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ड्रोन से दिखाई दिए अंडे देते दुर्लभ कछुए

१८ जनवरी २०२३

दुर्लभ लेदरबैक कछुओं को अंडे देते देखना थाईलैंड के वैज्ञानिकों के लिए अद्भुत अनुभव रहा. इसके लिए उन्होंने ड्रोन और थर्मल इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया.

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अंडे देते कछुए की थर्मल इमेज
अंडे देते कछुए की थर्मल इमेजतस्वीर: Department of Marine and Coastal Resources/Handout/REUTERS

थाईलैंड के समुद्री जीवन के संरक्षण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को एक अद्भुत नजारा देखने को मिला. उन्होंने एक लेदरबैक कछुए को अंडे देते देखा और उसकी तस्वीरें लीं. ये तस्वीरें रात के वक्त थर्मल इमेजिंग तकनीक के जरिए ड्रोन से ली गई.

लेदरबैक कछुआ दुनिया के विशालतम कछुओं की प्रजाति है. ड्रोन से दिखाई दिया कि कैसे वे कछुए समुद्र से निलकर किनारे पर आए और अंडे दिए. इन कछुओं को अंडे देते देखना वैज्ञानिकों के लिए इसलिए भी सुखद था क्योंकि इनकी संख्या लगातार कम हो रही है.

खत्म होते कछुए

लेदरबैक कछुओं को इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने खतरे में माना है और अपनी रेड लिस्ट का हिस्सा बनाया है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिकार, रहने की जगहों के कम होने और प्लास्टिक प्रदूषण के कारण इनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है.

अंडे देते कछुए को पिछले हफ्ते तब देखा गया जब वह समुद्र किनारे पहुंचा और उसने रेत में घोसला बनाया. कछुए अंडे देने के लिए यह घोसला बनाते हैं. इस घोसले में दिए गए अंडे अगले 55-60 दिन तक सुरक्षित रहेंगे और रेत के नीचे सेये जाते रहेंगे.

दुर्लभ जीव है लेदरबैक कछुआ
दुर्लभ जीव है लेदरबैक कछुआतस्वीर: Department of Marine and Coastal Resources/Handout/REUTERS

थाईलैंड के समुद्री और तटीय संसाधन विभाग (DMCR) की वेबसाइट कहती है कि 55-60 दिन के बाद इन अंडों में से बच्चे निकलेंगे और वे समुद्र की अपनी यात्रा शुरू कर देंगे. जब ये जन्म के फौरन बाद ये नन्हे कछुए समुद्र की ओर चलते हैं तो उनके लिए खासा खतरनाक समय होता है. उसी वक्त शिकारी पक्षी अन्य समुद्री शिकारी जीव उन पर हमला करते हैं. इसलिए सभी जन्मे कछुए समुद्र तक नहीं पहुंच पाते.

अहम है तकनीक

डीएमसीआर ने कहा है कि एक थर्मल ड्रोन के जरिए ये तस्वीरें ली गईं. यह पूरी प्रक्रिया इसलिए भी लाभदायक है क्योंकि आमतौर पर ये सूचनाएं किनारे पर पैट्रोलिंग करते अधिकारी मानवीय रूप से जमा करते हैं.

समंदर निगल रहा मछुआरों की जिंदगियां

ड्रोन के जरिए वैज्ञानिक कम समय में काफी जानकारियां जमा कर पाए हैं क्योंकि थर्मल ड्रोन के सेंसर शारीरिक ऊष्मा के आधार पर उन जानवरों की पहचान कर पाते हैं जिनका गर्म खून होता है. इसी तकनीक के जरिए अंधेरे में ये कैमरे जानवरों और उनके आसपास के वातावरण में मौजूद चीजों में आसानी से फर्क कर पाते हैं, जो कई बार मनुष्य की आंखों से चूक जाते हैं.

इस तकनीक के इस्तेमाल का एक फायदा यह भी है कि जब इंसान वहां से गुजरते हैं तो शोर होता है और रौशनी होती है जिससे अंडे देते कछुए परेशान हो जाते हैं. ड्रोन के जरिए बिना शोर किए वैज्ञानिक प्राणियों की उस अहम पल के दौरान भी तस्वीरें ले पाए.

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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