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समाज

इस्राएल-गजा संकट: बच्चों की सच्ची-झूठी तस्वीरों का इस्तेमाल

१९ मई २०२१

घायल बच्चों को ढोते पिता, लाशों पर रोती माएं, टूटते घरों को देखते उदास बच्चे. इस्राएल और हमास के बीच गजा में जारी संघर्ष के बीच इस तरह की तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिख रही हैं. क्या वे सारी तस्वीरें सच्ची होती हैं?

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2014 की तस्वीर में फलस्तीनी बच्चीतस्वीर: Mohammed Abed/AFP/Getty Images

जब भी कोई बड़ा हादसा या हमला होता है तो लोग उसकी तस्वीरों और वीडियो को सोशल मीडिया पर जल्द से जल्द शेयर कर देना चाहते हैं. अक्सर इन तस्वीरों के साथ लिखा होता है कि वे उनके अपनों की तस्वीरें हैं जो खो गए हैं या नहीं रहे. लेकिन कई बार यह विवाद की ओर ध्यान खींचने या गलत सूचना फैलाने की तरकीब भी होती है.

भावनात्मक ब्लैकमेल के लिए बच्चों का इस्तेमाल

सीरिया, कश्मीर या फिर मौजूदा गजा विवाद के बाद सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरों की बाढ़ आ जाती है जो अक्सर फर्जी निकलते हैं. घायल हुए बताए जाने वाले लहु-लुहान बच्चों की तस्वीरें अक्सर एक तरफ को ध्यान खींचने के लिए पोस्ट की जाती हैं. कई बार ये तस्वीरें किसी दूसरे देश, दूसरे समय या दूसरे विवाद की होती हैं और इनका मकसद होता है भावनात्मक ब्लैकमेल. कई बार तस्वीरें सही होती हैं लेकिन उन्हें गलत तरीके से या गलत परिप्रेक्ष्य में पेश कर दिया जाता है. या फिर ऐसा भी होता है कि सही तस्वीरों को फर्जी बता दिया जाता है. यहां कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं.

इस तस्वीर में मलिक नाम की एक छोटी बच्ची है जो कथित तौर पर गजा पर इस्राएल के हमले में मारी गई. इस तस्वीर को सैकड़ों बार अलग-अलग भाषाओं में ट्वीट किया गया जबकि असल में एक सामान्य से रिवरिस सर्च से पता चला कि यह तस्वीर रूस की सोफी की है, जो अब पांच साल की हो चुकी है. दो साल पहले यह तस्वीर सोफी की मां ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट की थी और सोफी की ताजा तस्वीर मॉस्को के एक चिड़ियाघर की है जहां वह जानवरों के साथ अठखेलियां करती दिखती है.

पुरानी तस्वीरों का इस्तेमाल

गजा किस दर्द से गुजर रहा है यह दिखाने के लिए अपनी किताबें हाथ में थामे एक रोती छोटी बच्ची की तस्वीर न जाने कितनी बार वायरल हो चुकी है. यह तस्वीर असल में कहां ली गई, यह तो पता नहीं है लेकिन फिलीस्तीनी फोटोग्राफर फादी अब्दुल्लाह दावा करते हैं कि उन्होंने यह तस्वीर उत्तरी गजा में 2014 में ली थी. उसके बाद से जब भी विवाद बढ़ता है, यह तस्वीर वायरल होने लगती है. लेकिन यही तस्वीर काबुल के स्कूल पर तालिबान के हमले और सीरिया में इदलिब के सिलसिले में भी पोस्ट की जाती रही है.

हाल के दिनों में एक और तस्वीर जो फलस्तीन के बच्चों की जिंदगी का हाल बताते हुए पोस्ट हुई, उसमें एक बच्चा गिरे हुए मकानों के मलबे के बीच खड़ा दिखता है. यह तस्वीर है तो गजा की ही, लेकिन गेटी इमेज के मुताबिक यह 19 अक्टूबर 2014 को ली गई थी. एजेंसी के अनुसार फलस्तीनी बच्चा गजा के शेजैया इलाके में है जो हमास और इस्राएल के बीच 50 दिनों तक चले विवाद में तहस नहस हो गया था.

अन्य विवादों की तस्वीरें

ऐसा नहीं है कि बच्चों की तस्वीरों का यह इस्तेमाल एकतरफा है. इसका एकदम उलटा भी होता है. जैसे गजा में जारी मौजूदा विवाद पर सोशल मीडिया को खंगालते हुए डॉयचे वेले ने पाया कि पुराने विवादों की तस्वीरें जैसे सीरिया आदि के वक्त की तस्वीरों को तकनीकी की मदद से एक दूसरे के साथ मिलाकर इस तरह पोस्ट किया जाता है कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाए. जैसे कि अपनी छोटी बहन को थामे एक लड़के की तस्वीर अलेपो में 14 फरवरी 2014 को हुए एक हवाई हमले के बाद की है. एक अन्य तस्वीर इलाज करवाते एक सीरियाई बच्चे की है, जिसे 29 अक्टूबर 2015 को फोटोग्राफर और पैरामेडिक अब्द डूमैनी ने खींचा था.

फोटो कोलाज में तीसरी तस्वीर अपने बच्ची की मौत पर सिसकते फिलीस्तीनी पिता की है. गेटी इमेज के मुताबिक यह तस्वीर मोहम्मद आबिद ने गजा पट्टी के एक अस्पताल में 10 मई 2021 को ली थी. एजेंसी ने कहा है कि स्थानीय प्रशासन के अनुसार हवाई हमले में 9 लोग मारे गए, लेकिन ये साफ नहीं था कि वे इस्राएली हमले के शिकार हुए थे.

डॉयचे वेले ने बहुत ज्यादा शेयर हो रहे एक वीडियो की भी जांच की. इस वीडियो में दावा किया गया कि फलस्तीन में हमलों की वजह से तबाही को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए मेकअप किया जा रहा है. लेकिन जांच में पता चला कि वीडियो तो असली है लेकिन एक फर्जी दावे के साथ पेश किया जा रहा है. असली वीडियो 2017 का है जब फलस्तीन के कुछ मेकअप आर्टिस्ट यह वीडियो फ्रांस की एक समाजसेवी संस्था डॉक्टर्स ऑफ द वर्ल्ड के लिए एक प्रोजेक्ट के तहत यह वीडियो बना रहे थे. यह वीडियो 2017 से ही शेयर किया जा रहा है और सीरिया युद्ध के संदर्भ में भी इसे पोस्ट किया जाता रहा है.

रिपोर्ट: तात्याना क्लूग, रैचल बेग

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