जर्मनी की हालतः कैसी होती है एक धनी देश में गरीबी
१२ अक्टूबर २०२२बढ़ती महंगाई, खासकर खाने और ईंधन की कीमतों में वृद्धि ने जर्मनी में गरीब और अमीर के बीच खाई को और चौड़ा कर दिया है. विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि सामाजिक सुरक्षा निधि को बढ़ाने से इस समस्या का हल नहीं निकलेगा.
जर्मनी की राजधानी बर्लिन एक चमचमाता शहर है. उसी शहर की एक चमचमाती शीशे की इमारत के सामने एक व्यक्ति गत्ता बिछाकर सो रहा है. राजधानी के शार्लोटनबुर्ग इलाके में इस तरह खुले में सोने वालों की संख्या बाकी देश की तरह लगातार बढ़ रही है.
वैसे तो जर्मनी दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है लेकिन यहां गरीबी बढ़ने के संकेत जगह-जगह नजर आने लगे हैं. बेघर लोग, सड़क किनारे सोते लोग, बच्चों का पेट भरने के लिए भूखी रहतीं मांएं और फेंकी गईं खाली बोतलें खोजते बुजुर्ग ऐसे दृश्य हैं जो आप दुनिया के सबसे धनी देश में देखने की उम्मीद नहीं करते.
जर्मनी की समाज कल्याण संस्थाओं के संगठन पारिटेटिषे वोल्फार्ग्ट्सफेरबांड के मुताबिक 1.38 करोड़ जर्मन या तो गरीबी में जी रहे हैं या फिर गरीबी की रेखा के नीचे जाने के खतरे में आ चुके हैं. सरकार ने भी अमीर और गरीब के बीच बढ़ते इस अंतर को लेकर चिंता जताई है.
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गरीबी शब्द के जर्मनी में मायने यह नहीं होंगे कि लाखों लोग ठंड से मर जाएं. यहां गरीबी का आकलन जीवनयापन की औसत परिस्थितियों की तुलना के आधार पर किया जाता है. 2021 में जर्मनी को दुनिया का बीसवां सबसे धनी देश आंका गया था. इस आकलन का आधार प्रति व्यक्ति जीडीपी थी. इसका अर्थ है कि यदि आप देश की सारी चीजों और संपत्तियों की कीमत को जोड़ें और फिर उसे देश की आबादी से भाग दें तो हर व्यक्ति को औसतन 52,200 यूरो यानी लगभग 41 लाख रुपये मिलेंगे.
लग्जमबर्ग दुनिया का सबसे धनी देश है, जहां हर व्यक्ति का औसतन हिस्सा एक करोड़ रुपये से भी ज्याद बनता है. और बुरूंडी को दुनिया का सबसे गरीब देश आंका गया, जहां हर व्यक्ति के हिस्से मात्र 22 हजार रुपये आए. भारत में यह आंकड़ा एक लाख 56 हजार रुपये बनता है.
कौन है गरीब?
यूरोप में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो एकदम गरीबी की गर्त में हैं. लेकिन राष्ट्रीय औसत के हिसाब से देखा जाए तो गरीबों की संख्या करोड़ों में बनती है. इसका अर्थ है कि वे अपने देश के औसत लोगों की अपेक्षा बहुत तंगी में रहते हैं और मुश्किल से गुजारा कर पाते हैं.
यूरोपीय संघ में किसी व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है यदि उसकी आय राष्ट्रीय औसत आय से 60 प्रतिशत कम हो जाए. यदि यह आय 50 फीसदी से भी कम हो जाए तो उस व्यक्ति को अत्याधिक गरीब माना जाएगा.
जर्मनी के लिए इसका अर्थ यह हुआ कि जो लोग मासिक 1,148 यूरो यानी करीब 90 हजार रुपये से कम कमाते हैं, वे गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं. एक बच्चे वाले एकल माता या पिता के लिए यह रकम 1,492 यूरो और दो बच्चों वाले माता-पिता के लिए यह आय 2,410 यूरो बनती है.
जर्मनी में सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था बेहद मजबूत मानी जाती है. अगर किसी को नौकरी नहीं मिलती या किसी वजह से कोई काम करने में सक्षम नहीं है तो उसे सरकार से एक निश्चित रकम मिलती है. इस सिस्टम को हार्त्स-IV भी कहते हैं. यह माना जाता है कि इस रकम से घर का किराया, हीटिंग, पानी और स्वास्थ्य बीमा जैसे मूलभूत से रूप से जरूरी खर्चे निकल जाएंगे.
इस व्यवस्था के तहत व्यक्तियों और एकल अभिभावकों को खाने, कपड़े, घर के सामान, साफ-सफाई के सामान और इंटरनेट, टेलीफोन व बिजली जैसे बिल चुकाने के लिए एक महीने में सिर्फ 449 यूरो मिलते हैं. इसके अलावा हर बच्चे के लिए आयु के मुताबिक 285 यूरो से 376 यूरो के बीच मिलते हैं.
काफी नहीं है यह योजना
हार्त्स IV और सामाजिक कल्याण की अन्य योजनाओं की लगातार आलोचना होती है क्योंकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह रकम बहुत कम है और मुश्किल से ही किसी की जरूरतें पूरी कर पाती है. इसके जवाब में केंद्र सरकार ने 2023 से मासिक रकम को 503 यूरो तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. साथ ही व्यवस्था का नाम बदलकर बुर्गेरगेल्ड यानी ‘नागरिकों का धन' करने का भी प्रस्ताव है.
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गरीबी पर अध्ययन करने वाले समाजविज्ञानी क्रिस्टोफ बुटरवेगे कहते हैं कि यह रकम भी नाकाफी होगी. डॉयचेवेले से बातचीत में उन्होंने कहा कि लोगों को एक सम्मानजनक जीवन जीने और स्वास्थ्यवर्धक खाना खाने के लिए कम से कम 650 यूरो चाहिए. मौजूदा व्यवस्था के तहत एक व्यक्ति को खाने के लिए रोजाना 5 यूरो मिलते हैं. ऐसे में गरीब घरों के पास दो ही विकल्प होते हैं. कम खाना खरीदें या फिर उसकी गुणवत्ता से समझौता करें.
जर्मनी में मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण लोगों के लिए गुजर-बसर लगातार मुश्किल होता जा रहा है. लोग दूध, ब्रेड और फल-सब्जी जैसी जरूरी चीजें भी खरीद नहीं पा रहे हैं. एक साल के मुकाबले इन चीजों के दाम 12 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं. 2020 में करीब 11 लाख लोगों ने फूड बैंक से खाना लिया. अब यह संख्या 20 तक पहुंच चुकी है.
बुजुर्ग और छात्र मुश्किल में
बुजुर्गों के बीच भी गरीबी लगातार बढ़ रही है. दशकों तक काम करने के बावजूद बहुत से लोगों की मासिक पेंशन इतनी नहीं है कि वे एक सम्मानजनक जीवन जी सकें. खासतौर पर महिलाएं बहुत ज्यादा दबाव में हैं क्योंकि उनके पूर्णकालिक पक्की नौकरी में होने की संभावना पुरुषों के मुकाबले कम होती है. उनके तन्ख्वाह भी कम मिलती है. इसलिए उनकी पेंशन कम बनती है. बेर्टेल्समान फाउंडेशन के एक शोध के मुताबिक 2036 तक जर्मनी में 20 फीसदी लोग बुजुर्ग गरीबी की रेखा के नीचे होंगे.
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जर्मनी में ऐसे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है जो काम करने के बावजूद जीवनयापन नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि जर्मनी में न्यूनतम आय हाल ही में बढ़ाई गई है और अब यह 12 यूरो है. इसके बावजूद हफ्ते में 40 घंटे काम करने वाला एक व्यक्ति महीने में 1,480 यूरो कमाता है जो गरीबी रेखा से जरा सा ही अधिक है.
और सबसे बुरा हाल है छात्रों का, खासकर उन छात्रों का जिन्हें सरकार से छात्रवृत्ति मिलती है. छात्रों को अधिकतम मासिक 934 यूरो मिलते हैं जिसमें घर और बीमा का खर्च शामिल है. इस रकम से छात्र गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं.
जर्मन सरकार ईंधन की बढ़ती कीमतों का झटका झेलने के लिए 200 अरब यूरोप उपलब्ध करवा रही है. लेकिन फिलवक्त जो हालात हैं उनके हिसाब से यह रकम बहुत कम बनती है और जिस तरह से मुद्रास्फीति बढ़ रही है, जर्मनी के लोगों के लिए आने वाले दिन अच्छे नहीं दिख रहे हैं.