जर्मनी में समलैंगिकों की "कनवर्जन थेरेपी" पर लगा बैन
८ मई २०२०जर्मनी में नए कानून के बनने से वे सारी तथाकथित "कनवर्जन थेरेपी" बैन हो गई हैं जिनमें किसी व्यक्ति के सेक्शुअल ओरिएंटेशन या लैंगिक पहचान को दबाकर उसे किसी तरह विषमलिंगी बनाने की कोशिश की जाती है. खुद भी घोषित रूप से समलैंगिक जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान ने कहा है, "समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं होती है इसलिए उसके लिए थेरेपी शब्द का इस्तेमाल पहले ही गलत है."
नए कानून के अनुसार, 18 साल से कम के नाबालिगों के लिए ऐसी कनवर्जन थेरेपी का किसी भी तरह प्रचार करने या ऐसी सेवाएं देने पर प्रतिबंध लग गया है. इसका उल्लंघन करने वालों को एक साल तक की जेल की सजा या 30,000 यूरो तक का भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है. ऐसे माता-पिता या अभिभावक जो अपने बच्चों को ऐसे प्रोग्राम करवाने के लिए भेजते हैं, उन पर भी देखभाल के अपने दायित्व के उल्लंघन का आरोप लगेगा.
इस तरह की थेरेपी की काफी समय से आलोचना होती रही है कि इसके कारण लोगों को तमाम तरह की गंभीर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक तकलीफें झेलनी पड़ती हैं. कई अध्ययन दिखा चुके हैं कि प्रभावित लोगों में अवसाद, घबराहट और आत्महत्या की रुझान बढ़ जाती है. हालांकि इस कानून में इस तरह की गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाया गया है फिर भी यह प्रावधान है कि अगर किसी वयस्क को भी झूठ बोलकर, धोखे से या धमकी देकर ऐसी थेरेपी में भेजा जाए तो उस मामले में भी सजा मिलेगी.
कानून देता है ‘साफ संकेत'
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की कंजर्वेटिव पार्टी, सरकार में उनकी गठबंधन सहयोगी सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी और उदारवादी एफडीपी पहले से ही इस तरह का प्रतिबंध लगाने के पक्ष में रही हैं. धुर दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी ने मोटे तौर पर अब तक इस मुद्दे से दूरी बना रखी है. लेफ्ट पार्टी और ग्रीन पार्टी इस पर वोटिंग से बाहर रहे हैं लेकिन उनका तर्क रहा है कि यह कानून वयस्क युवाओं को सुरक्षित रखने के लिए काफी नहीं है.
जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग में मतदान से पहले स्वास्थ्य मंत्री श्पान ने विपक्षी पार्टियों के आरोपों के जवाब में कहा कि ऐसा नहीं है कि इससे 18 से 26 साल वाले युवाओं को सुरक्षा नहीं मिलेगी. उन्होंने इस बारे में विस्तार से नहीं बताया कि बैन में इस तरह की आयुसीमा क्यों रखी गई है.
जर्मन कानून के अंतर्गत, नाबालिगों को सुरक्षित रखना ज्यादा आसान है लेकिन वयस्कों के लिए ऐसे मामलों में कई और कानूनी अधिकारों का भी पालन करना पड़ता है, जैसे कि वयस्कों के लिए देश के संविधान में फ्रीडम ऑफ स्पीच और विवेक का कानून भी है जो इस तरह के बैन के आड़े आ सकता है.
समलिंगी लोगों का ‘कनवर्जन'
जर्मन दंड संहिता से 1994 में ही समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा लिया गया था. तथाकथित "कनवर्जन थेरेपी" में समलैंगिक लोगों का कई तरह से इलाज कर उन्हें विषमलिंगी बनाने की कोशिश की जाती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी व्यक्ति के सेक्शुअल ओरिएंटेशन को बदलने के लिए जिस तरह के मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक उपाय किए जाते हैं, वे अवैज्ञानिक, अप्रभावी और अक्सर हानिकारक होते हैं.
कनवर्जन थेरेपी में इस्तेमाल होने वाले कुछ सबसे विवादित तरीकों में से एक है लोगों को समलैंगिक गतिविधियों की तस्वीरें दिखाते हुए बिजली के झटके देना या फिर गे पुरुषों के शरीर में नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन के इंजेक्शन लगाना. माग्नुस हिर्शफेल्ड फाउंडेशन के अनुसार इसके अलावा समलिंगी लोगों की "अकल को ठिकाने पर लाने” के लिए कुछ तथाकथित "कोच" और थेरेपिस्ट ना केवल प्रार्थनाएं करते हैं बल्कि कई बार झाड़-फूंक का सहारा भी लेते हैं.
विकसित देश भी इस मामले में काफी पिछड़े
एक ओर स्विट्जरलैंड, माल्टा, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका के कुछ इलाकों में इस तरह की थेरेपी पर प्रतिबंध लग चुका है तो वहीं पोलैंड जैसे अन्य यूरोपीय देशों में गे और लेस्बियन लोगों को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. समलैंगिकों के अधिकारों की वकालत करने वाले जर्मनी के माग्नुस हिर्शफेल्ड फाउंडेशन का कहना है कि देश में हर साल करीब 1,000 लोगों की इस तरह की तथाकथित थेरेपी करवाई जाती है.
बाल्कन देशों में एलजीबीटी+ समुदाय के लोग हिंसा और भेदभाव के डर के साथ जीते हैं तो रूस जैसे देशों में समलैंगिकता को किसी अपराध की तरह देखा जाता है और अपनी यौन पहचान को खुलेआम जाहिर करने पर जुर्माना और सजा हो सकती है. कुल मिलाकर विश्व के एक तिहाई देशों में अब भी समलैंगिक होना अपराध समझा जाता है. अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान और सऊदी अरब जैसे कई देशों में इसके लिए मौत की सजा हो सकती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1991 में समलैंगिकता को अपनी बीमारियों की सूची से निकालने का कदम उठाया था. इसका संदेश साफ था कि जो रोग ही नहीं है उसका इलाज करने का कोई भी प्रयास गलत और अनैतिक माना जाना चाहिए. फिर भी यूसीएलए स्कूल ऑफ लॉ के विलिसम्स इंस्टीट्यूट थिंक टैंक के अनुसार, अमेरिका में कोई सात लाख लोग ऐसी "थेरेपी” से गुजर चुके हैं और इनमें से आधे 18 साल से कम उम्र के थे. मनोवैज्ञानिक थेरेपिस्टों के अलावा कई धार्मिक गुरु ऐसी थेरेपी करते आए हैं.
विलिसम्स इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि इस समय भी अमेरिका में 13 से 17 साल की उम्र के करीब 57,000 लोग धार्मिक या आध्यात्मिक सलाहकारों के माध्यम से इस तरह की थेरेपी झेल रहे हैं. जहां कानूनी रूप से लाइसेंसधारक हेल्थ प्रोफेशनल्स को ऐसी सेवाएं देने पर रोक हैं वहां भी धार्मिक संगठन उसे धता बताकर "कनवर्जन थेरेपी” देते आए हैं.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore