1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
कानून और न्यायभारत

आज भी बरकरार है पुलिस में 'अर्दली' रखने की प्रथा

१५ अगस्त २०२२

अर्दली रखने की प्रथा के तहत पुलिसकर्मियों को वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निजी कामों के लिए तैनात किया जाता है. मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि आज भी इस प्रथा का जारी रहना भारत के संविधान और लोकतंत्र पर एक तमाचा है.

https://p.dw.com/p/4FWs2
Indien Feierlichkeiten zum Gedenken an 75 Jahre indische Unabhängigkeit
तस्वीर: Vishal Bhatnagar/NurPhoto/IMAGO

मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें अदालत को बताया गया कि तमिलनाडु सरकार ने 'अर्दली' व्यवस्था को बंद करने के आदेश तो 1979 में ही दे दिए थे लेकिन राज्य में यह प्रथा आज भी चल रही है.

पांच अगस्त को अदालत ने तुरंत इस व्यवस्था को बंद करने के आदेश भी दिए थे, जिसके बाद सामने आया था कि कम से कम 19 पुलिसकर्मी अभी भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के घरों पर काम कर रहे थे.

पुलिस
'अर्दली' व्यवस्था 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने पुलिस में लागू की थी लेकिन यह आज भी कायम हैतस्वीर: Charu Kartikeya/DW

अदालत के आदेश और राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के भी आधिकारिक आदेश जारी करने के बाद इन सभी को अधिकारियों के घरों से हटा लिया गया था. लेकिन अदालत का कहना है कि उसे ज्ञात है कि अभी भी बड़ी संख्या में वर्दीधारी पुलिसकर्मी अधिकारियों के घरों पर काम कर रहे हैं.

आधुनिक युग की गुलामी

न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है और ऐसे में इस "औपनिवेशिक गुलामी व्यवस्था" का जारी रहना पीड़ादाई है. इसे तुरंत खत्म कर दिए जाने की जरूरत पर जोर देते हुए अदालत ने कहा कि संविधान के मुताबिक एक जान पदाधिकारी को सिर्फ जनता की सेवा करनी चाहिए.

कोरोना ने बदला भारत की पुलिस को

अदालत ने इस मामले में डीजीपी को भी वादी बनाए जाने का आदेश दिया और डीजीपी को निर्देश दिया कि वो इस विषय पर जारी किये आदेशों को कैसे लागू कराएंगे, इस संबंध में एक हलफनामा दायर करें.

'अर्दली' व्यवस्था 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने पुलिस में लागू की थी. एक अर्दली का काम होता है एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की वर्दी की सफाई और देखभाल करना, घर पर आने वाली फोन कॉल लेना, अधिकारी की निजी सुरक्षा देखना और घर के छोटे मोटे काम भी करना.

राष्ट्रीय स्तर पर कई बार इस व्यवस्था को खत्म करने की अनुशंसा की जा चुकी है लेकिन यह प्रथा अभी भी जीवित है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी