जर्मनी: विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 28 अफगान डिपोर्ट किए गए
३१ अगस्त २०२४जर्मनी से एक विशेष डिपोर्टेशन विमान 30 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के लिए रवाना हुआ. अगस्त 2021 में तालिबान की वापसी के बाद यह पहली बार है, जब जर्मनी ने लोगों को अफगानिस्तान वापस भेजा है. अगस्त 2021 में तालिबान के दोबारा सत्ता में काबिज होने के बाद से ही जर्मनी का अफगानिस्तान से राजनयिक संबंध नहीं है.
क्या है इस कार्रवाई की पृष्ठभूमि?
हालिया समय में जर्मनी में चाकू से होने वाले हमलों में तेजी आई है. पॉलिटिको मैगजीन के मुताबिक, साल 2024 के शुरुआती छह महीनों में ऐसी 430 घटनाएं हो चुकी हैं. कई मामलों में हमलावरों की प्रवासी पृष्ठभूमि के कारण देश में इमिग्रेशन कानूनों को सख्त करने और डिपोर्टेशन को ज्यादा प्रभावी बनाने की बहस गर्म है. यूरोपीय संसद के हालिया चुनाव से ठीक पहले भी 2 जून को एक बड़ी वारदात हुई. जर्मनी के मानहाइम शहर में एक रैली के दौरान चाकू से हुए हमले में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई. हमलावर 25 साल का एक अफगान युवक था.
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विपक्ष तो इस मसले पर पहले ही सरकार की आलोचना कर रहा था, लेकिन मानहाइम की वारदात के बाद चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सत्तारूढ़ "सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी" (एसपीडी) के सदस्यों ने भी डिपोर्टेशन नियमों को सख्त बनाने की मांग की. अपराधों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर जून में सरकार ने आपराधिक पृष्ठभूमि के सीरियाई और अफगान प्रवासियों को डिपोर्ट किए जाने की योजना पेश की. ऐसे लोग जिनके लिए आशंका है कि वे राजनीतिक मकसद से प्रेरित बेहद गंभीर अपराधों को अंजाम दे सकते हैं, इस योजना के दायरे में रखे गए.
आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर ने कहा, "मेरे लिए यह स्पष्ट है कि ऐसे लोग, जिनसे जर्मनी की सुरक्षा को संभावित तौर पर खतरा है, उन्हें जल्द ही डिपोर्ट किया जाना चाहिए. हम अपराधी और खतरनाक लोगों को सीरिया और अफगानिस्तान डिपोर्ट करने के तरीके खोजने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं."
हालांकि, इस योजना पर अमल से जुड़े कई सवाल थे. सबसे अहम पक्ष यह था कि जर्मनी ऐसे देशों में लोगों को डिपोर्ट नहीं करता, जहां उनकी जान को खतरा हो. तालिबान के सत्ता में आने के बाद जर्मनी ने लोगों को अफगानिस्तान डिपोर्ट करना बंद कर दिया था. इसी तरह सीरिया की खतरनाक स्थितियां भी डिपोर्टेशन की राह में बड़ी तकनीकी बाधा थीं.
जोलिंगन में हुए हमले में तीन लोगों की मौत
इस मुद्दे पर जारी बहस के बीच 23 अगस्त को जोलिंगन शहर में चाकू से किए गए एक और हमले ने डिपोर्टेशन की चर्चा को फिर से हवा दी. इस हमले में तीन लोग मारे गए थे और आठ व्यक्ति घायल हुए थे. आरोपी 26 साल का एक सीरियाई युवक है. शरण के लिए दिए उसके आवेदन को नामंजूर किया जा चुका था. उसे पिछले साल ही बुल्गारिया डिपोर्ट किया जाना था, लेकिन वह डिपोर्टेशन से बचता रहा.
विपक्षी दल क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) ने सीरिया और अफगानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को जर्मनी में प्रवेश देने पर तत्काल रोक लगाने की मांग की. सीडीयू के नेता फ्रीडरिष मेर्त्स ने चांसलर शॉल्त्स से अपील की कि वह जर्मनी में आतंकी हमलों को रोकने के लिए तेजी से और ठोस कदम उठाएं.
अपने न्यूजलेटर में मेर्त्स ने लिखा, "समस्या चाकू नहीं, बल्कि वे लोग हैं जो उन्हें लेकर चल रहे हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में ये लोग शरणार्थी हैं. ज्यादातर अपराधों के पीछे इस्लामिक मकसद हैं." मेर्त्स ने सीधे-सीधे शॉल्त्स को संबोधित करते हुए लिखा, "हम चाहते हैं कि आप अपने पद की शपथ पूरी करें और जर्मन लोगों को तकलीफ से बचाएं."
धुर-दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़े दल "ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी" (एएफडी) ने पिछली सरकारों पर आरोप लगाया कि उन्होंने बहुत सारे प्रवासियों को आने दिया और अराजकता की स्थिति पैदा की. चारों तरफ से हो रही आलोचनाओं के बीच चांसलर शॉल्त्स हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने जोलिंगन पहुंचे. उन्होंने कहा, "यह आतंकवाद था. मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं इससे बेहद गुस्से में हूं. इसे (दोषी को) जल्द और सख्त सजा दी जानी चाहिए." इस मौके पर शॉल्त्स ने हथियार संबंधी कानूनों में कड़ाई लाने के साथ ही यह संकल्प भी जताया कि वह डिपोर्टेशन की प्रक्रिया आगे बढ़ाएंगे.
किन लोगों को किया गया है डिपोर्ट?
सेक्सनी राज्य के आंतरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, कतर एयरवेज की एक विशेष उड़ान से 28 लोगों को डिपोर्ट कर अफगानिस्तान भेजा गया है. इस विमान ने लाइपजिग एयरपोर्ट से काबुल के लिए उड़ान भरी. डिपोर्ट किए गए लोग कौन हैं, इसकी जानकारी देते हुए जर्मन सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया, "ये अफगान नागरिक थे. सभी अपराधियों का दोष साबित हो चुका था. उन्हें जर्मनी में रहने का कोई अधिकार नहीं था और उन्हें वापस उनके देश भेजने का आदेश जारी हो चुका था."
डिपोर्टेशन विमान में कुल 33 लोगों को अफगानिस्तान भेजे जाने की योजना थी. मगर इनमें से दो को समय रहते नहीं खोजा जा सका. तीन अन्य को डिपोर्ट करने के लिए न्यायिक अनुमति नहीं मिल सकी क्योंकि उन्होंने जर्मनी में सजा की पर्याप्त अवधि पूरी नहीं की है. नियमों के मुताबिक, डिपोर्ट किए जाने से पहले जरूरी है कि दोषी ने अपनी सजा का कम-से-कम दो-तिहाई हिस्सा जर्मनी में पूरा कर लिया हो.
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समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार, डिपोर्ट किए गए सभी पुरुष थे. इनमें यौन अपराधियों से लेकर हिंसक गतिविधियों के लिए दोषी पाए गए लोग शामिल थे. इन्हें जर्मनी के अलग-अलग हिस्सों से डिपोर्ट करने के लिए लाइपजिग लाया गया था. श्पीगल पत्रिका के मुताबिक, इस डिपोर्टेशन विमान की योजना करीब दो महीने से बनाई जा रही थी.
शॉल्त्स गठबंधन की घटती लोकप्रियता
इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने अपने एक चुनावी कार्यक्रम में कहा, "यह एक स्पष्ट संकेत है. ऐसे लोग जो हमारे साथ अपराध करते हैं, ये नहीं मानकर चल सकते कि हम उन्हें डिपोर्ट नहीं करेंगे. हम ऐसा करने की कोशिश करेंगे, जैसा कि आपने इस मामले में देखा."
शॉल्त्स और उनकी गठबंधन सरकार पर सख्त रवैया अपनाने का दबाव लगातार बढ़ रहा था. विपक्षी दल इस मुद्दे पर लगातार सरकार की आलोचना कर रहे हैं. सरकार के तीनों घटक दलों (एसपीडी, ग्रीन्स और एफडीपी) ने यूरोपीय संघ के चुनाव में कमजोर प्रदर्शन किया. वहीं इमिग्रेशन पर सख्त नीति की समर्थक ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी पार्टी (एएफडी) के जनाधार में वृद्धि हुई.
जर्मनी के तीन राज्यों (सैक्सनी, थुरिंगिया, ब्रांडनबुर्ग) में हो रहे विधानसभा चुनावों में भी धुर-दक्षिणपंथी और लोक-लुभावनवादी धड़े को बढ़त मिलने की मजबूत संभावना है. अगले साल जर्मनी में आम चुनाव होने हैं. राजनीतिक और सामाजिक मोर्चे पर इमिग्रेशन लगातार गर्म मुद्दा बना हुआ है. जानकारों के मुताबिक, इन परिस्थितियों में प्रभावी और तत्काल कदम उठाना शॉल्त्स सरकार की राजनीतिक विवशता भी दिखती है. हालांकि, ये कदम कैसे होने चाहिए इसपर गठबंधन सरकार में भी एक राय नहीं दिखती.
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मसलन, विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक की ग्रीन पार्टी इस डिपोर्टेशन योजना पर बहुत उत्साही नहीं है. बेयरबॉक ने चेतावनी दी कि ऐसे कदम परोक्ष तौर पर तालिबान की सत्ता को मान्यता दे सकते हैं. पार्टी के नेता ओमिड नूरीपोर ने कहा कि तालिबान का नजरिया "पाषाण युगीन" है. उन्होंने यह भी कहा कि डिपोर्टेशन विमान के कारण "तालिबान को वैधता" देने की स्थिति नहीं बननी चाहिए. रूस, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे कुछ देशों की अफगानिस्तान में राजनयिक उपस्थिति जरूर है, लेकिन अब तक किसी भी देश ने तालिबान को अफगानिस्तान के वैध शासक के तौर पर मान्यता नहीं दी है.
एसएम/आरएस (डीपीए, एपी, एएफपी)