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होमोफोबिया: कितना बदला है जर्मनी

येंस थुराऊ
२५ सितम्बर २०२०

जर्मन राजनीति में समलैंगिकों के लिए बराबरी का संघर्ष लंबा और कठिन रहा है. कुछ प्रगति जरूर हुई है लेकिन सत्ताधारी दल के एक प्रमुख नेता से बातचीत में गे नेताओं को लेकर पूर्वाग्रह फिर सामने आया है.

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Friedrich Merz und Jens Spahn
फ्रीडरिष मेर्त्स (बाएं) और येंस श्पान (दाएं) दोनों चांसलर मैर्केल के कंजर्वेटिव दल सीडीयू के प्रमुख चेहरे हैं. तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Meyer

"क्या समलैंगिक चांसलर से कोई परेशानी होगी?” - चांसलर अंगेला मैर्केल की सत्ताधारी पार्टी के वरिष्ठ नेता फ्रीडरिष मेर्त्स से यह सवाल पिछले दिनों जर्मनी के बिल्ड टैबलॉयड ने पूछा. जिसका "ना" में जवाब देते हुए मेर्त्स ने कहा: "किसी की यौन वरीयता से आम जनता का कोई लेना देना नहीं है. जब तक यह कानून के दायरे में है और इससे बच्चों पर असर ना पड़ता हो - जो कि मेरे हिसाब से इसकी सीमा है."

आलोचकों ने जर्मनी की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता के इस बयान को लेकर बड़ी बहस छेड़ी है. वे पूछते हैं कि समलैंगिकता के बारे में पूछते ही इस प्रमुख नेता ने समलैंगिकों को सीधे बच्चों की सुरक्षा और कानून के उल्लंघन से क्यों जोड़ा.

जब गैरकानूनी था ‘गे' होना

पूर्वाग्रह, संदेह और सजा - इन तीनों का विश्व युद्ध खत्म होने के बाद से ही जर्मनी के गे और लेस्बियन लोगों के इतिहास से गहरा संबंध रहा. भले ही आज जर्मन समाज में समलैंगिकता की मौटे तौर पर स्वीकार्यता दिखती है लेकिन पचास साल पहले सन 1969 तक किसी समलैंगिक पुरुष को कानूनन इसकी सजा मिलती थी. जर्मनी में इसका कानून प्रशिया के साम्राज्य के समय से चला आ रहा था और बाद में हिटलर के नाजी शासन के समय इसे और सख्त बनाया गया.

दंड संहिता के अनुच्छेद 175 में लिखा था कि एक पुरुष के किसी दूसरे पुरुष से यौन संबंध बनाने की सजा के तौर पर उसे जेल में डाला जाना चाहिए. सन 1957 में जर्मनी की केंद्रीय संवैधानिक अदालत ने समलैंगिकता को जर्मनी के संविधान ‘बेसिक लॉ' के हिसाब से संवैधानिक होने का दर्जा दिया.

संविधान की नजर में बराबरी का अधिकार पाने के लिए देश के समलैंगिक जोड़ों को फरवरी 2001 तक का इंतजार करना पड़ा. इसके साथ ही उन्हें भी अपने साथी के साथ सिविल पार्टनरशिप में रहने का अधिकार मिला. उस समय यह कदम केंद्र में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दलों सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रैट्स (एसपीडी) और ग्रीन पार्टी के नेतृत्व में उठाया गया. समलैंगिक जोड़ों को संवैधानिक रूप से शादी के बंधन में बंधने का अधिकार सन 2017 में जाकर मिला.

जाने माने नेताओं का सामने आना

कानूनी प्रक्रिया के साथ साथ सामाजिक स्तर पर भी बीते दो दशक बेहद अहम रहे. एक एक कर देश के कई जाने माने नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर खुद को समलैंगिक बताना शुरू कर दिया. सन 2001 में बर्लिन में एसपीडी की ओर से मेयर के चुनाव में खड़े हुए एक उम्मीदवार क्लाउस वोवराइट ने अपने भाषण का अंत इन शब्दों के साथ किया: "मैं गे हूं और यह एक अच्छी चीज है." ना केवल वह यह चुनाव जीते बल्कि इसके बाद एक दशक से भी लंबे समय तक उन्होंने बर्लिन के मेयर के रूप में अपनी सेवाएं दीं. 

इसके बाद मैर्केल की केंद्रीय कैबिनेट में विदेश मंत्री का पद संभालने वाले गिडो वेस्टरवेले ने भी समलैंगिकता की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए अपने जीवन के माध्यम से जबर्दस्त संदेश दिए. वह अपने पार्टनर को अपने साथ विदेश दौरों पर ले जाते और इस तरह उन्होंने बराबरी का यह संदेश पूरे विश्व में फैलाया.

आज एक बार फिर मैर्केल की ही कंजर्वेटिव पार्टी के एक खुले तौर पर गे नेता केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हैं. 40 साल के मंत्री येन्स श्पान पार्टी के सबसे चमकते युवा सितारों में से एक हैं और माना जा रहा है कि अगले साल वह मैर्केल के उत्तराधिकारी भी बन सकते हैं. यानि मैर्केल की सीडीयू पार्टी में श्पान वरिष्ठ नेता मेर्त्स के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वियों में से एक हैं. पहले भी वह पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवारी पेश कर चुके हैं.

क्या अब खत्म हो गया है भेदभाव

आज जर्मन संसद का हिस्सा बनी सभी राजनीतिक दलों में समलैंगिक नेता मौजूद हैं, यहां तक कि धुर-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की नेता भी अपनी लेस्बियन पार्टनर के साथ शादीशुदा संबंध की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार करती हैं. इतनी प्रगति करने के बावजूद जब मेर्त्स जैसे प्रमुख नेता की ओर से समलैंगिकता पर ऐसा बयान आता है तो वह गुजरे जमाने की याद ताजा कर देता है.

समाज में अब भी कुछ मामलों में समलैंगिकता को लेकर असहजता दिखती है. हाल की एक स्टडी में पता चला कि 30 फीसदी समलैंगिकों को उनके काम की जगह पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक रिसर्च और बीलेफेल्ड यूनिवर्सिटी की इस स्टडी ने यह भी दिखाया कि इनमें भी ट्रांसजेंडर लोगों को कहीं ज्यादा भेदभाव झेलना पड़ता है और यही वजह है कि आज भी लगभग एक तिहाई ट्रांसजेंडर इसे छुपाते हैं.

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