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कर्नाटक: दलित श्रमिकों को बंदी बनाया, किया उत्पीड़न

१२ अक्टूबर २०२२

कर्नाटक में एक कॉफी के बागान के मालिक पर दलित श्रमिकों के उत्पीड़न के आरोप लग रहे हैं. यह मामला दिखाता है कि किस तरह आज भी दलित श्रमिकों को बंदी बना कर रखना और उनके साथ मारपीट जैसा उत्पीड़न जारी है.

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दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शन
दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शनतस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture alliance

कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले में कॉफी के एक बागान के मालिक जगदीश गौड़ा पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने अपने 16 दलित श्रमिकों को कई दिनों तक बंदी बना कर रखा और उनके साथ मारपीट भी की. श्रमिकों में एक गर्भवती महिला भी थी और गौड़ा पर आरोप है कि उन्होंने महिला के साथ भी मारपीट की जिसके बाद उनका गर्भपात हो गया.

मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक गौड़ा और उनके बेटे तिलक के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी दोनों फरार हैं. सभी पीड़ित गौड़ा के बागान पर दिहाड़ी श्रमिकों के तौर पर काम कर रहे थे और बागान में ही श्रमिकों के लिए बनी कॉलोनी में रह भी रहे थे. पुलिस के बयान के मुताबिक उनमें से कुछ ने गौड़ा से नौ लाख रुपये उधार लिए थे और उसी उधार की भरपाई के लिए गौड़ा और उसके बेटे ने सभी को बंदी बना लिया था.

बंदियों में गर्भवती महिला के अलावा और भी महिलाएं थीं. गौड़ा और उनके बेटे पर आरोप है कि उन्होंने श्रमिकों को बंदी बना कर उन्हें यातनाएं भी दीं. कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि आरोपी बीजेपी के समर्थक हैं. बीजेपी ने उनसे कोई भी संबंध होने से इनकार किया है.

भारत में आधुनिक गुलामी

इस मामले ने एक बार फिर भारत में श्रमिकों और विशेष रूप से दलित श्रमिकों के मानवाधिकारों के अनियंत्रित उल्लंघन रेखांकित कर दिया है. जबरन मजदूरी पूरी दुनिया में आज भी एक बड़ी समस्या बनी हुई और भारत उन देशों में जहां यह समस्या काफी गंभीर है.

ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में भारत में करीब 80 लाख लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे थे. कुछ ऐक्टिविस्टों का मानना है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है. कपड़े बनाने की फैक्टरियां हों या ईंट बनाने की भट्ठी, कई पेशे हैं जिनमें लोग अपने अपने घरों से दूर जा कर काम करते हैं और फिर वहां कम वेतन और अमानवीय हालात में फंसे रह जाते हैं.

दलित महिलाओं को न्याय में देरी क्यों?

इन श्रमिकों की आय इतनी नहीं होती कि इसमें आराम से गुजर बसर हो सके और अक्सर इन्हें मालिकों से कर्ज लेना पड़ता है. मालिक अक्सर कर्ज इतनी ऊंची ब्याज दर पर देते हैं कि उसे लेने के बाद श्रमिक कर्ज चुकाने के एक लंबे संघर्ष में फंस जाते हैं और यहीं से उनकी गुलामी की शुरुआत होती है.

दलितों का उत्पीड़न

इसमें दलितों की हालत विशेष रूप से खराब है. भेदभाव की वजह से दलितों को आर्थिक और सामाजिक उत्थान के अवसरों से वंचित रखा जाता है और उनका शोषण सबसे ज्यादा होता है. 2019 में आई यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर तीसरा दलित गरीब है.

दलितों के खिलाफ अत्याचार भी बढ़ते जा रहे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2020 में देश भर में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न के 50,291 मामले दर्ज हुए थे और 2021 में ये मामले बढ़ कर 50,900 हो गए. ब्यूरो के मुताबिक कर्नाटक में 2020 में दलितों के खिलाफ अपराध के 1,504 मामले दर्ज किए गए थे. राज्य सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2021 में यह संख्या बढ़कर 2,327 हो गई थी.