जी20: आम सहमति बनाने में कितने कामयाब होंगे मोदी
८ सितम्बर २०२३जी20 शिखर सम्मेलन में विशेष रूप से रूस और चीन की भूमिका पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में 15वें ब्रिक्स सम्मेलन के इतर मुलाकात हुई थी.
दोनों नेताओं के बीच क्षेत्र में शांति और एलएसी पर तनाव कम करने जैसे मुद्दे पर बातचीत भी हुई. लेकिन उसके ठीक बाद चीन ने अपना "स्टैंडर्ड मैप" जारी किया, जिसमें भारत के अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीनी सीमा में दिखाया था.
चीन और रूस की भूमिका
भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, "चीन की ये पुरानी आदत है. चीन द्वारा अन्य देशों के क्षेत्रों को अपना बताने से सच्चाई नहीं बदलेगी." जानकार चीन द्वारा "स्टैंडर्ड मैप" जारी करने को एक जानबूझकर उठाया गया कदम बताते हैं.
ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन में पोस्टडॉक्टरल फेलो सना हाशमी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "दो महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलनों, जी20 और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन से ठीक पहले मैप जारी करना एक जानबूझकर उठाया गया कदम प्रतीत होता है.
सना कहती हैं, "इसे अपने क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने की चीन की व्यापक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है. इसके अलावा यह स्थिति को कूटनीतिक रूप से संबोधित करने में चीन की इच्छा की कमी को रेखांकित करता है."
अगर बात रूस की जाए तो पुतिन भी नहीं आ रहे हैं. दरअसल पुतिन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया हुआ है. आईसीसी ने मार्च 2023 में पुतिन की गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था. दक्षिण अफ्रीका आईसीसी के स्थापना घोषणा पर दस्तखत करने वालों में शामिल है और यही वजह है कि वे दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के लिए नहीं गए.
ऐसे में अगर पुतिन उसके भूभाग में दाखिल होते तो आइसीसी का सदस्य होने के नाते दक्षिण अफ्रीका को उनकी गिरफ्तारी में सहयोग करना होता. हालांकि भारत के साथ ऐसा नहीं है क्योंकि वह आईसीसी का सदस्य नहीं है. जानकार कहते हैं कि हो सकता है कि जी20 में रूस-यूक्रेन का मुद्दा उठ सकता है और ऐसे में पुतिन की आलोचना भी हो सकती है.
साझा बयान पर सहमति का सवाल
भारत पर सबसे बड़ा दबाव है कि दो दिनों के शिखर सम्मेलन के बाद एक साझा बयान पर सहमति बनवा पाए और उसे जारी करवा पाए. जी20 के विदेश मंत्रियों और वित्त मंत्रियों की बैठक में रूस-यूक्रेन का मुद्दा छाया रहा है और मतभेद के कारण साझा बयान जारी नहीं हो सका. भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एक तटस्थ रुख अपनाया है. प्रधानमंत्री मोदी ने एससीओ समिट के इतर राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात में कहा था "आज का युग युद्ध का नहीं है."
रूस से कच्चा तेल खरीदने के मसले पर भारत ने यूरोपीय देशों को साफ संदेश दिया था कि वो अपना हित देख रहा है. कई विशेषज्ञों ने भारत के तटस्थ रूख पर सवाल भी उठाए, लेकिन अब तक भारत इसमें संतुलन बनाने में सफल रहा है. जी20 पर इसका कितना असर होगा यह सम्मेलन का सबसे बड़ा केंद्र बिंदु होगा. क्या शिखर सम्मेलन के अंत में सभी देश आपसी सहमति से साझा बयान जारी करते हैं या नहीं यह आज का बड़ा सवाल है.
वरिष्ठ पत्रकार और विदेश नीति की विशेषज्ञ स्मिता शर्मा कहती हैं, "रूस और चीन जो कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पॉवर रखते हैं, जी20 क्वी प्रमुख अर्थव्यवस्था हैं, सामरिक रणनीति के खिलाड़ी हैं. इनका नहीं होना अपने आप में दर्शाता है कि जी20 में आज की तारीख में कोई समन्वय बिठाना रणनीतिक मुद्दों पर या सहमति बना पाना कितना मुश्किल हो गया है."
साझा बयान किसी भी शिखर सम्मेलन के लिए बेहद अहम दस्तावेज होता है. देश इसके जरिए जताते हैं कि वे कई मुद्दों पर एक जैसी सोच रखते हैं. इस लिहाज से चाहे कोई भी अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हो या फिर शिखर सम्मेलन उसके साझा बयान का जारी किया जाना बेहद जरूरी होता है. इसके जारी ना होने से संदेह को बल मिलता है.
यूक्रेन युद्ध की छाया
जानकार कहते हैं कि साझा बयान की चुनौती भारतीय कूटनीति के लिए है ही. जानकारों का कहना है कि यूक्रेन जैसे मामलों का हल कॉन्फ्रेंस हॉल में कम ही निकलता है और ऐसे में कूटनीति की दुनिया में जो परंपरा रही है, उसके मुताबिक भारतीय कूटनीति को बाकी दस्तावेज का मसौदा तैयार कर उस पर आम सहमति की दिशा में काम करना चाहिए.
स्मिता शर्मा डीडब्ल्यू हिंदी से कहती हैं, "जी20 अर्थव्यवस्था के मद्देनजर एक फोरम बनाया गया था. उसमें राजनीति का हावी हो जाना, द्वित्तीय विश्व युद्ध के बाद से जितने भी ब्रेटन वुड्स संस्थान हैं या वैश्विक स्तर पर जिस तरीके से बहुराष्ट्रवाद मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है. संयुक्त राष्ट्र हो, दूसरे पुराने संस्थान हो जैसे जी7, इसमें दुनिया के काफी सारे देशों का भरोसा कम हुआ है, ये सिर्फ भारत के ऊपर दबाव नहीं है कि मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है, बल्कि जी20 पर और दुनिया में गहन चिंतन है कि आज चाहे जितने भी संजीदा मुद्दे हैं उस पर एक साथ बैठ कर सहमति नहीं बना पा रही हैं."
बीते दिनों भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा था कि यूक्रेन युद्ध का मसला भारत की प्राथमिकता में नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता विकास के मुद्दे हैं. दरअसल रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर भारत संभल-संभलकर चल रहा है. इसलिए मंत्री स्तर के साझा बयान पर भी ज्यादा जोर नहीं दिया गया था. अगर जी20 देश यूक्रेन युद्ध पर आम सहमति नहीं बना पाए तो शायद 2008 के बाद यह पहली बार होगा कि शिखर सम्मेलन के आखिर में साझा बयान जारी नहीं होगा.
जी20 सम्मेलन के पहले समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर संघर्ष का हल बातचीत से निकले. मोदी ने आम सहमति के मुद्दे पर कहा, "कई क्षेत्रों में अलग-अलग संघर्ष हैं. इन सभी को बातचीत और कूटनीति के जरिए हल करने की जरूरत है. कहीं भी किसी भी संघर्ष पर हमारा यही रुख है. दुनिया जी20 की ओर देख रही है. अगर हम एकजुट हों तो हम सभी इन चुनौतियों को बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं."
वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर का मानना है कि रूस-यूक्रेन का मुद्दा जी20 में उठ सकता है, लेकिन रूस पहले ही कह चुका है कि वह इस पर कोई चर्चा होने नहीं देगा. कपूर कहते हैं, "भारत ने इस संघर्ष में एक ईमानदार मध्यस्थ होने की कुछ विश्वसनीयता दिखाई, लेकिन वैश्विक शक्तियों और यहां तक कि कीव के पास इस बारे में अपने विचार थे कि युद्ध कैसे समाप्त होना चाहिए. यही कारण है कि भारत की मध्यस्थता करने की कोशिश बेनतीजा रही है."