भारत के नॉनवेज मार्केट पर फिर पड़ी कोरोना की मार
२२ जून २०२१कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी भारत में लोग चिकन, मछली जैसे नॉनवेज प्रोडक्ट से दूर रहे. मार्केट रिसर्च कंपनी नील्सन ने अपनी रिपोर्ट में इनकी बिक्री में कमी आने की बात कही. हालांकि इसी रिपोर्ट में कहा गया कि दूसरी लहर के दौरान अंडे की बिक्री बहुत प्रभावित नहीं हुई. भारत में इस बार नॉनवेज प्रोडक्ट को पहली लहर जैसा नुकसान तो नहीं हुआ लेकिन उत्तर भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में इस बार भी पोल्ट्री उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा. रेस्टोरेंट, होटल और KFC जैसी कंपनियों के आउटलेट बंद होने से भी खपत पर खासा असर हुआ. यह सेक्टर करोड़ों किसानों की कमाई का जरिया भी है.
पोल्ट्री फार्मर (ब्रॉयलर) वेलफेयर फेडरेशन के अध्यक्ष एफएम शेख कहते हैं, "कई महीने नॉनवेज फूड प्रोडक्ट्स की दुकानें बंद रहने से पोल्ट्री फार्मर के साथ ही आम किसानों को भी भारी नुकसान हुआ क्योंकि चिकन को दिए जाने वाले दाने में मक्का, बाजरा, सोयाबीन की खली आदि का जमकर प्रयोग होता है. जिसकी सप्लाई आम किसान करते हैं."
उत्तर भारतीय राज्यों में नॉनवेज को लेकर पूर्वाग्रह
दूसरी लहर में नॉनवेज प्रोडक्ट के कम प्रभावित होने के बारे में आईसीएआर, हैदराबाद में डायरेक्टोरेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च के वैज्ञानिक डॉ विजय कुमार कहते हैं, "इस बार लॉकडाउन लगाने का अधिकार राज्यों के पास था, जिससे नॉनवेज की सप्लाई पर पिछली बार जैसा असर नहीं हुआ. वहीं पिछली बार कोरोना को लेकर काफी अफवाहें फैली थीं. लेकिन इस बार सरकार और मीडिया की ओर से कोरोना से प्रभावित लोगों के स्वास्थ्य में तेज सुधार के लिए भोजन में नॉनवेज को शामिल कर प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने की सलाह दी गई. इसके अलावा अप्रैल, मई के महीने में इतनी ज्यादा गर्मी नहीं पड़ी, जिससे आसानी से इन्हें ज्यादा दिन स्टोर किया जा सका."
उत्तर प्रदेश के मामले में डॉ. विजय कुमार कहते हैं, "इस बार कुछ राज्यों पर ही बुरा असर पड़ा. उत्तर भारत में चिकन की प्रति व्यक्ति खपत कम है, शायद इसलिए वहां इसपर अधिक ध्यान नहीं दिया गया." लेकिन एफएम शेख इस बात से सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं, "वाकई इस बार मांग में कोई खास समस्या नहीं रही लेकिन सप्लाई में समस्या जरूर हुई. और इसकी बड़ी वजह रहा, प्रशासन का पूर्वाग्रह. केंद्र सरकार के आदेश के बाद भी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में ज्यादातर चिकन और मीट की दुकानों को नहीं खोलने दिया गया. जिससे इन राज्यों में चिकन की प्रतिदिन की खपत 10 गुना तक घट गई."
अब भी 50 फीसदी मांग प्रभावित
केंद्र सरकार को भी जानकारी थी कि नॉनवेज फूड प्रोडक्ट की दुकानें नहीं खोली जा रही हैं. इसी वजह से 10 मई को मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव अतुल चतुर्वेदी ने सभी प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र भी भेजा. जिसमें मछली, चिकन, मटन और अंडे को आवश्यक वस्तुओं में शामिल करने और दुकानें खोलने की बात कही गई थी. इसमें कहा गया था कि पोल्ट्री उत्पाद प्रोटीन का मुख्य स्रोत होने के साथ ही लाखों लोगों की जीविका का साधन भी है. इस पत्र के जारी होने के बाद भी दुकानें नहीं खुलीं. एफएम शेख बताते हैं, "कुछ लोगों ने चोरी-छिपे घरों से नॉनवेज की बिक्री जारी रखी, जिससे कभी सिर्फ 180 रुपये/किलो बिकने वाला चिकन 300 रुपये/किलो तक बिका."
उन्होंने बताया, "अब एक जून से हफ्ते में पांच दिन चिकन की दुकानें खुलने लगी हैं लेकिन चिकन के दाम अब भी पहले के स्तर पर नहीं आए हैं. फिर भारत में आम तौर पर लोग शनिवार और रविवार को नॉनवेज की खरीद करते हैं. भारतीय ग्राहकों की आदत लंबे समय तक रखकर मीट का इस्तेमाल करने की नहीं होती, यहां ज्यादातर इसे ताजा लाकर पकाना ही पसंद किया जाता है. ऐसे में अनुमानत: कुल बिक्री में से 50% वीकेंड पर ही होती है. लेकिन अब भी वीकेंड पर दुकानें न खुलने से यह मांग प्रभावित है."
कैसे काम करती है चिकन की इकोनॉमी
पोल्ट्री में एक चूजा 25-30 रुपये के दाम पर लाया जाता है, जिसे दो किलो का होने पर बेचा जाता है. पोल्ट्री में चूजा रखने और खिलाने-पिलाने का खर्च प्रति किलो चिकन पर करीब 85 रुपये आता है. इसके अलावा प्रति किलो चिकन पर 25 रुपये ट्रांसपोर्टेशन और पोल्ट्री हाउस के रखरखाव में भी खर्च होते हैं. यानी पोल्ट्री चलाने वाला किसान जब प्रति किलो चिकन पर कुल 120-130 रुपये खर्च करता है, तब उस चिकन को ऐसा तैयार कर पाता है कि उसे 180-200 रुपये के बीच दुकानों पर बेचा जा सके. लेकिन कोरोना बाद के दौर में चिकन के दामों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है.
एफएम शेख के मुताबिक, "ग्राहकों के बीच दो किलो के मुर्गे की मांग सबसे ज्यादा होती है लेकिन समय से बिक्री न होने के चलते इन मुर्गों का वजन बढ़ जाता है. और इन्हें बाद में बेचना मुश्किल होता है. साथ ही इन्हें पोल्ट्री में जितने दिन ज्यादा रखना पड़ता है. इनका खाने और रख-रखाव का खर्च भी उतना ही बढ़ता जाता है. पहले जहां इस रखरखाव पर 85 रुपये खर्च होते थे, अब यह बढ़कर 110 रुपये हो गया है. यही वजह है कि जब चिकन 300 रुपये/किलो बिक रहा था, तब भी पोल्ट्री वाले 60 रुपये से ज्यादा कमाई नहीं कर पा रहे थे."
पिछली लहर में एक-चौथाई लोगों ने छोड़ा था नॉनवेज
आईसीएआर, हैदराबाद में डायरेक्टोरेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च के वैज्ञानिकों ने कोरोना की पिछली लहर के दौरान चिकन मीट और अंडे की खपत में आने वाली कमी पर एक स्टडी की थी. जिसके मुताबिक पिछले साल कोरोना के डर से 27 फीसदी परिवारों ने चिकन खाना और 21 फीसदी परिवारों ने अंडा खाना बंद कर दिया था. दरअसल कोरोना की पहली लहर के दौरान केंद्र सरकार की ओर से देशभर में एक साथ कड़ा लॉकडाउन लागू कर दिया गया था, जिससे इन प्रोडक्ट्स की सप्लाई चेन ही टूट गई थी. इसके अलावा कोरोना के डर के चलते और इससे जुड़ी अफवाहों के चलते भी लोगों ने नॉनवेज खाना बहुत कम कर दिया था.
यह नॉनवेज फूड प्रोडक्ट शरीर के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत होते हैं. साल 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 73% लोगों में प्रोटीन की कमी थी और 90% से ज्यादा लोग शरीर को रोज होने वाली प्रोटीन की जरूरत के बारे में कुछ नहीं जानते थे. ऐसे हालात में भारत की राज्य सरकारों का प्रोटीन के मुख्य स्रोत इन नॉनवेज फूड प्रोडक्ट के प्रति पूर्वाग्रह इस तस्वीर को और खराब करने वाला है.