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समाज

तेज से बढ़ रही है मजदूरी करने वाले स्कूली बच्चों की संख्या

प्रभाकर मणि तिवारी
३ सितम्बर २०२०

पश्चिम बंगाल में एक ताजा सर्वेक्षण की रिपोर्ट से यह कड़वी हकीकत सामने आई है कि इस दौरान बाल मजदूरी करने वाले स्कूली बच्चों की तादाद 105 प्रतिशत बढ़ गई है. इनमें भी लड़कियों की स्थिति बेहद खराब है.

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Kinderarbeit Symbolbild Indien
तस्वीर: Getty Images/AFP

कोरोना की वजह से छह महीने से तमाम स्कूल बंद हैं. अब जब ऑनलाइन पढ़ाई शुरू भी हुई है तो इंटरनेट और स्मार्टफोन या कंप्यूटर तक पहुंच नहीं होने की वजह से भारी तादाद में स्कूली बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. ऐसे में घर-परिवार की सहायता के लिए उनको मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. मोटे अनुमान के मुताबिक देश में पांच से 18 साल तक की उम्र के मजदूरों की तादाद 3.30 करोड़ है. लेकिन कोरोना, बाढ़ और अंफान जैसी प्राकृतिक विपदाओं की वजह से इस आंकड़े में तेजी से वृद्धि हुई है.

पश्चिम बंगाल राइट टू एजुकेशन (आरटीई) फोरम और कैम्पेन अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (सीएसीएल) की ओर से किए गए ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान पश्चिम बंगाल में स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच बाल मजदूरी बढ़ी है. सर्वेक्षण के मुताबिक, लॉकडाउन का असर हर व्यक्ति पर पड़ा है और राज्य में स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच बाल मजदूरी में 105 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस दौरान लड़कियों में बाल मजदूरों की संख्या 113 प्रतिशत बढ़ी है जबकि लड़कों के बीच इस संख्या में 94.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों में बाल मजदूरी का प्रतिशत छह से 10 वर्ष की उम्र वालों में कम हुआ है, लेकिन यह 10 से 14 वर्ष और 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग वालों में बढ़ा है. लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह की लगभग 42 कथित घटनाएं भी सामने आई हैं. पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में 2,154 बच्चों को उक्त सर्वेक्षण में शामिल किया गया था. उनमें 173 दिव्यांग भी शामिल थे. इन दिव्यांग बच्चों में से महज 37.5 प्रतिशत ही ऑनलाइन पढ़ाई में सक्षम हैं. लॉकडाउन की अवधि के दौरान बीमार पड़ने वाले 11 प्रतिशत बच्चों को कोई चिकित्सीय सहायता भी नहीं मिल सकी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान प्री-प्राइमरी से 12वीं कक्षा तक पढ़ने वाले महज 29 प्रतिशत छात्र ही ऑनलाइन पढ़ाई करने में सक्षम हैं. छोटी कक्षाओं यानी प्री-प्राइमरी और प्राइमरी में तो यह प्रतिशत और कम सिर्फ 21.5 प्रतिशत ही है. हायर सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा 53.2 प्रतिशत है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान ऑनलाइन पढ़ाई करने वालों में से 54 प्रतिशत बच्चों ने क्लास में शामिल होने के लिए व्हाट्सएप का सहारा लिया. सर्वेक्षण में शामिल 49.5 प्रतिशत यानी करीब आधे बच्चों ने कहा कि उनके पास ऑनलाइन शिक्षा हासिल करने को कोई विकल्प नहीं था. इसके अलावा 33 प्रतिशत बच्चों के पास घर में न तो स्मार्ट फोन था और न ही कंप्यूटर.

सर्वेक्षण रिपोर्ट में बंगाल में बाल संरक्षण की स्थिति पर भी गंभीर चिंता जताई गई है. सर्वेक्षण में शामिल 57 प्रतिशत बच्चों को ही दिन में तीन बार खाना मिलता है जबकि 17 प्रतिशत को रोजाना एक या दो बार खाकर ही पेट पालना पड़ता है. इसके साथ ही पहली से आठवीं कक्षा तक के 40 प्रतिशत बच्चों को स्कूलों से मिड डे मील नहीं मिल रहा है.

आरटीई फोरम के संयुक्त संयोजक प्रबीर बसु कहते हैं, "बंगाल के आंकड़े राष्ट्रीय आंकड़े से बेहतर हैं. देश में सिर्फ 14 प्रतिशत स्कूली बच्चे ही ऑनलाइन के जरिए अपनी पढ़ाई जारी रखने में कामयाब रहे हैं. हमारे सर्वेक्षण का मकसद इन बच्चों की बदहाली को सामने लाना था ताकि सरकार इस स्थिति में सुधार की ठोस रणनीति तैयार कर सके.”

बाल अधिकारों के हित में काम करने वाले लोग इस स्थिति के लिए कई वजहों को जिम्मेदार मानते हैं. ऐसे एक संगठन की सचिव सुनीता बसु बताती हैं, "घर के कमाऊ परिवारों की नौकरी चली जाने की वजह से बच्चों को काम करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. खासकर लड़कियों को तो स्कूल नहीं जाने की स्थिति में घर के कामकाज का बोझ भी उठाना पड़ रहा है."

इसके अलावा बाल मजदूरी सस्ती होती है. इसलिए लोग उनसे काम कराने को तरजीह दे रहे हैं. विस्थापन की वजह से वयस्क मजदूरों के घर लौट जाने की वजह से ऐसे लोगों की कमी हो गई है. उनकी भरपाई बच्चों से की जा रही है. बसु कहती हैं कि "बाल मजदूरी बढ़ने की वजह से बच्चों की तस्करी और खरीद-फरोख्त का खतरा भी बढ़ रहा है." इसके अलावा लंबे अरसे से स्कूल बंद होने और पढ़ाई नहीं कर पाने की वजह से शिक्षा से इन बच्चों का मोह भंग हो रहा है. श्रम कानूनों में हालिया बदलाव से बाल मजदूरी पर निगाह रखने वाली सरकारी एजेंसियां भी अब इस समस्या से अपना मुंह फेरने लगी हैं.

महिला व बाल विकास और सामाजिक कल्याण मंत्री शशी पांजा दावा करती हैं कि सरकार हर घर तक अनाज पहुंचाने का हरसंभव प्रयास कर रही है. उनका कहना है, "कोरोना काल में सरकार घर-घर अनाज पहुंचाने का प्रयास कर रही है. बच्चों के लिए महीने भर के मिड डे मील का हिसाब लगा कर उतनी मात्रा में अनाज उनके घर पहुंचाया जा रहा है. हम लगातार इस मामले पर निगाह रख रहे हैं.”

पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष अनन्या चक्रवर्ती कहती हैं, "मैंने अभी पूरी रिपोर्ट नहीं पढ़ी है. लेकिन अगर यह सही है तो स्थिति बेहद चिंताजनक है. रिपोर्ट पढ़ने के बाद हम इसकी तह में जाकर वस्तुस्थिति का पता करेंगे और स्थिति में सुधार के लिए जरूरी कदम उठाएंगे.”

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