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रिटायर्ड जस्टिस अब्दुल नजीर को राज्यपाल बनाने का विरोध

१३ फ़रवरी २०२३

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को 12 राज्यों के राज्यपाल और एक केंद्र शासित प्रदेश में उपराज्यपाल की नियुक्ति. सेवानिवृत जस्टिस अब्दुल नजीर की नियुक्ति पर विपक्ष सवाल उठा रहा है.

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क्या जजों को लाभ के पद मिलने चाहिए?
क्या जजों को लाभ के पद मिलने चाहिए?तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

जस्टिस एस अब्दुल नजीर चार जनवरी को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे. वह संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद, तीन तलाक और निजता के मौलिक अधिकार घोषित करने समेत कई बड़े फैसलों का हिस्सा रहे थे. उनके रिटायरमेंट के छह हफ्ते बाद उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है.

जस्टिस नजीर के राज्यपाल बनाने को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस सवाल उठा रही है.

राज्यपाल के रूप में जस्टिस (रिटायर्ड) नजीर की नियुक्ति के बाद कांग्रेस ने कहा कि "यह न्यायपालिका के लिए खतरा है." कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने पूर्व कानून और वित्त मंत्री अरुण जेटली के पुराने बयान का हवाला दिया. जेटली ने 2013 में कहा था कि सेवानिवृत्ति से पहले के निर्णय सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरियों और न्यायपालिका के लिए इसके खतरे से प्रभावित होते हैं.

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सिंघवी ने कहा, "हम भी इसी भावना को साझा करते हैं. यह न्यायपालिका के लिए खतरा है." उन्होंने कहा, "यह किसी व्यक्ति विशेष के बारे में नहीं है क्योंकि मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं लेकिन सिद्धांत रूप में हम सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति के खिलाफ हैं."

कांग्रेस सांसद और संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने अरुण जेटली का वीडियो क्लिप शेयर किया और कहा कि पिछले 3-4 सालों में इसका पर्याप्त सबूत है.

कांग्रेस के हमले के बाद केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज को राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर सवाल खड़े करने को लेकर प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पूरा ईकोसिस्टम इस मुद्दे पर सक्रिय हो गया है.

उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि उन्हें समझना चाहिए कि अब वे भारत को "व्यक्तिगत जागीर" नहीं मान सकते है. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, "राज्यपाल की नियुक्ति पर एक बार फिर से पूरा गिरोह जोरों पर है. उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अब वे भारत को अपनी निजी जागीर जैसे नहीं चला सकते. अब भारत को संविधान के प्रावधानों और लोगों की इच्छा के अनुसार चलाया जाएगा."

रंजन गोगोई के बाद यह दूसरी नियुक्ति है. रंजन गोगोई के रिटायर होने के बाद उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया था. अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच का हिस्सा रहे जस्टिस नजीर जनवरी में सेवानिवृत्त हुए थे. जस्टिस नजीर के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने 2016 की नोटबंदी प्रक्रिया को सही ठहराया था. उन्होंने यह भी घोषणा की थी कि मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नेताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की कोई जरूरत नहीं है.

कौन हैं जस्टिस नजीर?

जस्टिस नजीर का 5 जनवरी 1958 को कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के बेलुवई में जन्म हुआ था. जस्टिस नजीर ने लॉ की डिग्री हासिल हासिल करने के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की और 12 मई 2003 को इसके अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए. वह 24 सितंबर 2004 को स्थायी न्यायाधीश बने और 17 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए.

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जस्टिस नजीर संविधान पीठ के कई फैसलों का हिस्सा थे, जिनमें तीन तालक, निजता का अधिकार, अयोध्या मामला और हाल ही में नोटबंदी पर केंद्र के 2016 के फैसले और सांसदों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल है. जस्टिस नजीर ने एक बार कहा था कि भारतीय न्यायपालिका की स्थिति आज उतनी गंभीर नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी, हालांकि गलत सूचना के कारण गलत धारणा व्यक्त की जाती है.

संविधान के अनुच्छेद 157 और 158 में राज्यपाल के पद को लेकर बताया गया है. इनके मुताबिक कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक हो और 35 वर्ष की आयु पार कर चुका हो. संविधान के मुताबिक किसी लाभ वाले पद पर नहीं रहे शख्स, जो विधानमंडल या किसी सदन का सदस्य न हो उसे राज्यपाल बनाया जा सकता है. अनुच्छेद 158 में कहा गया है कि राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा.

रिपोर्टः आमिर अंसारी

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