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जर्मनी में तुर्की के पत्रकारों पर छापे

१८ मई २०२३

जर्मनी में तुर्की के दो पत्रकारों को कुछ देर के लिए हिरासत में लिया गया. विरोध में तुर्की ने जर्मन राजदूत को तलब किया.

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जर्मनी में अखबारों का स्टैंड
तस्वीर: Hartmut Schmidt/imageBROKER/picture alliance

शुरुआती मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि जर्मन पुलिस ने तुर्की के कुछ पत्रकारों को "गिरफ्तार" किया है. लेकिन बाद में जर्मन पुलिस और अभियोजकों ने एक बयान जारी किया. बयान के मुताबिक सर्च ऑपरेशन के दौरान पत्रकारों को कुछ देर के लिए "हिरासत" में लिया गया और फिर रिहा कर दिया गया. आधिकारिक तौर पर कोई गिरफ्तारी नहीं की गयी.

जर्मन पुलिस की कार्रवाई पर नाराजगी जताते हुए तुर्की के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है. बयान में कहा गया, "जर्मन पुलिस का आज बिना किसी सफायी के सबाह अखबार के फ्रैंकफर्ट ब्यूरो के प्रतिनिधियों को हिरासत में लेना तुर्क मीडिया के खिलाफ उत्पीड़न और डर फैलाने वाला कदम है."

जर्मन अधिकारियों ने किसी भी व्यक्ति का नाम सार्वजनिक नहीं किया. उन्होंने सिर्फ यही कहा कि हिरासत में लिये गये  पुरुषों की उम्र 46 से 51 साल के बीच थी.

तुर्की में फिर चमके एर्दोवान मगर दूसरे चरण में होगा जीत का फैसला

जर्मन भाषा में भी छपने वाला दैनिक अखबार सबाह, तुर्की की सरकार का समर्थन करता है. तुर्की के मीडिया के मुताबिक जर्मन अधिकारियों ने अखबार के दो सीनियर रिपोर्टरों इस्माइल एरेल और केमिल अल्बे को हिरासत में लिया. एरेल, जर्मनी में सबाह के सबसे सीनियर रिपोर्टर हैं और अल्बे, यूरोप में सबाह के चीफ एडिटर हैं.

तुर्की में अब कितने जरूरी रह गये हैं एर्दोवान

तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण के नतीजों के बाद यह कार्रवाई की गयी. कांटे की टक्कर वाले चुनावों में तुर्की के राष्ट्रपति रैचप तैयप एर्दोवान ने पूर्वानुमानों को धता बताकर बढ़त हासिल की. तुर्की के विदेश मंत्रालय का आरोप है कि जर्मन पुलिस की कार्रवाई की टाइमिंग बता रही है कि इसे "जानबूझकर" किया गया.

कड़े चुनावी मुकाबले का सामना कर रहे हैं तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान
कड़े चुनावी मुकाबले का सामना कर रहे हैं तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोवानतस्वीर: Emrah Gurel/AP/picture alliance

छापों के बारे में क्या कहते हैं जर्मन अधिकारी?

जर्मन अभियोजकों और हेसे प्रांत की पुलिस ने छापों के बाद बुधवार को एक संयुक्त बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि प्राथमिक जांच के लिए दो निजी अपार्टमेंटों की तलाशी ली गई. सबाह अखबार ने जर्मनी में रह रहे एर्दोवान के विरोधी फतहुल्ला गुलेन के समर्थक बारे में जानकारी छापी थी. माना जा रहा है कि ऐसी जानकारी छापना जर्मनी के प्राइवेसी लॉ का उल्लंघन है.

जर्मन अधिकारियों के बयान के मुताबिक, "निजी डाटा को इस तरह फैलाना कि जिससे किसी व्यक्ति की सुरक्षा खतरे में पड़े, इस शक के आधार पर डार्मश्टाड के अभियोजक दफ्तर की प्राथमिक जांच के मद्देनजर, पुलिस ने दो पत्रकारों के निजी निवासों की तलाशी ली, दोनों की उम्र 46 और 51 साल है." 

"ऑपरेश के दौरान जांचकर्ताओं ने इलेक्ट्रॉनिक डाटा स्टोरेज डिवाइसेज और अन्य संभावित सबूत सीज किये. क्रिमिनल पुलिस की गतिविधियों के नतीजे के आधार पर दोनों पुरुषओं को फिर रिहा कर दिया गया." पुलिस और अभियोजकों के मुताबिक जांच जारी है, इसीलिये इससे ज्यादा जानकारी नहीं दी जा सकती.

जर्मन शहर लाइपजिग स्थित यूरोपियन सेंटर फॉर प्रेस एंड मीडिया फ्रीडम नाम के गैरसरकारी संगठन ने पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा, "इस मामले पर नजर रखी जाएगी. प्रेस की आजादी बरकरार रहनी चाहिए, हम न्याय और पारदर्शिता की मांग करते हैं."

दूसरे चरण में एर्दोवान के सामने मौजूद रहेंगे केमाल कुरुचदारू
दूसरे चरण में एर्दोवान के सामने मौजूद रहेंगे केमाल कुरुचदारूतस्वीर: MURAD SEZER/REUTERS

ऐसी रिपोर्टिंग पर बवाल क्यों?

हाल ही में सबाह अवरुपा (सबाह यूरोप) के फ्रंट पेज पर एक आदमी के जर्मनी स्थित निजी आवास की तस्वीर छापी गयी. रिपोर्ट में कहा गया कि यह फतहुल्लाह गुलेन के समर्थक का घर है. जर्मन कानून के तहत ऐसी निजी जानकारी छापने पर सख्त पाबंदियां हैं.

तुर्की ने लटकाई स्वीडन और फिनलैंड की नाटो मेम्बरशिप

तुर्की गुलेन, उनके सहयोगियों और कुर्द कार्यकर्ताओं को आतंकवादी या अपराधी कहता है. इनमें से ज्यादातर लोग यूरोप और उत्तरी अमेरिका में रहते हैं. ये लोग जिन देशों में रहते हैं, उनके साथ तुर्की के रिश्ते तनावपूर्ण बने रहते हैं. तुर्की द्वारा स्वीडन की नाटो मेम्बरशिप लटकाना, इसका एक उदाहरण है. तुर्की का आरोप है कि स्वीडन ने कुर्द आतंकियों को पनाह दी है.

तुर्की के बाहर सबसे ज्यादा तुर्क जर्मनी में रहते हैं. जर्मनी में रहने वाले करीब 15 लाख तुर्क, पोस्टल बैलेट के जरिए तुर्की के चुनावों में वोट डाल सकते हैं. दूसरे चरण में जा चुके राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे तय करने में इन वोटों की अहम भूमिका है.

ओएसजे/सीके (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)