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जंगलों के बस का नहीं है इतना CO2 सोखना

२५ मार्च २०२१

जलवायु परिवर्तन पर खास नजर रखने वाले वैज्ञानिकों और रिसर्चरों ने चेतावनी दी है कि धरती पर मौजूद जंगल और मिट्टी उतना कार्बन डाय ऑक्साइड सोखने की हालत में नहीं है, जितना इंसान पैदा कर रहा है.

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USA Seetangwald vor Kalifornien
तस्वीर: Imago-Images/StockTrek Images/E. Daniels

नेचर जर्नल में छपी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने एक गलत धारणा की ओर ध्यान दिलाया है. उनका कहना है कि इस समय माना जाता है कि जमीन और उस जमीन पर लगे पौधे दोनों ही कार्बन वाली गैसें सोखने का काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन को लेकर ज्यादातर अनुमान इसी आधार पर लगाए जाते हैं. स्टडी के मुख्य लेखक सीजर टेरेर बताते हैं, "या तो मिट्टी या पौधे ही लगातार बढ़ते कार्बन के स्तर के साथ उतना सीओटू सोख पाएंगे. लेकिन दोनों बराबर से ऐसी नहीं कर पाएंगे."

कैलीफोर्निया के लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैब में रिसर्च करने वाले टेरेर बताते हैं कि नए वृक्षारोपण कार्यक्रमों और पेड़ पौधों से ऐसी उम्मीदें लगाना सही नहीं होगा कि वे फॉसिल फ्यूल जलाने, खेती की प्रक्रिया और जंगल को तबाह किए जाने का सारा असर संभाल लेंगे. रिसर्चरों का कहना है कि जब एक तरफ सीओटू बढ़ने के कारण जंगलों और घास के मैदानों की वृद्धि तेज होती है, तो वहीं मिट्टी में उनका अवशोषण धीमा पड़ जाता है. अमेरिका के ही स्टैनफोर्ट स्कूल ऑफ अर्थ के रिसर्चर और स्टडी में शामिल वरिष्ठ लेखक रॉब जैकसन बताते हैं, "दुनिया भर में मिट्टी में उससे कहीं ज्यादा कार्बन जमा होता है जितना सारे पौधों को मिलाकर भी नहीं होगा."

अब तक हमारे टेरिस्ट्रियल ईकोसिस्टम यानि जमीन ने वातावरण में बढ़ते सीओटू उत्सर्जन की रफ्तार से तालमेल बैठा कर रखी है. पिछले 50 सालों में कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन दोगुने से भी ज्यादा हो गया है लेकिन उसमें से 30 फीसदी जमीन लगातार सोखती आई है. इसी दौरान बाकी के 20 फीसदी का अवशोषण सागरों में होता आया है. इन प्राकृतिक स्पंज जैसी संरचनाओं के बिना हमारे वातावरण में कई गुना गैस घुली होती और धरती का तापमान चार से छह डिग्री सेल्सियस तक ऊपर जा चुका होता.

Eco India Größte globale Kohlendioxidemittenten
किन देशों से निकलता है सबसे ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड तस्वीर: DW

नए क्लाइमेट मॉडल दिखाते हैं कि धरती का तापमान केवल 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ने भर से इसे कई खतरनाक मौसमी घटनाएं जैसे बाढ़, भयंकर लू के थपेड़े वगैरह झेलने पड़े हैं. इस नई स्टडी ने इस बात के सबूत पेश किए हैं कि हम जमीन से जितने कार्बन को अपने में समा सकने की उम्मीद कर रहे थे, उनके बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत है. टेरेर और उनके रिसर्चरों की टीम ने मिट्टी में कार्बन से स्तर, पौधों की वृद्धि और कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा के बारे में हुए 100 से भी अधिक प्रकाशित हो चुके प्रयोगों का डाटा इस्तेमाल किया. इस विश्लेषण से मिले नतीजों से वे खुद भी हैरान हुए और बताया कि आने वाले समय में कार्बन सोखने वालों की भूमिका में घास के मैदानों का महत्व ज्यादा से ज्यादा बढ़ेगा. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के कार्यकारी निदेशक पेप कानाडेल कहते हैं, "मिट्टी में जज्ब हुआ कार्बन पौधों में सोखे गए कार्बन से ज्यादा लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है. क्योंकि पौधों पर आग में जलने से लेकर दूसरी कई तरह की परेशानियां आने की संभावना ज्यादा होती है."

आरपी/आईबी (एएफपी)