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अफ्रीकी नेताओं ने कहा, हमें ग्रीन एनर्जी के पचड़े से दूर रखो

१० मार्च २०२२

अफ्रीकी नेताओं का कहना है कि पारंपरिक ईंधन छोड़कर अक्षय ऊर्जा अपनाने के लक्ष्य विकासशील देशों पर नहीं थोपे जाने चाहिए. वे चाहते हैं कि उन्हें तेल उत्पादन करने दिया जाए.

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अफ्रीका में आज भी बड़ी आबादी ऊर्जा संसाधनों से महरूम है
अफ्रीका में आज भी बड़ी आबादी ऊर्जा संसाधनों से महरूम हैतस्वीर: DW

नाइजीरिया और इक्वेटोरियल गिनी के नेताओं का कहना है कि अक्षय ऊर्जा अपनाने का दबाव विकासशील देशों पर नहीं होना चाहिए क्योंकि वहां अभी भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें ऊर्जा का कोई साधन मुहैया नहीं है. बुधवार को दुनिया के ऊर्जा परिवर्तन के चलन के बारे में बोलते हुए इन तेल उत्पादक देशों ने कहा कि विकासशील देशों को उनकी रफ्तार से ही परिवर्तन का अधिकार होना चाहिए.

अमेरिका में हुए एक ऊर्जा सम्मेलन में बोलेत हुए नाइजीरिया के तेल मंत्री टिंपीरे मार्लिन सिल्वा ने कहा कि दुनिया के 90 करोड़ लोग ऐसे हैं जो ऊर्जा की आधारभूत जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते और उनमें से अधिकतर अफ्रीका में हैं. सिल्वा ने कहा, "हम तो अभी लकड़ी जलाने से गैस की ओर जा रहे हैं. कृपया हमें अपने तरीके से अवस्थांतर करने दें."

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इक्वेटोरियल गिनी के खनन और हाइड्रोकार्बन मंत्री गेब्रिएल ओबियांग लीमा ने भी सिल्वा की बात को आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर बनाया जा रहा दबाव बहुत अन्यायपूर्ण है और अवस्थांतर पर चर्चा तभी संभव है जबकि ऊर्जा सुरक्षा का संकट खत्म हो जाए.

मांग तो विकसित देशों में है

विकासशील देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन ऐंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) के 38 सदस्य देश हैं जिनमें से कुछ दो दुनिया के सबसे धनी देशों में शामिल हैं. यदि भारत, रूस और चीन को इनमें मिला दें तो दुनियाभर में तेल की मांग का दो तिहाई हिस्सा इन्हीं का है. बाकी देश, जिनमें अफ्रीका, एशिया का बड़ा हिस्सा और दक्षिण अमेरिका शामिल है, सिर्फ 31 प्रतिशत मांग के लिए जिम्मेदार है.

पूरी तरह ग्रीन नहीं है सोलर एनर्जी

मलयेशिया की सरकारी तेल कंपनी पेट्रोनस के अध्यक्ष तेंगकू मोहम्मद तौफीक ने कहा कि ऊर्जा सभी देशों का हक है. उन्होंने कहा, "हर उभरती अर्थव्यवस्था को भरोसमंद और सुरक्षित ऊर्जा हासिल करने का अधिकार है.” बहुत से ऐसे देश हैं जिनमें तेल की खोज अभी शुरुआती प्रक्रिया में है. इनमें घाना, गयाना और सूरीनाम भी शामिल हैं जिनका कहा है कि उनसे विकास के लिए तेल और गैस के फायदे छोड़ देने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.

तेल में घटता निवेश

नाइजीरिया की सरकारी पेट्रोलियम एजेंसी नाइजीरियन नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (एनएनपीसी) के जनरल मैनेजर बाला वुंती ने कहा, "वे चाहते हैं कि हम सभी, जिनमें कि वे लोग भी शामिल हैं जिनके पास खाना नहीं है, अवस्थांतर का बोझ ढोएं.”

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नाइजीरिया के तेल मंत्री सिल्वा ने कहा कि उनका देश दोहरा झटका झेल रहा है. उन्होंने कहा कि एक गैस की कीमतें बढ़ रही हैं, जो उन्हें आयात करनी पड़ती है, और फिर तेल में निवेश घटता जा रहा है. बैंक और वैश्विक फंड तेल में निवेश घटाने को जोर दे रहे हैं ताकि कार्बन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सके.

सिल्वा ने कहा कि निवेश की कमी के कारण नाइजीरिया को अपना प्रतिदिन तेल उत्पादन 18 बैरल से घटाकर 15 लाख बैरल करना पड़ा. उन्होंने कहा, "यह घटा हुआ उत्पादन रूसी तेल का विकल्प खोज रही दुनिया के काम आ सकता था.”

प्लास्टिक पाउच की समस्या से जूझते विकासशील देश

सिल्वा ने जोर देकर कहा कि अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश के कारण तेल परियोजनाओं के लिए पैसा घटता जा रहा है और तेल, गैस व कोयले का उत्पादन कम हो रहा है जिस कारण महंगाई बढ़ रही है.

वीके/सीके (रॉयटर्स)