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पाक-चीन दोस्ती पक्की, पर फायदा सिर्फ चीन का?

४ अगस्त २०१७

दुनिया के सबसे ऊंचे दर्रे से होकर गुजरने वाले काराकोरम हाइवे को चीन-पाकिस्तान फ्रेंडशिप हाइवे भी कहा जाता है. लेकिन इस दोस्ती का फायदा क्या सिर्फ चीन को हो रहा है? चीन में बसे कुछ पाकिस्तानी कारोबारी तो ऐसा ही मानते हैं.

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Chinesischer Präsident Xi Jinping in Pakistan
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/Pang Xinglei

1,300 किलोमीटर लंबा यह हाईवे चीन के पश्चिमी शहर कशगर से पाकिस्तान के पंजाब प्रांत तक आता है. गिलगित से होकर गुजरने वाला यह दो लेन का हाइवे चीन के लिए पाकिस्तान के साथ उसकी मजबूत दोस्ती का प्रतीक है जिसे चीन ने अरबों डॉलर के निवेश के साथ सींचा हैं.

लेकिन चीन में रहने वाले बहुत पाकिस्तानी कारोबारी मानते हैं कि दोस्ती का ज्यादातर फायदा सिर्फ चीन को हो रहा है. चीन के शहर ताशकुरगान में कीमती पत्थरों के कारोबारी मुराद शाह कहते हैं, "चीन कहता है कि हमारी दोस्ती हिमालय से ऊंची और समंदर से गहरी है लेकिन इसमें कोई दिल नहीं है. इस दोस्ती से पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं हो रहा है. इससे सिर्फ चीन की ताकत मजबूत हो रही है."

हाल ही में चीन ने सड़क के जरिए कशगर को पाकिस्तान के अहम बंदरगाह ग्वादर से जोड़ने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना भी शुरू की है. यह प्रोजेक्ट चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना का हिस्सा है. इसके जरिये चीन आज के दौर में सड़क और जल मार्गों के जरिये प्राचीन सिल्क रूट को फिर से साकार करना चाहते है.

2013 में चीन और पाकिस्तान ने 46 अरब डॉलर के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत चीन-पाकिस्तान कोरिडोर के आसपास परिवहन और ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करेगा. इसी के तहत काराकोरम हाईवे को फिर से बनाने और अपग्रेड करने पर भी सहमति बनी.

दोनों देशों का कहना है कि इस परियोजना से चीन और पाकिस्तान, दोनों को फायदा होगा. लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान करते हैं. चीन को होने वाला पाकिस्तान का निर्यात 2016 की आखिरी छमाही में लगभग आठ प्रतिशत गिर गया है जबकि इस दौरान पाकिस्तान में चीन से होने वाले आयात में 29 फीसदी का उछाल देखने को मिला है.

इतना ही नहीं, मई महीने में पाकिस्तान ने चीन पर आरोप लगाया कि वह उसके बाजार में सस्ते दामों पर बेतहाशा स्टील उतार रहा है. पाकिस्तान ने ऊंचा शुल्क लगाने की धमकी भी दी. वॉशिंगटन के सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टटीज के जोनाथन हिलमैन कहते हैं, "पाकिस्तानी निर्यात को लेकर बहुत उम्मीदें और सपने हैं. लेकिन अगर आप चीन से जुड़ रहे हैं तो फिर आप उसे क्या निर्यात करेंगे?"

चीन के शिनचियांग में कुछ पाकिस्तानी कारोबारी ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि आर्थिक कोरिडोर से कुछ फायदा होगा. लेकिन देश में सुरक्षा के हालात और जटिल कस्टम नियम उन्हें बाधा दिखायी पड़ते हैं. कशगर में रहने वाले एक पाकिस्तानी कारोबारी मोहम्मद कहते हैं, "अगर आप चीन से सामान लेते हैं तो कोई समस्या नहीं है. लेकिन अगर आप पाकिस्तानी सामान लाते हैं तो उस पर लगने वाला शुल्क ही तय नहीं है. आज यह पांच प्रतिशत है और कल को 20 प्रतिशत हो सकता है. कभी कभी तो वे सीधे सीधे कह देते हैं कि इसकी अनुमति नहीं है."

शाह बताते हैं कि तीन साल पहले लापिस लाजुली नाम के नीले पत्थरों पर उनसे प्रति किलो 15 युआन लिये गये थे. अब यह शुल्क बढ़ाकर 50 युआन प्रति किलो कर दिया गया है. वहीं कस्टम अधिकारियों का कहना है कि बहुत सारी चीजें हैं जिनसे शुल्क तय होता है और उनके बारे में निश्चित तौर पर बताना मुश्किल है.

शिनचियांग प्रांत में हाल के दिनों में सुरक्षा भी सख्त हुई है. एक बड़ी मुस्लिम आबादी वाले इस प्रांत में असंतोष और हिंसक घटनाओं को देखते हुए दसियों हजार सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया है. ऐसे में, वहां रहने वाले पाकिस्तानी कारोबारियों को संदेह की निगाह से देखा जाता है. कभी कभी तो एक ही दिन में उन्हें कई बार जांच से गुजरना पड़ता है.

मोहम्मद को उम्मीद है कि आर्थिक कोरिडोर से चीजें आसान होंगी, लेकिन सख्त सुरक्षा नियम हमेशा एक बाधा बन रहेंगे. उनका इरादा चीन में अभी तीन साल और रहने का है. मोहम्मद के बाद देखेंगे कि क्या करना है. उनके मुताबिक, "बहुत से लोग तो पहले ही वापस जा चुके हैं."

एके/ओएसजे (एएफपी)