इस साल यूरोप को नहीं है सर्दियों का डर
२७ सितम्बर २०२३रूस पर कई दशकों तक सस्ती गैस की सप्लाई के लिए निर्भर रहने के बाद पिछले साल बाल्टिक सागर के रास्ते रूस से जर्मनी आने वाली नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन में हुए धमाके ने यूरोप को रूसी गैस से दूर कर दिया. अब ऐसा लग रहा है कि यूरोप की रूसी गैस पर वह निर्भरता दोबारा कभी नहीं आएगी.
यूक्रेन पर हमलेसे पहले यूरोप में आने वाली कुल गैस का 15 फीसदी हिस्सा नॉर्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन के रास्ते आया. यह आंकड़ा ऑक्सफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी स्टडीज का है. गैस के लिए एक दूसरी पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम 2 भी बना ली गई लेकिन उसके रास्ते गैस कभी आई नहीं.
पाइपलान पर हुए हमले के वक्त गैस की कीमतें पहले की तुलना में तीन गुना बढ़ गई थीं. उद्योगों को गैस का खर्च घटाने के लिए उत्पादन घटाने पर मजबूर होना पड़ रहा था.
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रूस का विकल्प
अब कीमतें काफी नीचे आ चुकी हैं. यूरोपीय गैस के डच टाइटल ट्रांसफर फैसिलिटी में गैस एक साल पहले के 180 यूरो के मुकाबले 40 यूरो पर बेची जा रही है. नीति बनाने वालों का कहना है कि उद्योग काफी संवेदनशील स्थिति में हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक है और महंगाई ऊंची. हालांकि उनका यह भी कहना है कि उन्होंने मामले को और बिगाड़ने में सक्षम रूसी ताकत का उपाय ढूंढ लिया है. यूरोपीय संघ के ऊर्जा आयुक्त कादरी सिम्सन ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हमारे लिए सबसे बड़ा जोखिम यह था कि रूस हमारे ऊर्जा बाजारों में चालाकी दिखा सकता है. अब उनके पास यह सुविधा नहीं है." सिम्सन ने कहा कि संघ ने वैकल्पिक आपूर्ति की ढुलाई का इंतजाम बहुत कम समय में सुधार लिया है.
यूक्रेन पर हमले से पहले रूस हर साल 155 अरब घन मीटर गैस यूरोप भेजा करता था. इसमें से ज्यादातर गैस पाइपलाइनों के जरिए आती थी. 2022 में पाइप के सहारे सिर्फ 60 अरब घन मीटर गैस ही रूस से आई. इस साल यह मात्रा गिरकर 20 अरब घन मीटर ही रह जाएगी. गैस की सप्लाई में इस कमी से जूझने के लिए मांग और आपूर्ति दोनों को संभालना जरूरी था.
आपूर्ति के मोर्चे पर यूरोपीय संघ के लिए पाइपलाइन से गैस के सबसे बड़े सप्लायर के रूप में नॉर्वे ने रूस की जगह ले ली है. इसके अलावा लिक्विफाइड नेचुरल गैस का आयात कई देशों से काफी ज्यादा बढ़ गया है जिसमें अमेरिका सबसे आगे है.
गैर रूसी गैस के आयात के लिए पिछले साल ग्रीस और पोलैंड में नई पाइपलाइनें खोली गईं. फिनलैंड, जर्मनी, इटली और नीदरलैंड्स ने नए एलएनजी इंपोर्ट टर्मिनल खोल दिए हैं. ऐसे कई और टर्मिनल फ्रांस और ग्रीस में भी बनाने की योजना है.
यूरोप में रूसी गैस का सबसे बड़ा खरीदार जर्मनी था. अब उसने खासतौर से नए बुनियादी ढांचे पर काफी ध्यान दिया है.
जर्मनी ने तीन फ्लोटिंग स्टोरेज एंड रिगैसिफिकेशन, एफएसआरयू खोले हैं. इनकी मदद से रूसी गैस की जितनी मात्रा नॉर्ड स्ट्रीम वन से आती थी उसके आधे हिस्से की भरपायी की जा सकती है.
तेल और गैस वाले हीटिंग सिस्टम से कैसे पीछा छुड़ा रहा है जर्मनी
सप्लाई बढ़ाने के लिए यूरोप ने संयुक्त रूप से गैर-रूसी गैस की खरीदारी शुरू की है. इसके साथ ही बैकअप रूल भी पेश किया गया है. जिसके तहत पड़ोसी देश संकट की स्थिति में अपनी गैस बांटेंगे. पूरे यूरोपीय संघ में गैस का भंडार लगभग 95 फीसदी भरा हुआ है. अगर यह पूरी तरह से भरी रहे तो यह यूरोपीय संघ की जरूरत का करीब एक तिहाई हिस्सा पूरा कर सकती है.
उद्योगों पर असर
ऊर्जा की कमी से बचने की एक बड़ी वजह है मांग में कमी जो ऊंची कीमतों के कारण हुई. हालांकि यूरोपीय संघ और सरकारों की नीतियों ने ऊर्जा की बचत में भी बड़ा योगदान दिया.
मौसम ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई क्योंकि गुजरे साल सर्दियों का मौसम उतना ठंडा नहीं था. इस वजह से लोगों ने हीटिंग का कम इस्तेमाल किया. पिछली बार यूरोप ऊर्जा इस्तेमाल के लिहाज से सबसे अधिक मांग वाले मौसम को भी आसानी से झेल गया और उस दौरान उसके भंडार पूरी तरह भरे हुए थे. यह गैस अब इस साल इस्तेमाल होगी. आमतौर पर ऐसा नहीं होता.
सर्दियों के बारे में अनिश्चितता के अलावा कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ऊर्जा के घटे इस्तेमाल का नतीजा संघ में कम हुई औद्योगिक गतिविधियों के रूप में स्थाई रूप से रह सकता है.
क्या ऊर्जा संकट के कारण पिछड़ जाएगा जर्मन उद्योग
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के इस तिमाही में सिकुड़ने के आसार है क्योंकि सेंट्रल बैंक के मुताबिक देश के उद्योगों में मंदी चल रही है. आईसीएएस के गैस एनालिटिक्स के प्रमुख टॉम मार्जेक मानसर का कहना है, "यूरोप बदले आयतन को संभालने में सफल रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि यह आर्थिक गतिविधियों की कीमत पर हुआ है."
गैस की मांग में कुछ कमी यूरोप में अक्षय ऊर्जा पर बढ़ी निर्भरता की वजह से भी हुआ है जिसके लिए जोरशोर से कोशिशें की जा रही हैं. यूरोप में इस साल के आखिर तक 56 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा के नए संयंत्र काम करने लगेंगे जो 18 अरब घनमीटर गैस की जगह इस्तेमाल हो सकते हैं.
जानकारों का कहना है कि आने वाली सर्दियों के लिए यूरोप काफी सुविधाजनक स्थिति में हैं. पिछले साल अगस्त में गैस की कीमत 343 यूरो मेगावॉट प्रति घंटे तक चली गई थी. इस साल ऐसा होने के कोई आसार नहीं हैं. हालांकि वैश्विक स्थर पर गैस का बाजार थोड़ा तंग है. ऐसे में यह जोखिम बना हुआ है कि अगर मौसम बिगड़ता है या फिर कहीं से सप्लाई में दिक्कत आती है तो कीमतें बढ़ सकती है. रूस बाकी पाइपलाइनों से गैस या एलएनजी की सप्लाई रोक दे जो वह अभी भी दे रहा है तो स्थिति बिगड़ सकती है.
एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)