कोलंबिया की जनजातियों पर मंडरा रहा है बड़ा खतरा
बढ़ता तापमान और पिघलते ग्लेशियर! जलवायु परिवर्तन से कोलंबिया के सिएरा नेवादा दे सांता मारता की जनजातियां खतरे में हैं. वो साथ मिलकर "प्रकृति" की रक्षा करना चाहते हैं.
जलवायु परिवर्तन के आगे एकजुट
कोलंबिया के एंडीज के नाबूसीमाके इलाके की विभिन्न जनजातियां एकजुट हो रही हैं. यहां पर्वत शृंखलाओं के बीच चार जनजातियां- अरहुआको, कंकुआमो, कोगी और वीवा जनजातियां हजारों साल से रह रही हैं. यह इलाका उनके लिए बहुत पवित्र है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अब उनका घर खतरे में है.
गुम हो रही है खूबसूरती
सिएरा नेवादा दे सांता मारता की बर्फ से ढकी चोटी का दृश्य. यह कैरेबियन सागर से 5,775 मीटर ऊपर उठा हुआ है. यह पृथ्वी का सबसे ऊंचा तटीय पर्वत है. लेकिन गर्म हवाओं के कारण यहां के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 20वीं सदी की शुरुआत में यहां 14 ग्लेशियर थे, लेकिन अब उनमें से केवल छह ही बचे हैं.
जुड़ी है गहरी आस्था
नाबूसीमाके, अरहुआको समुदाय के लिए यह जगह आस्था का केंद्र है. सिएरा नेवादा की जनजातियां मानती हैं कि इंसान और प्रकृति एक-दूसरे से जुड़े हैं. उनका यकीन है कि इस इलाके की नदियां, पत्थर और पौधे एक ही शरीर के अलग-अलग अंगों की तरह हैं और यह ब्रह्मांड का केंद्र है. वो इस संतुलन की रक्षा करना अपना फर्ज समझते हैं.
साल-दर-साल बढ़ रहा है तापमान
मामोस, अपने समुदाय के लिए आध्यात्मिक दिशा दिखाने का काम करते हैं. वे जलवायु में हो रहे बदलावों पर बात करने के लिए इस पवित्र माने जाने वाले पेड़ के नीचे जमा हुए हैं. इनमें से एक ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हम यहां शांति और सद्भाव से रहने के लिए हैं. अग हम इस धारणा के खिलाफ जाएंगे, तो ग्लोबल वॉर्मिंग होगी."
प्रकृति के रक्षक
एक अरहुआको महिला बुनाई करते हुए अपने बच्चे को पीठ पर टांग कर नाबूसीमाके से गुजर रही है. मूलनिवासी जनजातियों को प्रकृति का संरक्षक माना जाता है. वे प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीते हैं. अरहुआको समुदाय की नेता सेदिन एटी रोसादो ने एएफपी से कहा, "हम अकेले नहीं हैं. ना दूसरे मनुष्यों से अलग, ना जानवरों से अलग, हम धरती पर मौजूद किसी भी चीज से अलग नहीं हैं."
बदलते मौसम से फसलों को नुकसान
नाबूसीमाके में अब कॉफी, केला, कसावा और मक्का उगाया जा रहा है. अरहुआको के एक नेता ने बताया कि पहले यह इलाका ऐसी फसलों के लिए काफी ठंडा हुआ करता था. सुबह की सर्द और दोपहर की गर्म हवाओं के बीच हुए बदलाव के कारण अब अनाज और सब्जियों की खेती करना मुश्किल हो गया है. मक्के की पिछली फसल भी इस वजह से खराब हो गई थी.
रिकॉर्ड तापमान
एक अरहुआको कॉफी बीन्स को धूप में सुखा रहा है. जलवायु परिवर्तन अब इन जनजातियों की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डाल रहा है. जनवरी में पर्यावरण विशेषज्ञों ने सिएरा नेवादा के तल पर स्थित तटीय क्षेत्र सांता मारता में रिकॉर्ड 40 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया था. अरहुआको उम्मीद करते हैं कि मार्च तक मौसम ठीक हो जाएगा और वे फली और मक्के की खेती कर पाएंगे.
"पिघल जाएंगे सारे ग्लेशियर"
राजदूत लेओनोर जलबाता संयुक्त राष्ट्र में कोलंबिया का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली मूलनिवासी महिला हैं. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "एक समय में सिएरा नेवादा में मौजूद सारे ग्लेशियर पिघल जाएंगे." साल 2022 में यूनेस्को ने मूलनिवासी जनजातियों के प्राचीन ज्ञान को दुनिया की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी. यह ज्ञान "प्रकृति मां, मानव जाति और पृथ्वी की सुरक्षा के लिए जरूरी है."
"इंसान खुद अपनी बर्बादी की वजह है"
आंकड़ों के अनुसार, जलबाता की कही बात सही है. आंकड़े बताते हैं कि सिएरा नेवादा के ग्लेशियर 19वीं सदी के मध्य में 82 वर्ग किलोमीटर से घटकर 2022 में केवल 5.3 वर्ग किलोमीटर तक सीमित रह गए हैं. एक मामोस ने एएफपी को बताया, "इंसान अपने आविष्कारों से खुद की बर्बादी का कारण बन रहा है क्योंकि वह अपने को कुदरत से ज्यादा समझदार समझने लगता है."