जर्मनी और परमाणु हथियारों के रिश्तों का इतिहास
२३ फ़रवरी २०२४जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस यूरोपीय परमाणु हथियारों के बारे में हो रही मौजूदा बहस से नाराज हैं. सार्वजनिक प्रसारक एआरडी से बातचीत में वह कहते हैं, "अब परमाणु हथियारों के विस्तार पर चर्चा करने का कोई कारण नहीं है.”
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का यह सुझाव पिछले कुछ दिनों से काफी चर्चा का विषय बना हुआ है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में वे नाटो देशों को कोई सैन्य सहायता प्रदान नहीं करेंगे, यदि वे अपने रक्षा बजट में अपने सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2 फीसद निवेश नहीं करते हैं.
उनके इस सुझाव के बाद जर्मन राजनेता इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि ऐसा होने पर क्या फ्रांसीसी और ब्रिटिश परमाणु हथियार सुरक्षात्मक उपकरण के लिहाज से पर्याप्त होंगे या फिर यूरोप को नए परमाणु हथियारों की जरूरत है.
जर्मन काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस (DGAP) के राजनीतिशास्त्री कार्ल-हाइंत्स काम्प ने डीडब्ल्यू को बताया, "यूरोपीय परमाणु हथियारों के बारे में बहस काफी हद तक एक जर्मन बहस है जो यूरोप के किसी दूसरे देश में नहीं दिखती, खासकर पूर्वी यूरोप, जहां रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सरकार पर लगातार खतरा मंडरा रहा है.”
काम्प कहते हैं कि जर्मनी का एक विशेष इतिहास है, "जर्मनी को मूलरूप से एक आक्रामक देश के रूप में देखा जाता था, जिसने दो विश्व युद्ध शुरू किए थे और जिस पर परमाणु हथियारों को लेकर भरोसा नहीं किया जा सकता था.”
शीत युद्ध के दौरान जर्मनी के परमाणु हथियार
साल 1954 में, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के कुछ ही समय बाद, जर्मनी के संघीय गणराज्य के पहले चांसलर कोनराड आडेनावर ने अपने यहां परमाणु, जैविक या रासायनिक हथियारों के उत्पादन को त्यागने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. बदले में, अमेरिका ने सोवियत नेतृत्व वाली वॉरसा संधि के खिलाफ अपनी परमाणु निरोधक नीति में पश्चिम जर्मनी को शामिल कर लिया.
साल 1958 में, कुछ शांतिपूर्ण विरोधों के बावजूद, जर्मन संसद बुंडेस्टाग ने अमेरिकी परमाणु हथियारों की जर्मनी में तैनाती को मंजूरी दे दी. इसके बाद साल 1960 में 1,500 अमेरिकी परमाणु हथियार पश्चिम जर्मनी में और 1,500 पश्चिमी यूरोप के बाकी हिस्सों में स्टोर किए गए थे.
यहां तक कि ‘रक्षा के मामले में' प्रशिक्षण और उपयोग के लिए परमाणु हथियार जर्मन सेना के लिए भी उपलब्ध थे. काम्प कहते हैं, "जर्मनी खुद परमाणु हथियार हासिल करे, इसके बारे में कभी कोई चर्चा नहीं हुई.”
पश्चिमी जर्मनी और यूरोपीय शांति आंदोलन आगे बढ़ते गए. साल 1982 में नाटो के ‘दोहरे ट्रैक निर्णय' के विरोध में पश्चिमी जर्मनी में दस लाख से ज्यादा लोग देश में अमेरिका की नई मध्यम दूरी की मिसाइलों की योजनाबद्ध तैनाती के विरोध में सड़कों पर उतर आए.
फिर भी, 22 नवंबर 1983 को बुंडेस्टाग में सेंटर-राइट के बहुमत ने इसके तुरंत बाद अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइलों की तैनाती को मंजूरी दे दी. उस समय, बुंडेस्टाग में ग्रीन पार्टी को नया-नया प्रतिनिधित्व मिला था, और उन्होंने पश्चिमी जर्मन क्षेत्र में परमाणु मिसाइलों के भंडारण और तैनाती के खिलाफ संघीय संवैधानिक न्यायालय में अपील की थी. दिसंबर 1984 में उनकी इस आवाज को निराधार बताकर खारिज कर दिया गया.
शीत युद्ध के दौरान पूर्वी जर्मनी की कम्युनिस्ट सरकार, जर्मन डेमोक्रैटिक रिपब्लिक (GDR) वॉरसा की संधि के तहत सैन्य गठबंधन का हिस्सा थी और साल 1958 से ही जीडीआर के अधिकार वाले क्षेत्र में स्थित सोवियत सैन्य ठिकानों पर परमाणु मिसाइलें और हथियार तैनात किए गए थे. इन मिसाइलों और हथियारों में से कुछ को साल 1988 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुए इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ट्रीटी के तहत वापस ले लिया गया था.
जर्मनी के एकीकरण और सोवियत सेना की वापसी के बाद, जीडीआर (जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) का क्षेत्र 1991 में आधिकारिक तौर पर परमाणु हथियारों से मुक्त हो गया.
शीत युद्ध के बाद का जर्मनी
साल 1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने, सोवियत संघ के पतन और पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के बीच विभाजन की समाप्ति के बाद तथाकथित ‘टू-प्लस-फोर ट्रीटी' में जर्मन स्थिति एक बार फिर से मजबूत हो गई- परमाणु हथियारों की मनाही! 12 सितंबर 1990 को, द्वितीय विश्व युद्ध की चार विजेता ताकतों यानी अमेरिका, सोवियत संघ, फ्रांस और ब्रिटेन ने शर्त रखी कि पूर्व और पश्चिम को फिर से एकजुट होना चाहिए और परमाणु हथियारों का त्याग करना चाहिए.
काम्प का कहना है कि इसमें शायद ही कोई आश्चर्य की बात हो क्योंकि ‘जर्मन परमाणु शक्ति कुछ ऐसी होगी जो खौफ पैदा करेगी. केवल ऐतिहासिक कारणों से.'
सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिकी सरकार ने इनमें से कई परमाणु हथियार वापस ले लिए, हालांकि अनुमान के अनुसार 180 अमेरिकी परमाणु हथियार अभी भी यूरोप, इटली, तुर्की, बेल्जियम, नीदरलैंड और जर्मनी में रखे हुए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा समय में 20 अमेरिकी परमाणु हथियार पश्चिमी जर्मनी में राइनलैंड-पलैटिनेट के बुषेल शहर में संग्रहीत हैं. काम्प कहते हैं, "लेकिन इन हथियारों पर निर्णय लेने का अधिकार पूरी तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति के पास है.”
जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स में राजनीतिशास्त्र के विशेषज्ञ पीटर रुडोल्फ का कहना है कि ऐसी कोई भी बहस सच्चाई से कोसों दूर है कि जर्मनी अपने परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश कर रहा है. अखबार फ्रांकफुर्टर आल्गेमाइने से बातचीत में उन्होंने कहा कि जर्मनी को परमाणु बमों को संग्रहीत करने की आवश्यकता है ताकि वे किसी के आसान लक्ष्य न बन सकें.
जर्मन सेना के पास मौजूद उपकरणों की ओर इशारा करते हुए वह कहते हैं, "अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी परमाणु हथियार परमाणु-संचालित पनडुब्बियों पर होने ही चाहिए जो कि लंबे समय तक पानी के नीचे रह सकें. हालांकि मौजूदा संकट से इस बात का कोई लेना-देना नहीं है.”
काम्प भी इस बात से सहमति जताते हैं और कहते हैं, "जो लोग अब यूरोप की रक्षा जरूरतों के विस्तार की बात कर रहे हैं वे जर्मन परमाणु हथियारों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, क्योंकि जर्मनी परमाणु अप्रसार संधि का सदस्य है और उसने सामूहिक विनाश के हथियारों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कई बाध्यकारी समझौते किए हैं. इनमें परमाणु हथियारों को खत्म करना भी शामिल है.”
जर्मनी के रक्षा मंत्री पिस्टोरियस ने कुछ समय पहले यह कहकर सुर्खियां बटोरी थीं कि जर्मनी को ‘युद्ध के लिए तैयार' हो जाना चाहिए. उनके इस बयान के बाद ही यह बहस भी शुरू हुई थी लेकिन अब वे खुद इससे किनारा करते दिख रहे हैं. एआरडी से बातचीत में उन्होंने कहा, "संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकार में शामिल ज्यादातर लोग यह ठीक-ठीक जानते हैं कि यूरोप में उनके ट्रान्स अटलांटिक साझीदारों के पास क्या है, नाटो में उनके पास क्या है.”
और काम्प भी उनकी इस बात से सहमत हैं, "यह हो सकता है कि ट्रंप नाटो को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाने में सक्षम हो जाएं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वो इसे नष्ट कर पाएंगे. आप अपने एक कार्यकाल में दशकों पुराने ट्रान्स अटलांटिक संबंधों को नष्ट नहीं कर सकते.”