आम आदमी का भरोसा बढ़ा रहा कोर्ट रूम लाइव
१४ दिसम्बर २०२२पिछले कुछ दिनों में पटना उच्च न्यायालय के कोर्ट रूम की कार्यवाही के ऐसे कई वीडियो वायरल हुए हैं, जो अदालत में लोगों का भरोसा बढ़ा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के मुद्दे पर कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार न्याय का अधिकार तभी सार्थक हो सकेगा, जब अदालतों के सामने होने वाली कार्यवाही तक आम जनता की पहुंच होगी. इसी साल एक मामले की सुनवाई के दौरान वकील के अगली तारीख मांगने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि इस समस्या का एक ही समाधान है कि कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की जाए, जिससे जनता को भी पता चल सके अदालतों में आखिर इतने मामले क्यों लंबित पड़े हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार 26 अगस्त, 2022 को संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मामलों में अपनी संविधान पीठ की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया. इस संबंध में जो नोटिस जारी की गई थी, उसमें लिंक भी शेयर किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट से भी एक्सेस किया जा सकता था. यह एक औपचारिक कार्यवाही थी. इसी दिन तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना सेवानिवृत्त हो रहे थे. इससे ठीक एक साल पहले दिसंबर, 2021 में पटना हाईकोर्ट यू-ट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग करने वाला देश का पांचवां हाईकोर्ट बन गया. इससे पहले गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक व ओडिशा हाईकोर्ट में कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जा रहा था.
सुनवाई में बेहतरी आई
जानकारों का मानना है कि लाइव स्ट्रीमिंग की वजह से पूरी न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता तो बढ़ती ही है, सुनवाई भी बेहतर होती है. साथ ही ओपेन कोर्ट की अवधारणा को भी बल मिलता है. दोनों तरफ के वकील सुनवाई सार्वजनिक होने की वजह से पहले की अपेक्षा कहीं अधिक तैयारी कर आते हैं. इस व्यवस्था से अदालतों में चल रहे उन मुकदमों के बारे में लोगों को विस्तृत जानकारी मिल जा रही है, जिसका सीधा वास्ता आज के समाज में व्याप्त कुरीतियों और व्यवस्थागत खामियों से है.
दबंगई, भ्रष्टाचार, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मनमानी नासूर बनती जा रही है. सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी इसे काबू में करना मुश्किल हो रहा है. पत्रकार एस.के. रवि कहते हैं, ‘‘आप अपने चारों ओर बस केवल नजर घुमाइये. हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति किसी ना किसी रूप में सिस्टम की खामियों की मार खाता मिलेगा. जिनके लिए आखिरी आसरा अदालत ही रह जाता है. क्योंकि, और कहीं से कुछ राहत नहीं मिलता देख उसे अंतत: अदालत की शरण में जाना ही पड़ता है.''
दिल्ली में छह साल से अधिक सजा वाले अपराधों में फोरेंसिक जांच अनिवार्य
वाकई, ऐसे कई मामले आए दिन सुनने को मिलते हैं, जिसमें या तो पुलिस की एकतरफा कार्रवाई दिखती है या फिर मिलीभगत से प्रशासनिक स्तर पर ऐसे फैसले लिए जाते हैं जो कालांतर में मुकदमे का कारण बनते हैं. बिहार की राजधानी पटना के एक ऐसे ही मामले में सुनवाई का वीडियो वायरल हो गया. इस वीडियो में जज साहब बिना किसी नोटिस के पुलिस द्वारा बुलडोजर से किसी का घर तोड़ दिए जाने पर पुलिस, भूमाफिया को जमकर फटकार लगाते हुए देखे और सुने जा सकते हैं, "आप जनता के लिए हैं या फिर किसी व्यक्ति विशेष के लिए." इसी दौरान जज साहब को यह जानकारी भी दी जाती है कि पुलिस ने पीड़ित परिवार के खिलाफ झूठी एफआईआर भी दर्ज कर ली है. जज साहब अगले आदेश तक ना केवल गिरफ्तारी पर रोक लगा देते हैं बल्कि पुलिस को खूब खरी-खोटी सुनाते हैं.
शिक्षक की भूमिका में भी दिखते हैं जज साहब
अदालती कार्यवाही के एक वीडियो में जज साहब काफी हड़बड़ी में किसी महिला चिकित्सक को गिरफ्तार कर जेल भेजे जाने के लिए डीएसपी को यह समझाते देखे जा रहे हैं कि जिसके पास ज्यादा अधिकार है, उसे काफी संयमित व स्थिर होकर काम करने की जरूरत है. वे उनसे पूछते है, "जब आप साठ वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाएंगे, आपकी वर्दी उतर जाएगी और किसी मामले में आपके सहयोगी आपको इसी तरह गाड़ी में बिठाकर ले जाएंगे तो आपको कैसा लगेगा. गिरफ्तारी में इतनी हड़बड़ी किसी खूंखार अपराधी या आतंकवादी की गिरफ्तारी में दिखाते. महिला चिकित्सक के मामले में ऐसी हड़बड़ी क्यों."
एक और वीडियो में दबंगों और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोगों की मदद करने की नीयत से अदालत के निर्देश की गलत व्याख्या करने पर जज साहब थानेदार से पूछते देखे जाते हैं कि क्या उन्हें अंग्रेजी आती है? आदेश को नहीं पढ़ पाने की स्थिति में जज साहब उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि जब आपको अंग्रेजी नहीं आती, तब आदेश को क्या समझेंगे. जब समझ में नहीं आए तो वरीष्ठ अधिकारियों से संपर्क कीजिए.
बढ़ी जनता की पहुंच
पत्रकार अमिता राय कहतीं हैं, ‘‘कोर्ट रूम में क्या हुआ, पीडि़तों के लिए यह जानना थोड़ा कठिन था, किंतु अब लाइव होने से आम आदमी कहीं से भी अपने मुकदमे की कार्यवाही को देख व समझ सकता है. पूरी व्यवस्था पारदर्शी हो गई है.'' पटना व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता राजेश कुमार भी इससे सहमति जताते हुए कहते हैं, ‘‘इस व्यवस्था से न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में और पारदर्शिता आ गई है. लाइव होने से लोगों को यह पता हो रहा है कि उनके वकील ने मुकदमे की पैरवी किस तरह से की और कोर्ट ने किस तरह मामले को सुना. जाहिर है, इससे उनका भरोसा कोर्ट और अपने अधिवक्ता पर बढ़ेगा ही.''
वहीं, हाईकोर्ट की अधिवक्ता समरीन कोर्ट रूम की लाइव स्ट्रीमिंग से सहमत नहीं हैं. वे कहती हैं, ‘‘कुछ मामलों में अदालत की कार्यवाही की काफी सराहना होती है, किंतु कभी-कभी अजीबोगरीब स्थिति भी पैदा हो जाती है. जैसे बुलडोजर वाले मामले को लेकर काफी सराहना हुई, वहीं हफ्ता भर बाद ही एक मामले में आरक्षण संबंधी टिप्पणी पर विवाद भी हुआ. यह स्थिति अंतत: कहीं ना कहीं कोर्ट को अनडिग्नीफाई करती है.''
निजता खत्म होने का डर
समरीन का मानना है कि इतनी पारदर्शिता भी अच्छी नहीं है. लोग थोड़ा भी कुछ अलग होने पर आलोचना करने लगते हैं. पति-पत्नी से संबंधित मामलों में कार्यवाही के दौरान उनके बीच हो रही बातचीत से उनकी निजता खत्म होती है. समरीन कहतीं हैं, ‘‘कल को कार्यवाही के दौरान मुझसे ही कोई बड़ी गलती हो जाती है तो मेरी आलोचना होने लगेगी, मेरे ऊपर मीम्स बनने लगेगा. यह मुझे खराब तो लगेगा ही, इससे मेरा कॉन्फिडेंस भी लूज हो जाएगा.'' हां, कानून के छात्रों को इसका लाभ जरूर मिलता है.आम लोग भी अपने मुकदमे की सुनवाई होते देख पाते हैं, लेकिन सब कुछ पब्लिक डोमेन में नहीं आना चाहिए.
जाहिर है, हर व्यवस्था के पक्ष या विपक्ष के अपने अलग-अलग तर्क होंगे. किंतु, इतना तो तय है कि आम लोगों को यह सब देख सुकून भी मिलता है, क्योंकि ऐसी ही परिस्थिति की मार हर कोई कहीं न कहीं झेल रहा होता है और कोई उसे सुनने वाला नहीं होता. अदालत की कार्यवाही के दौरान पीड़ित पक्ष में वह अपना अक्स देखता है और इससे उसका भरोसा न्यायिक व्यवस्था में बढ़ता है कि कोई तो है जो उसकी सुन रहा है.