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जर्मन सरकार को कैसे कमजोर कर सकते हैं ईयू चुनाव के नतीजे

८ जून २०२४

यूरोपीय संघ (ईयू) की संसद के लिए मतदान हो रहा है. चुनाव के नतीजे जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) और गठबंधन सरकार में उनके सहयोगियों को झटका दे सकते हैं.

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जर्मनी की संसद में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स (दाहिनी ओर) और अर्थव्यवस्था और जलवायु मंत्री रोबर्ट हाबेक
ओलाफ शॉल्त्स की गठबंधन सरकार के कार्यकाल को करीब ढाई साल हो चुके हैं और उनकी लोकप्रियता घट रही है.तस्वीर: Annegret Hilse/REUTERS

6 से 9 जून तक हो रहे यूरोपीय संघ (ईयू) के संसदीय चुनाव जर्मनी में ओलाफ शॉल्त्स के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार पर दबाव बढ़ा सकते हैं. तीन महीने बाद जर्मनी के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां धुर-दक्षिणपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) को बढ़त मिलने का अनुमान है.

2025 में जर्मनी का अगला आम चुनाव भी होना है. ऐसे में कई राजनीतिक विश्लेषक शॉल्त्स के चांसलर पद पर बने रहने की संभावनाएं कमजोर बता रहे हैं. चुनावी नतीजे ना केवल ब्रसेल्स स्थित यूरोपीय संसद, बल्कि जर्मनी की घरेलू राजनीति को भी प्रभावित कर सकते हैं.

ईयू के चुनाव का जर्मनी पर असर

6 जून को नीदरलैंड्स में मतदान के साथ ईयू चुनाव की शुरुआत हुई. जर्मनी में 9 जून को मतदान होना है. पहले से ही संघर्ष कर रही शॉल्त्स की गठबंधन सरकार को नतीजों से कोई बड़ी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. राजधानी बर्लिन समेत जर्मनी के अन्य शहरों में सड़क किनारे लगे एसपीडी के पोस्टर "यूरोप के लिए जर्मनी की सबसे मजबूत आवाज" मुहैया कराने का वादा कर रहे हैं.

पोस्टरों पर शॉल्त्स और ईयू चुनावों में एसपीडी की प्रमुख उम्मीदवार कातारीना बार्ली की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हैं. राजनीति विज्ञानी लोथर पोब्स्ट के मुताबिक, चांसलर शॉल्त्स को यूरोप में मजबूत आवाज की तरह नहीं देखा जाता. पोब्स्ट ने जर्मन अखबार हांडेल्सब्लाट से बातचीत में कहा, "उनकी पार्टी के लिए नतीजे मामूली रहे, तो उनका जनाधार और कम होने का अंदेशा है और वह अपनी ही पार्टी के भीतर समर्थन खो सकते हैं."

इंटरनेशनल एयरोस्पेस एक्जिबीशन में बोलते हुए जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स
यूरोपीय संसद के लिए 9 जून को जर्मनी में मतदान है. सर्वेक्षणों में शॉल्त्स की पार्टी एसपीडी का जनाधार कम होता दिख रहा है. सहयोगी ग्रीन्स पार्टी और फ्री डेमोक्रैट्स के लिए भी कोई बड़ी राहत नहीं दिख रही है. तस्वीर: Reuhl/Fotostand/IMAGO

सर्वेक्षणों में कैसा अनुमान

चुनावी सर्वेक्षणों में एसपीडी फिलहाल लगभग 14 फीसद वोट पाती दिख रही है. 2019 में उसे 15.8 प्रतिशत वोट मिले थे. हालांकि, 2021 के संघीय चुनाव में पार्टी को मिले 25.7 प्रतिशत वोटों से यह काफी कम है. वैसे तो यह जनाधार भी सामान्य ही था, लेकिन उस जीत ने अंगेला मैर्केल के नेतृत्व में क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के 16 साल के शासन के बाद एसपीडी को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाया.

केवल एसपीडी ही नहीं, गठबंधन में उसके सहयोगियों के लिए भी स्थितियां बेहतर नहीं हैं. 2019 के ईयू चुनाव में 20.5 फीसदी मत पाने वाली ग्रीन्स पार्टी सर्वेक्षणों में इस बार 13 प्रतिशत के आसपास है. फ्री डेमोक्रैट्स (एफडीपी) को केवल चार फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. कुल मिलाकर गठबंधन को 31 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना है. अगर जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में इन पार्टियों का यही प्रदर्शन रहा, तो वे बहुमत से काफी पीछे होंगे.

घट रही है शॉल्त्स की लोकप्रियता

बड़ी संख्या में जर्मन नागरिक भी शॉल्त्स से असंतुष्ट दिख रहे हैं. एक हालिया सर्वे में बतौर चांसलर उनके कामकाज की रेटिंग 59 प्रतिशत रही, जो कि अच्छी नहीं है. शॉल्त्स की गठबंधन सरकार के कार्यकाल को करीब ढाई साल हो चुके हैं और उनकी लोकप्रियता घट रही है.

बढ़ते इमिग्रेशन, महंगाई और आर्थिक मंदी को लेकर कई चिंताएं हैं. इसने भी धुर-दक्षिणपंथ को फायदा पहुंचाया है. 2022 में जर्मनी में नेट इमिग्रेशन सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया. इसकी बड़ी वजह युद्ध से बचकर आ रहे यूक्रेनी शरणार्थियों की बड़ी संख्या थी. शरण पाने के आवेदन बीते सालों में बढ़ते रहे, लेकिन 2024 में इसमें कमी आई है. सरकार इसका श्रेय ले रही है.

इसके अलावा ऊर्जा नीति भी एक बड़ा मुद्दा है. घरों-इमारतों को गर्म रखने के पुराने हीटिंग सिस्टमों की जगह अक्षय ऊर्जा पर आधारित व्यवस्था लाना भी विवादित रहा है. अहम मुद्दों पर गठबंधन के घटक दलों के बीच लगातार असहमति बने रहना भी समर्थन घटने की एक वजह माना जाता है.

यूक्रेन में जारी युद्ध और आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार के कारण लोग महंगाई का भी सामना कर रहे हैं. पिछले साल जर्मनी को एक बार फिर "यूरोप के बीमार आदमी" की संज्ञा दे दी गई थी.

9 जून को जर्मनी में ईयू के संसदीय चुनाव के लिए मतदान होना है. तस्वीर में सड़क किनारे लगे एसपीडी, ग्रीन्स और सीडीयू के चुनावी पोस्टर दिख रहे हैं.
चुनावी सर्वेक्षणों में एसपीडी फिलहाल लगभग 14 फीसद वोट पाती दिख रही है. 2019 में उसे 15.8 प्रतिशत वोट मिले थे. तस्वीर: Goldmann/picture alliance

सितंबर में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव

माक्स बेकर और निकोलाई फॉन ओंडार्जा, जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्यॉरिटी अफेयर्स (एसडब्ल्यूपी) में शोधकर्ता है. यह संस्थान नीतिगत मुद्दों पर सरकार को सलाह भी देता है. बेकर और ओंडार्जा कहते हैं कि ईयू के चुनावी नतीजे और सितंबर में जर्मन राज्यों में हो रहे चुनाव "सत्तारूढ़ दलों के लिए चेतावनी" हो सकते हैं.

अगर नतीजे सर्वेक्षणों के मुताबिक रहे, तो सीडीयू-सीएसयू करीब 30 फीसदी वोट पाकर जर्मनी में सबसे अच्छा प्रदर्शन कर सकती है. ये नतीजे अगले साल होने वाले जर्मनी के चुनावों में चांसलरी वापस पाने में उन्हें बढ़त दिला सकते हैं.

वहीं, एक के बाद एक हुई कई हालिया घटनाओं के कारण एएफडी की लोकप्रियता घटी है. हालांकि, 15 फीसदी मतों के साथ 2019 के मुकाबले अब भी ईयू चुनाव में उनका प्रदर्शन बेहतर रहने का अनुमान है. यह नतीजा सितंबर में हो रहे सेक्सनी, थुरिंजिया और ब्रांडेनबुर्ग के विधानसभा चुनावों में उनका मनोबल बढ़ाएगा.

अनुमान है कि एएफडी 25 से 34 फीसदी तक वोट पा सकती है. वैसे तो मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने एएफडी के साथ सहयोग करने या गठबंधन करने की संभावनाओं से इनकार किया है, लेकिन चुनाव में एएफडी को बढ़त मिलने का मतलब है कि रुढ़िवादी पार्टियां वोट ना गंवाने के लिए माइग्रेशन जैसे विषयों पर ज्यादा सख्त रुख की ओर बढ़ रही हैं.

यूरोपीय संसद के चुनाव में किसे चुनेंगे जर्मन वोटर

सरकार को तेजी लाने की जरूरत

कई जानकारों का मानना है कि शॉल्त्स गठबंधन का कमजोर प्रदर्शन ब्रसेल्स में जर्मनी के कद पर असर डाल सकता है. ईयू की प्रवासन नीति या कंबश्चन इंजन को इस्तेमाल से बाहर करने जैसे मुद्दों पर भीतरी कहा-सुनी ने पहले ही यूरोप में जर्मनी की अहम भूमिका को नुकसान पहुंचाया है.

बर्लिन के अखबार टागेसश्पीगल के मुख्य संपादक श्टेफान आंद्रेयास कसडॉर्फ ने लिखा है कि अगर मौजूदा गठबंधन सरकार जलवायु नीति जैसे मुद्दों पर अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्व निभाना चाहती है, तो उसे नए सिरे से शुरुआत करने की सख्त जरूरत है.

कसडॉर्फ जोर देकर लिखते हैं कि जलवायु नीति पर पर्याप्त कदम ना उठाने के लिए हाल ही में एक प्रांतीय अदालत ने जिस तरह जर्मन सरकार की आलोचना की, उसके बाद "बर्लिन को अपने कामकाज में बेहतरी लाने की जरूरत है."

एसएम/आरपी (डीपीए)