देजा वूः क्या है इस रहस्यमय अनुभूति का विज्ञान
५ मई २०२३जरा रुकिए, क्या मैं आपसे पहले मिली हूं? आह! क्या मैं पहले यहां आ चुकी हूं? और हां, माफ कीजियेगा अगर आपको लग रहा है कि आप ये सब पहले पढ़ चुके हैं. पक्का देजा वू होगा.
क्या आप कभी नये शहर में गए, और वो शहर आपको पहचाना-परिचित सा लगा हो? या पहली बार किसी व्यक्ति को मिले हों लेकिन लगता हो कि पहले उनसे मिल चुके हैं या उन्हें देखा है? तो आप भी खुद को उन लोगों में शामिल समझिए जिन्होंने देजा वू का अनुभव किया है.
1876 में फ्रांसीसी दार्शनिक और शोधकर्ता एमिले बोराक ने ये शब्द गढ़ा था जिसका मतलब है, "पहले से देखा हुआ." लेकिन बुद्धिजीवियों ने इस परिघटना को प्लेटो के समय से समझने की कोशिश की है. प्लेटो ने ही इसे पूर्वजन्मों के एक प्रमाण के रूप में देखा था.
समकालीन समय में जिगमुंड फ्रायड ने "वर्तमान स्थिति में सुधार की कामना के साथ अवचेतन की फंतासी के पुनःसंग्रहण" के रूप में इसका वर्णन किया था. कार्ल युंग को लगा कि ये सामूहिक अवचेतन से संबंधित है, जबकि आधुनिक हॉलीवुड ने इसे ‘मैट्रिक्स में एक ग्लिच यानी गड़बड़ी' की तरह देखा.
वाशिंगटन डीसी की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में न्यूरोलजी के प्रोफेसर जेम्स जे जिओरडानो कहते हैं, "लेकिन ये कोई अलौकिक अवधारणा नहीं है. देजा वू का अनुभव कतई सामान्य सी बात है."
"देजा वू, किसी खास घटना, गतिविधि, विचार, चिंतन या भावना को दोहराने का, विशुद्ध रूप से एक व्यक्ति का सबजेक्टिव यानी आत्मपरक अनुभव होता है, भले ही वास्तविकता में वो चीज पहले कभी घटित ही न हुई हो."
करीब 90 फीसदी आबादी ने देजा वू का अनुभव किया है. उम्र ढलने के साथ इसकी आवृत्ति भी घटने लगती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों कभी-कभी आपको अचानक ये भुतहा सा अहसास होने लगता है?
विज्ञान का एक वास्तविक रहस्य
जिओरडानो ने डीडब्लू को बताया, "हमारा मस्तिष्क, बुनियादी रूप से दिक्-काल (स्पेस-टाइम) की मशीन की तरह काम करता है. ये हमारे वर्तमान की हर चीज को ग्रहण कर उसे हमारे अतीत की हूबहू या मिलतीजुलती या उलट किसी चीज से जोड़ देता है. इस तरह वो भविष्य के लिए अनिवार्यतः योजना बना पाने में सक्षम होगा. लेकिन ये संभावना भी है कि ये सिग्नल या संकेत घुलमिल जाए या आपस में गुंथ जाएं."
जिओरडानो कहते हैं कि मस्तिष्क के मध्य में स्थित थैलेमस क्षेत्र से इस परिघटना का कोई संबंध हो सकता है. श्रवण, स्वाद, स्पर्श आदि तमाम सूचनाएं आगामी विवेचना और प्रोसेसिंग के लिए थैलेमस से होते हुए ही मस्तिष्क के सेरेब्रल कॉरटेक्स (सबसे बाहरी परत) तक पहुंचनी चाहिए.
वो बताते हैं, "और अगर उन अंतःक्रियाओं की गति थोड़ा अलग होती है, तो हमें ऐसा लगता है कि हम वर्तमान का अनुभव कर रहे हैं, मानो वो हमें याद हो. तो असल में हमारा दिमाग अतीत को वर्तमान समझ बैठता है."
प्रोविडेंस, रोड आइलैंड की ब्राउन यूनिवर्सिटी में माइग्रेन रिसर्च और क्लिनिकल साइंसेस के एसोसिएट प्रोफेसर रोडेरिक स्पीयर्स इस बात से सहमत हैं कि देजा वू क्यों और कैसे घटित होता है, इसके बारे में कोई ठोस व्याख्या नहीं दी जा सकती.
शोधकर्ताओं के लिए भी किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल रहा है, क्योंकि देजा वू, लैब सेटिंग्स में यानी प्रयोगशाला के दायरे में रिप्रोड्यूस की जा सकने वाली परिघटना नहीं है.
समांतर ब्रह्मांड की खिड़की?
स्पीयर्स कहते हैं कि "इसका अध्ययन मुश्किल है क्योंकि ये स्वतः ही घटित होती है. हम लोग नहीं जानते कि लैब में देजा वू को फिर से कैसे संभव कराएं."
दशकों से, वैज्ञानिक इसके बारे में विभिन्न सिद्धांत पेश करते आए हैं. न्यूरोलॉजिकल नजरिए से एक लोकप्रिय सिद्धांत, दोहरी प्रोसेसिंग का है- जिसमें सूचना मस्तिष्क में स्टोर होकर अलग अलग प्रक्रियाओं के जरिए वापस निकाली जा सकती है.
मिसाल के लिए, आप अपनी बैठक में इस लेख को पढ़ रहे हैं. रसोई से आपकी मां के बनाए खाने की गंध हवा मैं तैर रही है, आपका पालतु जानवर सोफे में पड़ा है, आप अपने मोबाइल फोन पर नोटिफिकेशन की साउंड सुनते हैं, और अपनी देह पर धूप का स्पर्श महसूस करते हैं.
ये तमाम अनुभूतियां प्रोसेसिंग के दौरान जुड़ जाती हैं और एक इकलौती घटना की तरह इंटर्प्रेट की जाती है. डुअल प्रोसेसिंग थ्यरी के मुताबिक, इनमें से किसी भी इनपुट को प्रोसेस करने के दौरान अगर मस्तिष्क में जरा भी देरी होती है तो वो उस अनुभव को दो अलग अलग घटनाओं की तरह इंटर्प्रेट करता है जिससे आपको परिचित या पहचाना सा होने का अहसास होता है.
देजा वू को एक पैरेलल यूनिवर्स यानी समांतर ब्रह्मांड से जोड़ने को लेकर भी अध्ययन हुए हैं. सैद्धांतिक भौतिकविद् डॉ मिशियो काकू मानते हैं कि देजा वू एक तरह से स्मृति का लोचा या झोल है जो तब होता है जब मस्तिष्क में मौजूद स्मृतियों के अंश...उस पर्यावरण में जाने से प्रकाश में आते हैं जो हमारी अनुभव की हुई किसी चीज से मिलताजुलता है."
लेकिन अलग अलग ब्रह्मांडों के बीच फ्लिपिंग की संभावना पर भी उनके पास थ्योरी है. इस बारे में भी थ्योरी है कि क्या देजा वू हमें उन ब्रह्मांडों में हमारी स्थिति के बारे में कुछ बताने की कोशिश कर रहा हो सकता है.
तनाव के लक्षण के रूप में देजा वू
इस बारे में भी अध्ययन हुए हैं कि देजा वू में तनाव भी एक फैक्टर हो सकता है. जिओरडानो समझाते हैं, "मस्तिष्क आराम और स्फूर्ति की अवस्था में बेहतर काम करता है. जब आप बहुत ज्यादा तनाव और दबाव में होते हैं या बहुत ज्यादा चिंता कर रहे होते हैं तो मस्तिष्क थक जाता है. तो ऐसी सूरत में हमारी दिमागी हरकत का पैटर्न थोड़ा सा बदल जाता है. उन बदलावों को देखते हुए, देजा वू की अनुभूति कोई असामान्य बात नहीं."
स्पीयर्स ने ये भी बताया कि कम शिक्षित लोगों की अपेक्षा ज्यादा शिक्षित लोगो में देजा वू को अनुभव करने की प्रवृत्ति ज्यादा देखी जाती है. वो कहते हैं, "ज्यादा सफर करने वाले लोग, अपने सपने याद रख पाने वाले लोग और उदार ख्याल वाले लोग देजा वू का ज्यादा अनुभव कर सकते हैं."
क्या ये अस्वस्थ मस्तिष्क का संकेत है? "बिल्कुल भी नहीं," जिओरडानो कहते हैं. देजा वू हर समय स्वस्थ लोगों में घटित होता रहता है और 15 से 25 की उम्र के बीच सबसे ज्यादा कॉमन है.
लेकिन स्पीयर्स का सुझाव है कि साल में कुछ एक मर्तबा से ज्यादा- जैसे एक महीने में कई बार- अगर इसका अनुभव हो रहा है तो उस व्यक्ति को डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए.
वो ये भी रेखांकित करते हैं कि अगर देजा वू होश खो बैठने से जुड़ा है या असामान्य स्वप्न जैसी स्थिति से जुड़ा है, तो ये व्यक्ति में किसी गंभीर स्थिति का एक लक्षण हो सकता है.
उनके मुताबिक "इन चीजों पर गौर करना चाहिए कि चंद सेंकड से ज्यादा देजा वू का अनुभव हो रहा हो, या वास्तविक या अवास्तविक यानी असली या नकली के बीच भेद कर पाने में मुश्किल आ रही हो. या अचेत या अंजान व्यवहार जैसे बालों पर अंगुली फिराना या अपने हाथ पर चीजें न पकड़ पाना. इनके अलावा, हृदय-गति में तेजी या भय का तीव्र बोध, चिकित्सा आकलन की मांग करता है."
ऐसा इसलिए है क्योंकि दुर्लभ मामलो में, देजा वू, जकड़न या दौरे का एक संकेत है, खासकर मिर्गी के दौरे में. स्पीयर्स कहते हैं, "टेम्पोरल लोब से ही सबसे ज्यादा दौरे उभरते हैं. (यादों और ध्वनियों को प्रोसेस करने वाले मस्तिष्क के इस हिस्से में) ये दौरा तब पड़ता है जब ये लोब जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो उठता है और व्यक्ति अर्धचेतन अवस्था में होता है, पूरी तरह से बेहोश नहीं. ये अवस्था देजा वू का अहसास पैदा कर सकती है."
देजा वू से पैदा अहसास कैसा होता है, इसे लेकर एक व्यापक सहमति बन गई है, इसकी वजूहात को लेकर भी विभिन्न थ्योरियां आ चुकी हैं. लेकिन फिर भी वैज्ञानिकों के पास इस अद्भुत या अनूठी अनुभूति के बारे में अभी भी कोई निश्चित जवाब नहीं है. स्पीयर्स कहते हैं कि इस बारे में "हमारे पास अभी तक ठोस संरचनात्मक व्याख्या नहीं है."
रिपोर्टः अपर्णा राममूर्ति