लूटपाट, हत्या और अपहरण से बदहाल काबुल के लोगों की जिंदगी
५ फ़रवरी २०२१हर सुबह जब खान वली कामरान घर से काम पर जाने के लिए निकलते थे, तो डर लगता था कि शाम में वापस लौटने पर बच्चों से मुलाकात होगी या नहीं. आखिरकार उन्होंने एक महीने पहले अपने चारों बच्चों को गांव में पिता के पास भेज दिया. यह कहानी सिर्फ एक कामरान की नहीं है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में रहने वाली एक बड़ी आबादी डर के साये में जी रही है.
दशकों तक युद्ध की विभीषिका झेल चुके अफगानिस्तान में पिछले कुछ सालों में शांति बहाली को लेकर कई प्रयास हुए हैं. माना जाने लगा था कि अब यहां के लोगों के बीच से डर और भय का माहौल दूर होगा, लेकिन राजधानी काबुल के लोगों की जिंदगी दिनों-दिन और बदतर होती जा रही है.
बार-बार हो रहे धमाके
बार-बार हो रहे बम धमाकों से हर कोई दहल रहा है. कभी सरेआम किसी को निशाना बनाया जा रहा है, तो कभी व्यस्त जगहों पर धमाके हो रहे हैं. पिछले साल एक विश्वविद्यालय में हुए बम हमले में दर्जनों लोगों की मौत हो गई थी. बीते मंगलवार को एक मौलवी की कार को बम से उड़ा दिया गया. राजधानी काबुल के व्यस्त इलाके में हुई इस घटना में मौलवी और उनके चालक की मौत हो गई.
लोगों के बीच तनाव और डर का माहौल लगातार बढ़ रहा है. हालांकि, यह साफ नहीं है कि इन घटनाओं के पीछे किसका हाथ है. मौलवी की हत्या की जिम्मेवारी इस्लामिक स्टेट ग्रुप ने ली, लेकिन ज्यादातर मामलों की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. सरकार ऐसी घटनाओं को लेकर तालिबान पर आरोप लगाती है, लेकिन तालिबान ने ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी से इनकार किया है. साथ ही, तालिबान का संदेह है कि सरकार और विपक्ष का समर्थन करने वाले गुट इन घटनाओं को अंजाम देते हैं और अराजकता फैला रहे हैं.
काबुल में तेजी से बढ़े अपराध
राजधानी काबुल में अपराध तेजी से बढ़े हैं. हथियार के बल पर खुलेआम दिन में दुकान लूटे जा रहे हैं, पार्क में बैठे लोगों को बंदूक दिखाकर लूट लिया जा रहा है, और ट्रैफिक में फंसी कारों में चोरी और तोड़फोड़ की जा रही है. बच्चों और वयस्कों का अपहरण कर उनके परिवार से 50 से 5000 डॉलर तक की फिरौती वसूली जा रही है. 22 साल का आमिर शहर के पॉश इलाके में सैलून चलाता है.पहली उसकी दुकान दस बजे रात तक खुलती थी, लेकिन पिछले साल लूटे जाने के बाद वह सात बजे दुकान बंद कर देता है.
डर का आलम यह है कि काबुल में रहने वाले लोगों ने अंधेरा होते ही घर से बाहर निकलना तक बंद कर दिया है. जो निकलते भी हैं, अपना बटुआ और मोबाइल फोन घर पर ही छोड़ जाते हैं. कामरान कहते हैं, "घर से ऑफिस जाने के लिए जब कार में बैठते हैं, तब डर लगता है. घर से मस्जिद जाने में डर लगता है. जिंदगी नरक बन गई है.” डर इस कदर हावी है कि कामरान ने उस गांव का नाम तक नहीं बताया जहां अपने बच्चों को भेजा है. यही कहानी कई लोगों की है.
टूट रही शांति की उम्मीद
पिछले साल काफी उम्मीद थी कि तालिबान और अमेरिकी सरकार के बीच शांति समझौते के बाद, चार दशक से अधिक समय से चले आ रहे युद्ध का अंत होगा. अफगानिस्तान में शांति आएगी. हालांकि, बाद में तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत की रफ्तार धीमी हो गई. कई अफगानिस्तानियों को डर है कि अपराध में बेतहाशा वृद्धि से देश में युद्ध के हालात बन सकते हैं. वे 1990 के दशक को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय सशस्त्र गुटों ने सत्ता के लिए काफी लड़ाई की थी. यह वो दौर था जब सोवियत संघ पीछे हट गया था और इसके बाद तालिबान की सरकार बनी थी.
करीब 20 साल पहले अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया और अब वह पीछे हट रहा है. पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फैसले के बाद अमेरिकी सैनिक वापस जा रहे हैं. आज की तारीख में अमेरिकी सैनिकों की संख्या महज 2500 तक सिमट गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों तरफ कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें शांति से ज्यादा युद्ध से फायदा है. अफगानिस्तान सरकार के सलाहकार रह चुके तोरेक फरहदी कहते हैं, "यह धर्म की नहीं, सत्ता की लड़ाई है.” वे कहते हैं, "कुछ हत्याएं तालिबान ने की. वहीं, कुछ काबुल के दूसरे संगठनों ने. ये संगठन उस किनारे पर पहुंच चुके हैं जहां इनकी सत्ता, संपत्ति और रुतबा खत्म होने के कगार पर है.”
आईएस और भ्रष्टाचार के बीच पिसती जनता
काबुल पुलिस के प्रवक्ता फिरदौस फरमाज इन हमलों के पीछे तालिबान का हाथ बताते हैं. वे कहते हैं कि ऐसा "सरकार और जनता के बीच दूरी बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.” अफगानिस्तान के लोगों का कहना है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियां भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं और देश के लोगों को सुरक्षा नहीं दे पा रही हैं. 2001 में तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के बाद देश में करोड़ों डॉलर खर्च किए गए. इसके बावजूद, 3.2 करोड़ की आबादी वाले देश की 72 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे है. पिछड़े इलाकों और देश की सीमा के आसपास अपराध तेजी से बढ़े हैं. स्थानीय टीवी रिपोर्टों के मुताबिक पिछले 100 दिनों में काबुल में आत्मघाती हमलों में 360 लोग घायल हुए और 177 लोग मारे गए.
इस्लामिक स्टेट ने 2020 में अफगानिस्तान में हुए 82 हमलों की जिम्मेदारी ली है. इन हमलों में करीब 821 लोग घायल हुए या मारे गए. इनमें से 21 लोगों की हत्या की गई थी. मरने वालों ज्यादातर या तो सुरक्षाकर्मी थे या शिया मुसलमान. हालांकि, कई लोगों को निशाना बनाकर मारा गया. इनमें ज्यादातर पत्रकार, न्यायाधीश, सामाजिक कार्यकर्ता, युवा बुद्धिजीवी और व्यवसायी हैं. इन ज्यादातर घटनाओं में शामिल अपराधियों का पता नहीं चला. मनोवैज्ञानिक शराफुद्दीन आजिमी कहते हैं कि हिंसा के कारण अफगानिस्तान के लोगों के स्वास्थ्य पर असर हो रहा है. हजारों की संख्या में लोग तनाव संबंधी विकार से पीड़ित हुए हैं. कई लोग अवसाद में चले गए हैं. हर वक्त उन्हें मौत का भय सताता रहता है.
आरआर/एमजे (एपी)
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