यूरोप बन गया है हथियार आयात का गढ़ः सिप्री
१४ मार्च २०२२रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोपीय देशों द्वारा अपनी सैन्य क्षमताएं बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है. लेकिन स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि युद्ध शुरू होने से पहले ही यूरोप हथियार आयात का गढ़ बन चुका था.
सिप्री की रिपोर्ट कहती है कि 2017 से 2021 के बीच इसके पिछले पांच साल की तुलना में दुनियाभर में हथियारों के निर्यात में 4.6 प्रतिशत की कमी देखी गई लेकिन यूरोप में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई. सिप्री की रिपोर्ट के लेखकों में से एक सीमन वेजेमान ने बताया, "यूरोप नया गढ़ है. हम अपना सैन्य खर्च बढ़ाने वाले हैं. यह बढ़त थोड़ी-बहुत नहीं, बहुत ज्यादा होगी. हमें नए हथियार चाहिए और इनका बड़ा हिस्सा आयात किया जाएगा, जो यूरोपीय देशों के अलावा अमेरिका से आएगा.”
यूरोप के कई देशों ने ऐलान किया है कि वे अपनी सैन्य क्षमताओं पर ज्यादा खर्च करेंगे. इनमें यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी भी शामिल है, जिसने हाल ही में अपनी ऐतिहासिक नीतियों में बदलाव करते हुए सैन्य खर्च बढ़ाने का ऐलान किया था. डेनमार्क और स्वीडन ने भी ऐसी ही घोषणाएं की हैं.
यूक्रेन युद्ध ने बढ़ाया डर
यूक्रेन पर रूस के हमले ने यूरोपीय देशों में भय को और बढ़ा दिया है और वे एफ-35 जैसे लड़ाकू विमान, मिसाइल और गोला-बारूद आदि पर खर्च बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं. वेजेमान कहते हैं, "इनमें से ज्यादातर चीजें वक्त लेने वाली हैं. पूरी एक प्रक्रिया है जिसका पालन करना होगा. फैसला करना, ऑर्डर देना, उत्पादन करना आदि. इस सब में दो-एक साल तो लगते हैं.”
वैश्विक उद्योग के लिए रूसी टाइटेनियम की अहमियत
वेजेमान कहते हैं कि यूरोप में चलन में तब्दीली 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया कब्जा लेने के बाद ही शुरू हो गई थी और अब उसके असर नजर आने लगे हैं. उनके मुताबिक पिछले पांच साल में वैश्विक हथियार व्यापार में यूरोप का हिस्सा 10 प्रतिशत से बढ़कर 13 प्रतिशत हो गया है और आने वालों में यह और ज्यादा बढ़ेगा. हालांकि हथियार समझौतों के दौरान बरती जाने वाली गोपनीयता और बिना धन के बांटे जाने वाले हथियारों के चलते सटीक आंकड़े हासिल करना पाना मुश्कि होता है लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया का सालाना हथियार व्यापार 100 अरब डॉलर यानी लगभग 76 खरब रुपये से ज्यादा का है.
सिप्री के मुताबिक एशिया और ओशेनिया बीते पांच साल में सबसे बड़े हथियार आयातक रहे हैं और कुल हथियारों का सबसे अधिक, लगभग 43 प्रतिशत यहीं गया है. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक हैं- भारत, ऑस्ट्रेलिया, चीन, दक्षिण कोरिया, पाकिस्तान और जापान.
वैसे पिछले पांच साल में क्षेत्र में हथियारों का आयात करीब पांच प्रतिशत घट गया है लेकिन पूर्व एशिया (20%) और ओशेनिया (59%) में हथियार आयात में खासतौर पर वृद्धि दर्ज की गई है. रिपोर्ट कहती है, "चीन और कई अन्य देशों के बीच तनाव ने एशिया और ओशेनिया में हथियारों के आयात को प्रभावित किया है.”
भारत, सऊदी अरब सबसे ऊपर
मिडल-ईस्ट हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा बाजार रहा है और कुल आयात का 32 हिस्सा इसी क्षेत्र में पहुंचा है, जो पिछले पांच साल में तीन प्रतिशत बढ़ा है. वेजेमान कहते हैं, "तेल की मौजूदा कीमतें बताती हैं कि वे खूब पैसा कमाने वाले हैं और यह कमाई अक्सर हथियारों के ज्यादा आयात में परिवर्तित होती है.”
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अमेरिका और अफ्रीका में हथियारों के आयात में बड़ी कटौती दर्ज की गई है. दोनों अमेरिका महाद्वीपों और अफ्रीका में कुल आयात का सिर्फ 6 प्रतिशत ही पहुंचा. अमेरिका में 36 प्रतिशत और अफ्रीका में 34 प्रतिशत कम हथियार आयात किए गए.
देशों की बात करें तो सबसे ज्यादा 11-11 प्रतिशत हथियार भारत और सउदी अरब ने खरीदे. मिस्र (5.7 प्रतिशत), ऑस्ट्रेलिया (5.4 प्रतिशत) और चीन (4.8 प्रतिशत) सूची में सबसे ऊपर हैं.
हथियार निर्यात करने में अमेरिका 39 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर रहा है. रूस बीते पांच साल में दूसरे स्थान पर बना रहा है लेकिन उसका हिस्सा गिरकर 19 प्रतिशत रह गया है, जो चीन द्वारा आयात कम करने के कारण हुआ है. फ्रांस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है. उसने 11 प्रतिशत हथियार निर्यात किए हैं. चीन (4.6) और जर्मनी (4.5) भी सबसे ज्यादा हथियार बेचने वालों में शामिल हैं.
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)