तेजी से बढ़ता 'डीपफेक' टेक्नोलॉजी क्या है
९ अक्टूबर २०१९तथाकथित डीपफेक टेक्नोलॉजी को लेकर नई रिपोर्ट आई है. रिपोर्ट में यह बताया गया है कि लोगों को भ्रमित करने वाली यह तकनीक न सिर्फ तेजी से बढ़ रही है बल्कि विश्व स्तर पर राजनीतिक संकट भी पैदा कर रही है. इस तकनीक में वास्तविक फुटेज के ऑडियो और वीडियो से छेड़छाड़ किया जाता है. इसका इस्तेमाल ज्यादातर नेताओं और प्रसिद्ध हस्तियों की छवि को धूमिल करने के लिए किया जाता है.
एम्सटर्डम स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी डीपट्रेस डीपफेक टेक्नोलॉजी से सुरक्षा देने की पहल करने वाली पहली कंपनी है. कंपनी ने पाया कि इस टेक्नोलॉजी का ज्यादातर इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए वीडियो तैयार करने में किया जाता है. इसमें प्रसिद्ध महिला हस्तियों के चेहरे को न्यूड फोटो के साथ जोड़ देते हैं. इससे यह फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि ये तस्वीर या वीडियो सही है या गलत.
रिपोर्ट में पाया गया है कि एक नई घटना होने के बावजूद डीपफेक पोर्नोग्राफी ने 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को आकर्षित किया है. जिन साइटों पर लोगों ने ये वीडियो देखे हैं वहां ज्यादातर वीडियो डीपफेक तकनीक से बनाए गए हैं. इंटरनेट पर मौजूद टॉप 10 पोर्न साइटों में से आठ पर इस तरह के वीडियो मौजूद हैं. इस तकनीक के माध्यम से ज्यादातर अमेरिकी और ब्रिटिश अभिनेत्रियों को निशाना बनाया गया है. इसके बाद महिला पॉप स्टारों का अश्लील वीडियो बनाया गया. इसमें अधिकांश कंटेंट चीन और दक्षिण कोरिया में बनाए गए हैं.
डीपट्रेस ने पाया कि 100 प्रतिशत पोर्न वीडियो महिलाओं के थे. हालांकि यूट्यूब पर भी छेड़छाड़ कर बनाए गए वीडियो काफी देखे गए हैं. उदाहरण के तौर पर अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर नैन्सी पेलोसी के वीडियो को 22 लाख बार से ज्यादा देखा गया. इसे देखने वाले ज्यादातर मर्द थे, जिनकी संख्या करीब 61 प्रतिशत है. वास्तविक फुटेज से छेड़छाड़ कर बनाए गए वीडियो राजनीतिक स्कैंडल का कारण बन रहे हैं. उदाहरण के तौर पर एक वीडियो मलेशियाई सरकार के साथ-साथ गैबॉन में एक तख्तापलट की कोशिश का कारण बन चुका है. राष्ट्रपति ब्रूनो माउबाम्बा के एक वीडियो के साथ छेड़छाड़ किया गया था. इसमें उनके बयान को बदल दिया गया था.
डीपफेक के साथ-साथ 'शैलोफेक' भी एक समस्या है. इसमें वीडियो के साथ थोड़ा बहुत हेरफेर कर दिया जाता है. इसका मकसद एक विशेष राजनीतिक हथकंडे को बढ़ावा देना या राजनीतिक फायदा उठाना होता है. ऐसा ही एक वीडियो ट्रंप प्रशासन द्वारा शेयर किया गया था. इसमें सीएनएन के पत्रकार जिम एकोस्टा के शारीरिक व्यवहार में परिवर्तन कर दिया गया था जिससे ये लगे कि वे व्हाइट हाउस के प्रति अधिक आक्रामक व्यवहार कर रहे हैं, जबकि वास्तव में उनका व्यवहार उतना आक्रामक नहीं था. रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि प्रोफेशनल डीपफेक क्रिएटर्स, सर्विस पोर्टल और एप्स की संख्या बढ़ती जा रही है. ये ऑनलाइन धोखाधड़ी करने, जासूसी और राजनीतिक रूप से प्रेरित ट्रोल्स की मदद कर रहे हैं.
ट्रोल, धोखेबाज और जासूसों के लिए नया हथियार
पहले फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट के लिए सही तस्वीर उसके मूल स्रोत से ली जाती थी. इसका पता चल जाता था कि ये तस्वीर कहां से ली गई है. लेकिन अब गलत काम करने वाले उन लोगों की कृत्रिम तस्वीर भी बना सकते हैं जो मौजूद ही नहीं हैं और अब इसका पता लगाना भी मुश्किल होगा.
डिपट्रेस ने एक ऐसा मामला पाया जिसमें एक "विदेशी जासूसी ऑपरेशन" एक लिंक्डइन प्रोफाइल का इस्तेमाल कर खुद को अमेरिका के एकेडमिक होने का दावा कर रहा था. एक और मामला मिला जहां एक टि्वटर प्रोफाइल में बिजनेस पत्रकार होने का दावा किया गया लेकिन जांच में पाया गया कि यह कार कंपनी टेस्ला में निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने की कोशिश थी.
इसके साथ ही एक और चौंका देने वाली बात सामने आई है. वह यह है कि डीपन्यूड नामक एक नई तकनीक आई है. इस तकनीक के माध्यम से कपड़ा पहनी महिला की तस्वीर को स्कैन किया जा सकता है और उसे बिना कपड़ों के दिखाया जा सकता है. इस तकनीक को महिलाओं के लिए विकसित किया गया है और यह पुरुषों के शरीर पर काम नहीं करता है. हालांकि इसे बनाने वालों ने वेबसाइट से इसे हटा लिया है लेकिन इसका उपयोग अभी भी हो रहा है. जुलाई महीने में इसे किसी अज्ञात खरीददार को बेच दिया गया था.
वर्ष 2017 में एक यूजर द्वारा रेडिट वेबसाइट पर 'डीपफेक' टर्म दिया गया था. डीपट्रेस ने पाया कि सितंबर 2019 में 15 हजार डीपफेक वीडियो इंटरनेट पर मिले जो कि दिसंबर 2018 में आठ हजार ही थे. डीपफेक ऑनलाइन वेबसाइट और कम्युनिटी जैसी साइटों के करीब एक लाख सदस्य हैं.
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