फुटबॉल टूर्नामेंट के दौरान क्यों बढ़ जाती है घरेलू हिंसा
१९ जून २०२४यूरोप इन दिनों यूरोपियन फुटबॉल चैंपियनशिप के खुमार में डूबा है. जर्मनी में हो रहे यूरो 2024 टूर्नामेंट में 24 देशों की फुटबॉल टीमें शामिल हैं. पूरी चैंपिनयनशिप के दौरान फैंस की भीड़ को काबू करना, सुरक्षा बंदोबस्त सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.
ऐसी खेल प्रतियोगिताओं के दौरान अपनी पसंदीदा टीमों का समर्थन कर रहे प्रशंसकों की भावनाएं चरम पर होती हैं. छुट्टी और उत्साह के माहौल में शराब का सेवन भी आमतौर पर बढ़ जाता है. ऐसे हालात कई बार खेल आयोजनों के बीच घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों की वजह बनते हैं.
इंग्लैंड की टीम के प्रदर्शन का घरेलू हिंसा से संबंध
यूरो 2024 में 16 जून को हुए इंग्लिश फुटबॉल टीम और सर्बिया के मैच से पहले, इंग्लैंड के कुछ शहरों की पुलिस को चेतावनी देनी पड़ी कि इस दौरान घरेलू हिंसा के मामले बढ़ सकते हैं. इस अंदेशे के मद्देनजर इंग्लैंड के वार्कविकशर शहर प्रशासन ने अपील की है कि यूरो कप के दौरान घरेलू हिंसा के पीड़ित उनसे संपर्क करें.
शहर के डिटेक्टिव चीफ डेविड एंड्रूज ने स्पष्ट किया कि प्रशासन यह नहीं कह रहा कि बड़े फुटबॉल टूर्नामेंट के कारण घरेलू हिंसा होती है, लेकिन इस दौरान लोग ज्यादा शराब पीते हैं. ऐसे में आयोजनों के दौरान उग्र भावनाएं मौजूदा हालात को बदतर बना सकती हैं.
लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी के आंकड़े बताते हैं कि जब इंग्लैंड की टीम मैच हारती है, तो घरेलू हिंसा के मामले 38 फीसदी तक बढ़ जाते हैं. जब टीम जीतती है या कोई मैच ड्रॉ होता है, तो इन मामलों में 26 फीसदी की बढ़त दर्ज की जाती है. ऐसे मामलों की पीड़ित सबसे अधिक संख्या में परिवार की महिलाएं, खासकर पत्नियां और गर्लफ्रेंड होती हैं.
यूरो कप 2020 के दौरान भी इंग्लैंड के अलग-अलग शहरों के प्रशासन ने "घरेलू हिंसा को रेड कार्ड दिखाएं" नाम का जागरूकता अभियान चलाया था. ना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट, बल्कि राष्ट्रीय और स्थानीय टूर्नामेंट, यहां तक कि कॉलेज टीमों के बीच होने वाले मैचों के दौरान भी हिंसा की ऐसी घटनाएं सामने आती हैं.
"अब और चोट नहीं"
फुटबॉल में इंग्लैंड की हार या जीत का नतीजा घरेलू हिंसा के रूप में सामने ना आए, इसके लिए बाकायदा अभियान चलाए जा रहे हैं. इंग्लैड की संस्था सोलेस और नेशनल सेंटर फॉर डॉमेस्टिक वॉयलेंस ने यूरो कप से पहले "अब और चोट नहीं" नाम से अभियान शुरू किया. इसका मकसद टूर्नामेंट के दौरान महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा के मुद्दे पर जागरूकता फैलाना है.
अभियान के तहत एक वीडियो भी जारी किया गया, जिसमें महिलाएं कहती नजर आईं कि मैच के बाद होने वाली हिंसा उन्हें मंजूर नहीं है. इस मैच के लिए उन्होंने 'साइन अप' नहीं किया है.
सिर्फ यूरो कप ही नहीं, बल्कि फीफा और दूसरे फुटबॉल टूर्नामेंट से पहले भी स्थानीय प्रशासन और गैर-सरकारी संगठन घरेलू हिंसा को लेकर सचेत हो जाते हैं. हालांकि, खेलों में हावी भावनाएं कैसे घरेलू हिंसा का रूप ले लेती हैं, इस पर बेहद कम शोध हुए हैं.
क्या शराब भी है हिंसा की वजह?
इंग्लैंड-सर्बिया मैच को "हाई रिस्क" की श्रेणी में रखा गया था. मैच के दौरान प्रशंसकों को स्टेडियम के अंदर केवल दो बीयर लाने की इजाजत दी गई थी. यह फैसला दोनों टीमों के प्रशंसकों के बीच हिंसा की आशंका को देखते हुए लिया गया था.
जर्नल साइंस डायरेक्ट की एक रिसर्च में गैर-एथलीट आबादी की तुलना में एथलीट आबादी के बीच शराब के सेवन और हिंसा की दर अधिक पाई गई. रिसर्च में यह भी बताया गया कि स्पोर्ट्स, खासकर टीम स्पोर्ट्स में भागीदारी और खतरनाक स्तर तक शराब पीना आपस में जुड़े हुए हैं. 2016 में हुए यूरो कप के दौरान फ्रांस ने संवेदनशील इलाकों में शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था.
खेलों पर हावी 'मर्दानगी' की भावना
आज खेलों में महिलाओं और क्वीयर खिलाड़ियों की भागीदारी जरूर बढ़ी है. हालांकि, अधिकतर खेल चाहे वह क्रिकेट हो या फुटबॉल, वहां पुरुषों की टीमों के मैच को ही अधिक देखा जाता है. इसलिए हमेशा से ही मर्दानगी को खेलों का एक अहम पहलू माना गया है.
खासकर अगर जिक्र प्रशंसकों की राष्ट्रीय टीमों से जुड़ी भावनाओं का किया जाए, तो यहां 'मर्दानगी' हावी नजर आती है. खेलों के दौरान या उसके बाद होने वाली हिंसक घटनाओं के पीछे इसकी उग्र भावना भी अहम भूमिका निभाती है. खेलों को एक जरिया माना गया है, जिसके तहत छोटी उम्र से ही लड़कों को सख्त और मजबूत बनाया जा सकता है.
बड़े खेल आयोजन कैसे घरेलू हिंसा को बढ़ावा देते हैं, इस मुद्दे पर बात हमेशा किसी बड़े टूर्नामेंट के आस-पास ही शुरू होती है. इस मसले पर अधिक जागरूकता और शोध की जरूरत है, ताकि इसे लेकर नीतियां बनाई जा सकें. ये हिंसक घटनाएं किसी टीम की हार जीत पर निर्भर करती हैं और बेहद कम समय में होती हैं. अधिकतर मामले तो दर्ज भी नहीं हो पाते.