क्या भारत यूरोप के तेल प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहा है?
१ जुलाई २०२२क्या भारत रूस से कच्चा तेल बहुत ज्यादा खरीद रहा है?
रूस में इगोर फेडोरोव्स्की नाम के एक ट्विटर यूजर दावा करते हैं, "भारत मौजूदा परिस्थितियों और रूस पर लगे प्रतिबंधों का फायदा उठाते हुए रूस से 40 फीसदी के डिस्काउंट पर कच्चा तेल खरीद रहा है."
डॉयचे वेले के फैक्ट चेक में यह बात सही पाई गई.
24 फरवरी को जब से रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया है, तब से भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने रूस से कच्चे तेल के आयात को बढ़ा दिया है. फिनलैंड स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एअर यानी सीआरईए के मुताबिक रूस के आक्रमण की शुरुआत से ही ये आयात बहुत तेजी से बढ़े हैं. रिपोर्ट के मुताबिक रूस अभी तक भारत को अपने कुल कच्चे तेल का एक फीसद निर्यात करता था, जो मई तक बढ़कर 18 फीसदी हो गया है. सऊदी अरब और इराक जैसे देशों को रूस से मिलने वाले कच्चे तेल में काफी कमी आई है.
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भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति में इस बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण कच्चा तेल सस्ते दामों पर उपलब्ध होना है. साथ ही, भारतीय उपमहाद्वीप में तेल की बढ़ती मांग भी एक वजह है. ओपीईसी के मुताबिक भारत में तेल की मौजूदा मांग 47 लाख बैरल प्रति दिन है, जो अगले साल तक बढ़कर 51.5 बैरल प्रति दिन तक हो जाएगी. ब्रिटिश पेट्रोल यानी बीपी के "स्टेटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी 2021" के मुताबिक साल 2020 में भारत में प्रतिदिन तेल का उत्पादन महज 7.7 लाख बैरल था.
बीपी के मुताबिक भारत दुनिया में तेल का तीसरा बड़ा उपभोक्ता है. इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन यानी आईबीईएफ का अनुमान है कि साल 2045 तक भारत में तेल की मांग लगभग दोगुना बढ़कर 110 लाख बैरल प्रति वर्ष हो जाएगी. आईबीईएफ भारत सरकार को रिपोर्ट करता है.
क्या यूरोप को तेल निर्यात करना भारत के लिए फायदेमंद है?
जर्मन लेफ्ट पार्टी के सदस्य डोमिनिक लेहमान लिखते हैं, "भारत रूस के कच्चे तेल का शोधन करता है और उसे अमेरिका और यूरोपीय संघ को बेच देता है. सच में, पूंजीवाद का यह बेहतरीन उदाहरण है."
डॉयचे वेले फैक्ट चेक कहता है कि इस दावे को साबित नहीं किया जा सकता.
यह सच है कि भारत ने हाल ही में तेल का आयात और निर्यात दोनों बहुत ज्यादा बढ़ाया है. भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार 2022 में अप्रैल और मई के महीनों में तेल का आयात और निर्यात कुल 15.99 अरब डॉलर का रहा, जबकि पिछले साल यह सिर्फ 8.94 अरब डॉलर था.
सीआरईए इस तथ्य से यह निष्कर्ष निकाल रहा है कि रूस के कच्चे तेल का भारत में शोधन यानी प्रसंस्करण हो रहा है. इंटरनेशनल एनर्जी कंसल्टिंग फर्म रिस्टैड एनर्जी ने भी इससे सहमति जताते हुए 20 जून को बताया था, "उम्मीद थी कि रूसी कच्चे तेल का कारोबार अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बंद हो जाएगा, लेकिन रूस के कच्चे तेल पर भारी छूट ने उसके लिए कई वैकल्पिक बाजारों के रास्ते खोल दिए."
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के चलते रूस के कच्चे तेलों की ढुलाई और उनका व्यापार काफी महंगा हो गया था, लेकिन दाम में छूट दिए जाने के कारण कुछ दूसरे प्रसंस्करणकर्ता इसे नजरअंदाज नहीं कर पाए. भारत में पहले ईरानी तेल शोधित किया जाता था और यदि एक बार रूसी तेल का शोधन शुरू हो जाता है और वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंच जाता है, तो दोनों में अंतर करना लगभग असंभव हो जाएगा.
भारत के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े भी इन व्यापारिक परिवर्तनों को दर्शाते हैं. इस साल अप्रैल में भारत से यूरोपीय संघ को होने वाले तेल के निर्यात की कीमत एक अरब डॉलर थी, जबकि पिछले साल अप्रैल में भारत के तेल उत्पादों का यूरोपीय संघ को निर्यात 28.70 करोड़ यूरो का था.
उत्तर अमेरिका ने भी भारत से तेल आयात में बढ़ोत्तरी की है. अप्रैल 2022 में कुल आयात चार करोड़ 35 लाख डॉलर का था, जबकि पिछले साल अप्रैल में यह दो करोड़ 20 लाख डॉलर ही था.
हालांकि, यह जानना अभी बाकी है कि खनिज तेल का निर्यात क्या वास्तव में भारत के लिए लाभकारी है. सीआरईए के मुताबिक रूस से कच्चे तेल की खरीद पर भारी छूट भले मिल रही हो, बावजूद इसके महंगी ढुलाई और अन्य खर्चे इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगा ही बना रहे हैं.
क्या भारत रूस पर लगे तेल प्रतिबंधों को नजरअंदाज कर रहा है?
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में इंटरनेशनल हिस्ट्री के प्रोफेसर इमेरिटस एलन स्केड लिखते हैं, "एशियाई देशों को रूस से सस्ता कच्चा तेल मिल रहा है, इसलिए वे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को नजरअंदाज कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि भारत लोकतंत्र को पसंद नहीं करता."
डॉयचे वेले के फैक्ट चेक में पता चलता है कि यह वक्तव्य भ्रमित करने वाला है.
रूस पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है, जो भारत के वहां से कच्चा माल खरीदने पर प्रतिबंध लगाता हो. सिर्फ अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने ही पूरी तरह से रूस के तेल, गैस और कोयले पर प्रतिबंध लगाया है. यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम ने रूस के खिलाफ और कठोर प्रतिबंध लगाने का फैसला तीन जून को किया है. वे प्रतिबंधों को लेकर लगातार ढुलमुल रवैया अपनाए हुए हैं.
ब्रिटेन ने इस साल के आखिर तक रूस के तेल उत्पादों पर प्रतिबंध को कई चरणों में लागू किया. यूरोपीय संघ में कोयले का आयात अगस्त से ही प्रतिबंधित है और जहाज से तेल के आयात पर प्रतिबंध दिसंबर से लगा है. पाइपलाइन के जरिए तेल और गैस के परिवहन पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
प्रतिबंध लागू होने से पहले ही पश्चिमी देशों की कई तेल कंपनियों ने अतिरिक्त सप्लाई के लिए समझौते किए हैं और रूस द्वारा कच्चे तेल की कीमतों पर मिल रही रियायत का वे भी लाभ उठा रहे हैं. यूरोप की तमाम जहाज कंपनियां तो प्रतिबंधों की वजह से जहाज परिवहन के लंबे मार्गों का भी फायदा उठा रही हैं.
सीआरईए के मुताबिक इस साल अप्रैल और मई में भारत और मध्य पूर्व में रूसी कच्चे तेल के 75 फीसद का परिवहन ग्रीक टैंकरों के जरिए हुआ.
निष्कर्ष: भारत रूस के खिलाफ लगे तेल प्रतिबंधों को नजरअंदाज कर रहा है या नहीं, यह तभी स्पष्ट हो पाएगा, जब यह पूरी तरह से लागू होगा. रिस्टैड एनर्जी के वाइस प्रेसीडेंट वी चांग हो कहते हैं कि कच्चा तेल कहां से आ रहा है, यह पता लगाना फिर भी मुश्किल होगा. हो कहते हैं, "रूस का कच्चा तेल कहां जा रहा है, इस पर नजर रखना एक चुनौती होगी. हां, यूरोप चाहे तो भारत से पेट्रोल, डीजल और दूसरे तेल उत्पादों का आयात बंद कर सकता है, क्योंकि उनमें रूस के कच्चे तेल का अंश मिला हुआ है."