छत्तीसगढ़: कितना दुर्गम है पहाड़ी जनजातियों के मतदान का रास्ता
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की सरगुजा लोकसभा सीट का एक ब्लॉक है उदयपुर. यहां के मरेया और सीतकालो गांव में 7 मई को मतदान है.
पहाड़ी जनजातियों की जोशीली हिस्सेदारी
इस पोलिंग बूथ पर बड़ी संख्या में पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग मतदान के लिए आते हैं. यह कोरवा जनजाति का एक उपसमूह है. पहाड़ी कोरवा छत्तीसगढ़ की पांच विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक है.
घंटों चल कर बूथ पर पहुंचना
पहाड़ी कोरवा एक प्रिमिटिव ट्राइबल ग्रुप है. कई पहाड़ी कोरवा ऊपर पहाड़ों पर बड़ी दुर्गम जगहों में रहते हैं. उनके गांव (खामखूंट, धवई पानी, चुआंटिकरा) सिर्फ पैदल जाया जा सकता है. वे कई घंटे का रास्ता तय कर के मतदान के लिए आते हैं. पहले चुनाव में इनकी भागीदारी कम थी काफी, जो कि अब बढ़ रही है.
प्रशासन की व्यवस्था
मरेया में प्रशासन ने इनके लिए खास इंतजाम किए थे, मसलन पोलिंग बूथ के पास ही ठहरने का प्रबंध किया गया था. कई वोटर कल शाम या रात को ही यहां आकर रुक गए थे, ताकि सुबह वोट देकर जल्दी लौट सकें. सीतकालो के पोलिंग बूथ पर कई पहाड़ी कोरवा वोटर खाना बांधकर तड़के सुबह पहाड़ के ऊपर के अपने गांव से मतदान करने पहुंचे.
ओआरएस घोल से तुरंत ऊर्जा
मतदान केंद्र पर दवा और ओआरएस की व्यवस्था की गई है. ऊपर से आने वालों में कई लोग, जिनमें छोटे बच्चे लेकर आने वाली महिलाएं और 80 बरस के बुजुर्ग भी हैं, इतना चलकर आने के कारण कई बार लोग बीमार भी हो जाते हैं. यही देख कर पोलिंग बूथ पर बुखार, दस्त, मलेरिया जांचने की किट, ब्लड प्रेशर मापने की व्यवस्था भी की गई है.
कैसा है इन समुदायों का हाल
पहाड़ी कोरवा सुविधाओं और विकास से वंचित समुदाय है. ये लोग मुख्य रूप से जंगल पर निर्भर हैं. महुआ, चार-चिरौंजी, तेंदू पत्ता, साल के बीज चुनकर उन्हें बेचते हैं. कुछ लोग पास के गांवों और मनरेगा में मजदूरी भी करते हैं. यह समूह काफी अलग थलग रहना पसंद करता है.
विकास से काफी दूर
पहाड़ पर उनके ऊपरी गांवों में बिजली नहीं पहुंची है. यहां ना सड़क हैं, ना स्कूल. नीचे मरेया गांव में एक पहाड़ी कोरवा आश्रम बनाया है प्रशासन ने, जहां उनके बच्चे पढ़ सकते हैं. हालांकि वहां आज भी बस पांचवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है. यहां भी कम ही बच्चे जाते हैं, क्योंकि परिवार वाले उन्हें दूर रखकर पढ़ाने से डरते हैं.