राहत मिलेगी लेकिन इको फ्रेंडली होने की शर्त पर
२७ जून २०२०हवाईअड्डों पर विमान यूं ही खड़े हैं. कोरोना वायरस के चलते दुनिया भर में लगे ट्रैवल बैन के कारण कर्मशियल एविएशन का बुरा हाल है. औद्योगिक गतिविधियां भी धराशायी हो चुकी हैं. जलवायु विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस साल कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन सात फीसदी गिर सकता है. लेकिन ऐसा तभी होगा जब दुनिया भर में कुछ पाबंदियां जारी रहें. ऐसा हुआ तो यह बीते 75 साल में सीओटू के उत्सर्जन में सबसे बड़ी गिरावट होगी.
अर्थव्यवस्थाएं भी बीमार हुई हैं. सरकारें कंपनियों को दुरुस्त करने के लिए अरबों यूरो के पैकेज का एलान कर रही हैं. पैकेज के जरिए महामारी से हुए नुकसान की भरपाई की जाएगी. लेकिन क्या इसकी कीमत पर्यावरण को चुकानी पड़ेगी?
कैसे दी जा रही है राहत
यूरोपीय आयोग ने 750 अरब यूरो का इकोनॉमिक रेस्क्यू पैकेज पेश किया है. आयोग का कहना है कि इस का 25 फीसदी हिस्सा भी पर्यावरण संरक्षण संबंधी कामों में खर्च किया जाएगा.
राष्ट्रीय स्तर पर कुछ देश, इकोनॉमिक सपोर्ट पैकेज का इस्तेमाल प्रदूषण को कम करने के लिए कर रहे हैं. इटली अपने शहरी बाशिंदों को साइकिल या ई-स्कूटर खरीदने के लिए 500 यूरो की मदद दे रहा है.
ऑस्ट्रिया इको फ्रेंडली बदलाव की शर्त के साथ कंपनियों को आर्थिक राहत दे रहा है. ऑस्ट्रियन एयरलाइंस के लिए इसका मतलब है कई छोटी दूरी की उड़ानों को कम करना, ईंधन की किफायत बढ़ाना और सीओटू उत्सर्जन को कम करना.
महामारी ने आटो सेक्टर पर भी चोट की है. कंसल्टिंग फर्म मैकेंजी का अनुमान है कि 2019 के मुकाबले इस साल दुनिया भर में 75 लाख वाहन कम बनाए जाएंगे. यह 10 फीसदी की गिरावट है.
भारत में क्या है हाल
भारत में लॉकडाउन के दौरान हवा की क्वॉलिटी काफी बेहतर हुई. इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में जबरदस्त कटौती इसकी एक वजह रही. भारत सरकार ने 250 अरब यूरो के राहत पैकेज का एलान किया है. इसका एक हिस्सा कारोबार की मदद करेगा लेकिन पर्यावरण संबंधी कोई शर्त नहीं है.
पैकेज में संकट से घिरे ऑटो सेक्टर के लिए कोई राहत नहीं है. देश की जीडीपी में इस सेक्टर की हिस्सेदारी सात फीसदी है. पर्यावरण प्रेमी इससे खुश हो सकते हैं. शायद, इस संकट से ग्रीन ट्रांसपोर्ट सिस्टम का रास्ता खुल जाए.
रिपोर्ट: टाबेया मैर्गेनथालर