नील नदी पर बने महा-बांध पर क्यों है विवाद
३ अगस्त २०२०इथियोपिया की राजधानी में हजारों लोगों ने बांध का काम आगे बढ़ने की खुशी मनाई. कई लोगों ने देश का झंडा लपेटा था तो कुछ बांध के समर्थन में पोस्टर लहरा कर नारे लगा रहे थे. ‘ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां' नाम के इस बांध में पहली भराई के जश्न के मौके पर सैकड़ों लोगों ने कारों के हॉर्न, सीटियां और ऊंचा संगीत बजाया. सोशल मीडिया पर भी यहां के हैशटैग ‘इट्स माई डैम' और ‘इथियोपिया नाइल राइट्स' ट्रेंड हुए.
इस तरह का पूर्व नियोजित लगने वाला समारोह असल में ‘वन वॉयस फॉर आवर डैम' नाम के अभियान का हिस्सा था. इसकी नींव 22 जुलाई को देश के राष्ट्रपति एबीये अहमद की उस घोषणा के कारण रखी गई, जिसमें राष्ट्रपति ने बताया था कि अच्छी बारिश के कारण पहली बार इस महा-बांध प्रोजेक्ट में बना रिजर्वॉयर पानी से भर सका है. अबीये ने कहा, "हमने पहली बार बिना किसी को परेशान किए, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए अपने बांध को भरने में कामयाबी पाई है. अब बांध के ऊपर से पानी बह रहा है."
बांध पर विवाद क्यों
पूर्वी अफ्रीका के देश इथियोपिया में ‘ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां' बांध करीब 4.6 अरब डॉलर की लागत से बनाया गया है. अधिकारियों को आशा है कि पूरी तरह सरकारी धन से बना यह बांध 2023 तक अपनी पूरी क्षमता से काम शुरू कर देगा और इससे भरपूर ऊर्जा पैदा की जा सकेगी. अभी इस बांध का काम लगभग 74 प्रतिशत ही पूरा हुआ है. इसे लेकर कई सालों से विवाद चला आ रहा है.
बांध को लेकर इथियोपिया का कई सालों से पड़ोसी देश मिस्र के साथ विवाद रहा है. दोनों देशों के बीच बातचीत की कोशिशें सफल नहीं हुईं और प्रोजेक्ट को लेकर गतिरोध बना रहा. इथियोपिया चाहता है कि इस पनबिजली बांध से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल वह अपने ऊर्जा निर्यात को बढ़ाने में करे. उसका मानना है कि इसकी मदद से देश के 11 करोड़ नागरिकों तक बिजली पहुंचाई जा सकती है और उन्हें गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है.
दूसरी तरफ 10 करोड़ की आबादी वाले मिस्र को डर है कि इस बांध के कारण उनके यहां पानी की सप्लाई घट जाएगी. इस समय मिस्र अपने देश में खेतों की सिंचाई, उद्योगों और घरेलू जरूरतों के लिए लगभग पूरी तरह से नील नदी के पानी पर ही निर्भर है. इथियोपिया कहता आया है कि मिस्र की चिंताएं बेकार हैं. इनके अलावा सूडान भी दोनों देशों के इस समीकरण में फंसा है. उसे भी चिंता है कि बांध के कारण उसके यहां नील नदी में पानी की आपूर्ति कम हो जाएगी.
इस पूरे मामले पर जताई जा रही चिंताओं को लेकर मध्यस्थों का कहना है कि सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि इथियोपिया कितनी पानी नीचे जाने वाली धारा में छोड़ेगा. उनका कहना है कि अगर ऐसा सूखा पड़ता है जो कई सालों तक जारी रहे, तो उस स्थिति में तीनों देश पानी के बंटवारे की समस्या का समाधान कैसे करेंगे. पहले भी कई बार इन सब मुद्दों को लेकर हो रही आपसी बातचीत अटक चुकी है. फिलहाल यह थोड़ी आगे बढ़ती नजर आ रही है.
आरपी/एनआर (एपी, डीपीए)
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