"डायन" से "शेरनी" बनने की पद्मश्री छूटनी महतो की कहानी
७ मार्च २०२३64 साल की छूटनी महतो को आज भी याद है कि कैसे उनके सुसराल में गांव वालों ने डायन बताकर उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया. झारखंड के सरायकेला-खरसंवा जिले के बीरबांस गांव की रहने वाली छूटनी महतो की 1978 में 14 साल की उम्र में पास के ही गांव माहातांडी के धनंजय महतो से शादी हुई. उनका जीवन ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन कई साल बाद अचानक उनपर डायन होने का आरोप मढ़ दिया गया. इसके बाद क्या था, गांव वालों ने उनका उत्पीड़न शुरू कर दिया. साल 1995 में सितंबर के महीने में माहातांडी गांव में लोगों ने फैसला किया कि छूटनी महतो डायन है और जिसे रात को काटकर नदी में बहा दिया जाए.
छूटनी कहती हैं, "उसी पंचायत में एक हमारा शुभचिंतक भी मौजूद था. उसने रात को बताया कि तुम लोगों का अब इस गांव में रहना खतरे से खाली नहीं है. घर में मैं, मेरा पति और चार बच्चे थे. मैं आधी रात को किसी तरह से पीछे के दरवाजे से जान बचाकर भागी और नाव में सवार होकर गांव पार कर गई. और किसी तरह से अपने भाई के घर पहुंची."
अपने अतीत को याद करते हुए छूटनी की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं. वह कहती हैं, "मेरा कोई जुर्म नहीं था लेकिन गांव के लोग हमसे जलते थे." छूटनी ने आगे बताया, "मैं तीन बच्चों को लेकर गांव से निकल गई और अपने पति और बड़े बेटे को वहीं छोड़ गई ताकि वे गाय-बकरी और घर का ध्यान रख सके."
छूटनी महतो को किसने बताया "डायन"
छूटनी महतो डीडब्ल्यू को बताती हैं कि सब कुछ सामान्य था लेकिन एक दिन उनके जेठ की बेटी ने उनसे कहा कि उसे उल्टी जैसा लग रहा है तो उसके में जवाब छूटनी ने कहा कि क्या पता कि तुम मां बनने वाली हो. छूटनी कहती हैं, "वह लड़की तो किनारे में खड़े होकर मुस्कुरा रही थी लेकिन उसकी बड़ी बहन ने कहा कि आपको कैसे पता कि यह मां बनने वाली है. कुछ दिनों बाद वह लड़की बीमार पड़ गई."
इसके बाद छूटनी के ससुराल वालों ने इसका दोष छूटनी के सिर मढ़ दिया. इस बात को लेकर उसपर डायन होने का आरोप लगा दिया गया. फिर उन्हें गांव वाले डायन कहकर पुकारने लगे और सताने लगे. कभी उन्हें पेड़ से बांधकर पीटा गया तो कभी कपड़े फाड़कर गांव की गलियों में घुमाया गया.
छोटी सी बात पर "डायन" घोषित
छूटनी कहती हैं, "हंसी मजाक में कही बात के चलते मुझ पर इतना बड़ा कलंक लगा और मुझे उत्पीड़न झेलना पड़ा. अगर मैं उसी गांव में रहती तो आज जिंदा नहीं होती. मैं उस रात गांव से भागी तभी आज इस मुकाम पर हूं."
गांव से भागकर छूटनी और उसके परिवार ने बीरबांस गांव में एक पेड़ के नीचे आठ महीने गुजारे. छूटनी के भाई चाहते थे कि वह उनके साथ रहे लेकिन छूटनी ने कहा कि वह अपने दम पर अपने बच्चों को पालेगी. उसने अपने भाई से कहा कि मदद ही करनी है तो कुछ जमीन दे दें ताकि वह खेती कर परिवार पाल सके.
गांव से भागने के बाद एक साल तक उनका पति उनके साथ रहा लेकिन माहातांडी गांव के लोगों ने पति को भड़काना जारी रखा. छूटनी कहती हैं, "उसको कहते थे कि तुम क्यों अपनी पत्नी के साथ रहते हो, एक दिन तुम्हें वह खा जाएगी." एक दिन पति छूटनी को छोड़कर वापस चला गया और दूसरी शादी कर ली.
"डायन" कैसे बनी "शेरनी"
छूटनी अब झारखंड की शेरनी कहलाती हैं. वह अब ऐसी महिलाओं की मदद करती हैं जिन्हें गांव वालों और ससुराल वालों ने डायन घोषित कर दिया है. वह ऐसी महिलाओं का रेस्क्यू करती हैं और अपने घर के परिसर में बने पुनर्वास केंद्र में रखकर उनकी काउंसलिंग करती हैं. 1996 से छूटनी झारखंड के गैर लाभकारी संगठन फ्री लीगल एड कमेटी के साथ मिलकर काम कर रही हैं. छूटनी और फ्री लीगल एड कमेटी ने अब तक इस केंद्र में 117 महिलाओं को रखकर उनकी काउंसलिंग की है. ये वे महिलाएं हैं जिनको अंधविश्वास के नाम पर प्रताड़ित किया गया.
छूटनी आज जहां खड़ी हैं वह इसी संगठन फ्री लीगल एड कमेटी (एफएलसी) की बदौलत है. एफएलसी के संस्थापक जीएस जायसवाल को जब छूटनी के साथ हुई घटना के बारे में पता चला तो वह इस मामले को मीडिया के सामने लाए और कानूनी मदद दी. छूटनी कहती हैं, "यह जायसवाल सर ही थे जिन्होंने मुझे वो बनाया जो आज मैं हूं. उन्होंने मुझे पैसे नहीं दिए, बल्कि मेरा सही मार्गदर्शन किया. उन्होंने मुझे समाज को समझने और उससे निपटने में मदद की. उन्होंने यह केंद्र बनाया (अपने घर के परिसर में बने पुनर्वास केंद्र की ओर इशारा करते हुए), जहां उन्होंने हमें उन महिलाओं का विवरण एकत्र करने के लिए कहा, जिन्हें डायन करार दिया गया था और सताया गया था."
झारखंड के ग्रामीण इलाकों में आज भी डायन कुप्रथा के मामले सामने आते हैं. कई बार महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है और कई-कई बार इन वारदात को अंजाम देने वालों को गांव वालों का समर्थन रहता है.
फ्री लीगल एड कमेटी इस मुद्दे पर झारखंड के ग्रामीण इलाकों में जागरुकता अभियान चलाती है. वह लोगों को कुप्रथा के बारे में जागरुक करने के लिए नुक्कड़ नाटक का आयोजन कराती है. एफएलसी के संस्थापक सदस्यों में से एक प्रेम चंद कहते हैं कि एक समय ऐसा था कि कोई यह मानने को तैयार नहीं होता था कि औरतों को डायन बताकर मार दिया जाता है.
समाज में अभी भी जागरुकता की कमी
प्रेम चंद डीडब्ल्यू से कहते हैं 1991 में हम लोगों ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया और समाज, प्रशासन और सरकार के सामने इसको उजागर किया. वह कहते हैं, "यह डायन प्रथा तो सती प्रथा से भी भयंकर है, यह सामाजिक मिथ्या, अंधविश्वास पर आधारित है. दो अहम कारण ये हैं कि ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं का न होना है. मेडिकल सुविधा नहीं होने के कारण गांव के लोग झाड़-फूंक कराने के लिए ओझा के पास जाते हैं और वही ओझा किसी भी औरत को डायन बता देता है तो पूरा गांव उसे डायन मान लेता है."
फ्री लीगल एड कमेटी का कहना है कि सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही नहीं बल्कि विकसित इलाकों में भी यह समस्या व्याप्त है. फ्री लीगल एड कमेटी ने साल 2000 में माइक्रो लेवल पर जमशेदपुर, रांची, बोकारो और देवघर में सर्वेक्षण कराया था. उसके मुताबिक इसके नतीजे चौंकाने वाले थे. प्रेम चंद कहते हैं कि किसी गांव में जाना और यह पता लगाना किसे डायन घोषित किया गया है वह काफी खतरनाक होता है. उनके मुताबिक गांव वालों की तरफ से हमले का डर बना रहता है.
पिछले दो दशक से छूटनी महतो आसपास के गांव में डायन कुप्रथा के खिलाफ जागरुकता अभियान चला रही हैं छूटनी कहती हैं, "ऐसी महिलाओं को मैं पहले अपने घर पर लाती हूं. उन्हें सहारा देती हूं फिर जाकर पुनर्वास केंद्र में रखती हूं. पीड़ित महिला के परिवार वालों को भी समझाया जाता है और फिर जाकर उन्हें वापस भेजा जाता है. इस केंद्र ने अब तक 117 पीड़ित महिलाओं को सहारा दिया और मानसिक आघात से निकलने में मदद किया है.
शिक्षा बनी अहम औजार
छूटनी महतो के तीन बेटे आज पढ़ लिखकर नौकरी कर रहे हैं और उनकी बहू भी गांव के बच्चों को पढ़ाने का काम करती है. छूटनी कहती हैं कि शिक्षा के जरिए ही समाज में बदलाव हो सकता है और इस कुप्रथा के खिलाफ शिक्षा एक अहम हथियार है. छूटनी का एक बेटा गांव के ही स्कूल में शिक्षक है.
छूटनी महतो को समाज में इस कुप्रथा के खिलाफ कार्य करने के लिए 2021 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा था.
डायन कुप्रथा के खिलाफ डॉक्यूमेंट्री "आखिर कब तक" भी बन चुकी है और यह छूटनी महतों की कहानी पर आधारित है. इसके अलावा 2014 में छूटनी महतो के जीवन पर बॉलीवुड फिल्म 'काला सच: द डार्क ट्रूथ' भी बन चुकी है. इस फिल्म में छूटनी महतो के संघर्ष भरे जीवन के बारे में दिखाया गया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2019 के बीच झारखंड में 575 महिलाओं को डायन बताकर हत्या कर दी गई. लेकिन असल आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं क्योंकि कई बार मामला पुलिस तक रिपोर्ट नहीं होता.