चीन की आर्थिक हालत से मिल रहे हैं नीतियों में नरमी के संकेत
१९ जुलाई २०२२ऑस्ट्रेलिया में ऐसी खबरें हैं कि उसके कोयले पर तीन साल से जारी चीनी ‘अनाधिकृत' प्रतिबंध हट सकता है. हालांकि चीन की सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है लेकिन ऑस्ट्रेलिया के टीवी चैनल एबीसी ने खबर दी है कि चीनी विश्लेषकों का अनुमान है कि चीन जल्दी ही यह प्रतिबंध हटा सकता है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था मुश्किल में है और दूसरी जगहों से कोयला आयात करना उसे बहुत महंगा पड़ रहा है.
एबीसी ने लिखा है कि एक चीनी विश्लेषक ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया है कि चीन के कोयला आयात का बढ़ता बिल देश के ऊर्जा और स्टील दोनों उद्योगों पर भारी पड़ रहा है. ऐसे में ऑस्ट्रेलिया से कोयला मंगाने से उत्पादन खर्च कम होगा.
इससे पहले ब्लूमबर्ग ने खबर छापी थी कि ऑस्ट्रेलियाई कोयले पर लगा प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव चीनी उच्चाधिकारियों के सामने रखा जा रहा है क्योंकि रूस पर यूरोपीय प्रतिबंधों के कारण कोयले की वैश्विक कीमतों और ऊपर जाने की आशंका है.
ऑस्ट्रेलिया चीन का बड़ा कोयला निर्यातक था. 2019 में उसने 14 अरब डॉलर का कोयला चीन को बेचा था. लेकिन 2020 में चीन ने उससे कोयला खरीदना बंद कर दिया. हालांकि ऐसा कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया गया लेकिन तत्कालीन ऑस्ट्रेलिया सरकार के अमेरिका के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कुछ कदम उठाने के चलते नाराज चीन ने कोयला लेना बंद कर दिया. ऑस्ट्रेलिया का टनों कोयला महीनों तक चीन कीं बंदरगाहों पर पड़ा रहने के बाद लौट आया.
अब क्या बदला है?
अगर चीन अब ऑस्ट्रेलियाई कोयले को लेकर फिर से दिलचस्पी दिखा रहा है तो उसके पीछे एक बड़ी वजह तो ऑस्ट्रेलिया में सरकार का बदलना हो सकता है. मई में देश में लेबर पार्टी की सरकार बनी और एंथनी अल्बानीजी ने प्रधानमंत्री पद संभाला जिसके बाद दोनों देशों के नेताओं के बीच मुलाकातें हुईं. विश्लेषकों का अनुमान है कि सालों बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक से चीन के रूख में नरमी आई होगी. ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने इसी महीने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से बाली में मुलाकात की थी जब वे दोनों जी-20 की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे थे.
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चीनी वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता शू जुएतिंग ने मीडिया से बातचीत में कहा कि चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्वस्थ रिश्ते जरूरी हैं. उन्होंने कहा, "चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थिर और स्वस्थ रिश्तों का होना दोनों लोगों (विदेश मंत्रियों) की इच्छा है और एशिया-पैसिफिक में शांति, स्थिरता और स्मृद्धि के लिए आवश्यक है."
चीन के ऑस्ट्रेलिया पर नरम पड़ने की वजह राजनीतिक से ज्यादा बड़ी हो सकती है. पिछले हफ्ते चीन ने अर्थव्यवस्था के जो ताजा आंकड़े जारी किए उनमें देश की हालत काफी पतली नजर आई है. भले ही चीन लगातार कहता रहा हो कि वह अपने आर्थिक लक्ष्य हासिल कर रहा है लेकिन 45 शहरों के करोड़ों लोगों को लॉकडाउन में रखने और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में लगातार आ रही गिरावट का असरइन आंकड़ों में साफ झलक रहा है.
आधिकारिक तौर पर पिछले साल चीन की अर्थव्यवस्था 0.4 फीसदी की दर से बढ़ी है और 1 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद से पीछे रह गई. लेकिन कुछ विश्लेषकों ने इस आंकड़े पर भी संदेह जताया है क्योंकि देश के सबसे बड़े शहर शंघाई समेत कई हिस्सों में लगातार रहे लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों को लगभग बंद रखा. बीजिंग से काम करने वाले अर्थशास्त्री माइकल पेटिस ने ट्विटर पर लिखा, "बढ़ती बेरोजगारी, घरेलू आय में गिरावट और कोविड के खत्म नहीं हो रहे लॉकडाउन ने घरेलू उपभोग को सिकोड़ दिया है."
इन आंकड़ों के जारी होने के बाद ही ब्लूमबर्ग ने वह रिपोर्ट छापी थी कि ऑस्ट्रेलियाई कोयला खरीदने पर विचार किया जा रहा है. देश की अर्थव्यवस्था के लिए रीयल एस्टेट क्षेत्र से लगातार बुरी खबरें आ रही हैं. पिछले हफ्ते हजारों लोगों ने अपने घर के लिए किश्तें देने से इनकार कर दिया क्योंकि वे समय पर घर ना मिलने से नाराज थे. इससे बिल्डर मुश्किल में पड़ गए और सरकार ने बैंकों से आग्रह किया कि बिल्डरों को ज्यादा क्रेडिट दें ताकि वे अपना काम कर सकें.
इसका असर देश के शेयर बाजार पर एकदम नजर आया था जब पिछले हफ्ते की बड़ी गिरावट के बाद सोमवार (18 जुलाई) को उनमें कुछ सुधार हुआ. लेकिन यह सुधार क्षणिक है क्योंकि देश के कई बड़े बिल्डर अपना कर्ज चुकाने में मुश्किल जाहिर कर चुके हैं. पिछले हफ्ते शिमाओ ग्रुप ने कह दिया था कि वह विदेशों से लिया एक अरब डॉलर के कर्ज की किश्त नहीं चुका पाएगा.
चीनी वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता शू जुएतिंग ने मीडिया से बातचीत में कहा कि चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्वस्थ रिश्ते जरूरी हैं. उन्होंने कहा, "चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थिर और स्वस्थ रिश्तों का होना दोनों लोगों (विदेश मंत्रियों) की इच्छा है और एशिया-पैसिफिक में शांति, स्थिरता और स्मृद्धि के लिए आवश्यक है."
एबीसी के बिजनस एडिटर इयान वेरेंडर लिखते हैं कि इन सारे हालात ने मिलकर चीन को भू-राजनीतिक हालात से आगे बढ़कर देखने को मजबूर कर दिया है. अपने लेख में उन्होंने लिखा है, "चीन की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरने का खतरा झेल रही है और ऐसे हालात में बीजिंग खुद को व्यापार प्रतिबंधों जैसा नुकसान नहीं पहुंचा सकता."
भारत का फायदा नुकसान?
चीन द्वारा ऑस्ट्रेलिया का कोयला लेने से इनकार करने के बाद ऑस्ट्रेलियाई कोयला निर्यातकों ने भारत की ओर देखना शुरू किया था. भारत के रूप में उन्हें चीन का विकल्प मिल गया था. इसी सालमार्च में दोनों देशों ने एक व्यापार समझौते पर भी दस्तखत किए थे जिसमें ऑस्ट्रेलिया से कोयले के आयात पर भारत ने 2.5 फीसदी का आयात कर हटाने पर सहमति जताई थी.
लेकिन इस समझौते से पहले ही दोनों देशों के बीच कोयले का व्यापार लगातार बढ़ रहा था. 2020 की पहली छमाही में तो भारत ने ऑस्ट्रेलिया से कोयला आयात के पिछले सारे रिकॉड तोड़ दिए थे. उस साल अप्रैल में ही 24.6 लाख टन कोयला ऑस्ट्रेलिया से भारत गया जो एक नया रिकॉर्ड था. पिछले साल यह अनुमान जताया गया था कि 2022-23 में ऑस्ट्रेलिया से भारत का कोयला आयात 2.12 करोड़ टन पर जा सकता है.
ऐसे में चीन द्वारा ऑस्ट्रेलिया के कोयले पर लौटना भारत के लिए क्या बदलाव लाएगा, इस बारे में विशेषज्ञ अभी कयास लगाने से बच रहे हैं. लेकिन, क्वॉड और अन्य संगठनों में सहभागिता के कारण भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच लगातार बढ़तीं नजदीकियां पलड़े को भारत के पक्ष में ही झुकाती हैं.