुए, शुरुआती और कामगारों की कमी वाली नौकिरयों के लिए 40,000 यूरो निर्धारित किया गया है. लेकिन फिलहाल, बाकी सभी नौकिरियों के लिए न्यूनतम सैलरी 44,000 यूरो होनी जरूरी है. इन नौकरियों में शिक्षक और नर्सें भी शामिल हैं.
आइटी सेक्टर में कुशल कामगार बिना यूनिवर्सिटी डिग्री के भी ईयू ब्लू कार्ड हासिल कर सकते हैं, अगर वह यह साबित कर सकें कि उनके पास तीन साल का जरूरी प्रोफेशनल अनुभव है. तीन साल से कम ट्रेनिंग वाले नर्सिंग सहायकों को भी जर्मनी में नौकरी ढूंढने का मौका मिलेगा.
ईयू ब्लू कार्ड, अमेरिका के ग्रीन कार्ड की तर्ज पर शुरु किया गया था. जर्मनी में यह एक दशक से इस्तेमाल हो रहा है. अब जब तन्ख्वाह की सीमारेखी नीचे लाई गई है तो इसे हासिल करना आसान होगा. इसके अलावा, जर्मनी में अब लोगों के लिए नौकरियां बदलना ज्यादा लचीला होगा. हालांकि सरकार द्वारा नियंत्रित प्रोफेशन जैसे कानून और चिकित्सा के क्षेत्र में जरूरी पढ़ाई में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
रिहायश का हक
अब सारी औपचारिक जरूरतों को पूरा करने वाले प्रोफेशनल और अकादमिक प्रशिक्षण प्राप्त कुशल कामगार जर्मनी में रेजिडेंट परमिट के हकदार होंगे.
इससे पहले यह कूटनीतिक मिशन और आप्रवासन अधिकारियों के अधिकार में था कि परमिट मिलेगा या नहीं. जर्मनी की फेडरल इंप्लॉयमेंट एजेंसी को इस बात की हिदायत दी गई है कि वह विदेशी कामगारों की अर्जी स्वीकार करने की प्रक्रिया को तेज बनाए.
अनुभवी कुशल कामगारों को जर्मनी में अपने शिक्षा सर्टिफिकेट सत्यापित करवाने की भी जरूरत नहीं रहेगी, अगर कागजात उनके अपने देश में मान्य हैं और उनके पास कम से कम दो साल का पेशेवर अनुभव है. यह बदलावों का पहला चरण है. अगले चरण में नए नियम 1 मार्च, 2024 से लागू होंगे.
योग्यता और प्रशिक्षण
ऐसा कोई भी जिसे जर्मनी में काम करने के लिए ट्रेनिंग लेने की जरूरत है, उसे देश में तीन साल रहकर, 20 घंटे प्रति हफ्ता तक काम करने का हक होगा. इस तरह पार्ट-टाइम काम करने का अधिकार आमतौर पर छात्रों और प्रशिक्षुओं पर लागू है. अगर जर्मनी में कंपनियां इस बात के लिए तैयार हों तो, योग्यता के सत्यापन की प्रक्रिया चलने के दौरान भी कुशल कामगार सीधे जर्मनी आकर काम शुरु कर सकते हैं.
इस तरह से देश में रहने की अवधि तीन साल रखी गई है. इसके लिए जरूरत है प्रोफेशनल पढ़ाई और कम से कम दो साल के अनुभव के साथ-साथ जर्मन भाषा में ए2 लेवल का ज्ञान.
परिवार लाने के नियम
आप्रवासियों के परिवार यानी पति-पत्नी या बच्चों को लाने के लिए, कुशल कामगारों को यह साबित करना होगा कि वह जर्मनी में उनका भरण-पोषण करने में सक्षम हैं. हालांकि यह दिखाना अब जरूरी नहीं कि उनके पास परिवार को रखने के लिए एक निश्चित जगह है.
इसके साथ ही माता-पिता और सास-ससुर को लाने का भी हक होगा, अगर कामगारों का अपना रेजिडेंट परमिट मार्च 2024 से मान्य रहता है. आप्रवासन के नियमों में बदलावों का अगला चरण 1 जून, 2024 से लागू होगा.
ऑपर्च्यूनिटी कार्ड
जून महीने में, ऐसे विदेशी कामगार जिनके पास जर्मनी के समकक्ष विदेशी शिक्षा है, उन्हें एक पाइंट आधारित ऑपर्च्यूनिटी कार्ड दिया जाएगा. इसके जरिए लोग जर्मनी आकर एक साल तक काम ढूंढ सकेंगे, अगर उनके पास यहां रहने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन हैं.
अन्य लोगों के लिए यूनिवर्सिटी स्तर की डिग्री या दो साल की वोकेशनल क्वालिफिकेशन के साथ या तो ए1 लेवल की जर्मन भाषा या फिर बी2 लेवल की अंग्रेजी का ज्ञान होना जरूरी है.
ऑपर्च्यूनिटी कार्डधारक भी जर्मनी में 20 घंटे प्रति हफ्ता काम कर सकेंगे, जिसमें प्रोबेशन पीरियड भी शामिल है. इस कार्ड की अवधि उन लोगों के लिए दो साल तक बढ़ाई जा सकती है, जिनके पास एक मान्य रोजगार का कॉन्ट्रेक्ट है.
पश्चिमी बालकन देशों के लिए नियम
एक खास नियम अल्बानिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, कोसोवो, मोंटेनीग्रो, उत्तरी मेसीडोनिया और सर्बिया जैसे पश्चिमी बालकन देशों से आने वाले लोगों पर लागू होता है. इसके तहत इन देशों से जर्मनी आना चाहने वाले नागरिकों का कोटा दोगुना, यानी 50,000 कर दिया गया है. यह वो देश हैं जो लंबे समय से ईयू में आने की राह देख रहे हैं.