सैकड़ों अरब यूरो खर्च करके भी ऊर्जा संकट से नहीं उबरा जर्मनी
१५ दिसम्बर २०२२जर्मनी में यह बेलआउट स्कीमों, सब्सिडी और ऊर्जा तंत्र को बेहतर बनाने पर खर्च हुआ यह कुल पैसा है जो सरकार को रूस से मिलने वाली गैस की सप्लाई बंद होने के कारण खर्च करना पड़ा. यह सरकार की घोषणाओं के आधार पर लगाया गया मोटा आकलन है. हालांकि इतना खर्च भी शायद पर्याप्त नहीं होगा. जर्मन इकोनॉमिक इंस्टिट्यूट के मिषाएल ग्रोएमलिंग का कहना है, "यह संकट कितना बड़ा होगा और कितना लंबा चलेगा, यह इस बात पर निर्भर है कि ऊर्जा संकट का विकास कैसे होता है. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था संपूर्ण रूप में संपत्ति का भारी नुकसान झेल रही है."
मोटे आकलनों के मुताबिक कुल 440 अरब यूरो की रकम इसके लिए अलग निकाली गई है. यह पैसा जर्मनी ऊर्जा की सप्लाई बंद होने से बचने और नये ऊर्जा स्रोतों को सुरक्षित करने पर खर्च करना चाहता है. इसका मतलब है कि यूक्रेन पर 24 फरवरी को रूसी हमले के बाद हर दिन जर्मनी ने 1.5 अरब यूरो की रकम यानी राष्ट्रीय आर्थिक उत्पादन का करीब 12 फीसदी खर्च किया है. आबादी के लिहाज से देखें तो हर जर्मनवासी पर करीब 5,400 यूरो.
मौसम की मेहरबानी पर निर्भर जर्मनी
यूरोप की सबसे बड़ी और सबसे श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था जो सुदृढ़ योजनाबद्ध तरीके से काम करने के लिए जानी जाती है अब मौसम की मेहरबानी पर टिकी है. अगर इस साल ठंड का मौसम लंबा खिंचा तो जर्मनी में ऊर्जा का कोटा तय करने की नौबत आ जायेगी. करीब आधी सदी में पहली बार जर्मनी रूसी गैस के बिना गुजारा कर रहा है. रूसी सप्लाई का विकल्प ढूंढने की कोशिश में जर्मनी ने ऊर्जा के महंगे और नगद बाजारों का रुख किया है. इसके नतीजे में महंगाई दहाई के आंकड़ों में पहुंच गई है. हालांकि अब भी ऊर्जा सुरक्षा जैसी चीज नजरों से कोसों दूर है. विकल्प के रूप में लिक्विफाइड नेचुरल गैस और अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने में अभी कई साल लगेंगे.
एटमी ऊर्जा से पीछा क्यों नहीं छुड़ा पाता जर्मनी
कील इंस्टिट्यूट ऑफ द वर्ल्ड इकोनॉमी के उपाध्यक्ष स्टेफान कूथ्स का कहना है, "जर्मन अर्थव्यवस्था अभी बहुत मुश्किल दौर में है क्योंकि ऊर्जा की आपूर्ति का भविष्य इतना अनिश्चित कभी नहीं रहा. जर्मन अर्थव्यवस्था कहां खड़ी है? अगर कीमतों की तरफ देखा जाये तो वह बुखार में तप रही है." जर्मनी के आर्थिक मंत्रालय का कहना है कि वह ऊर्जा की सप्लाई के नये स्रोतों तक पहुंच रही है और एलएनजी के टर्मिनल बना रही है जो गैस के आयात का सबसे जरूरी हिस्सा हैं. ऊर्जा की कीमत जितनी अधिक होगी अर्थव्यवस्था के लिए उतनी बड़ी समस्या होगी.
इस साल और अगले साल में जर्मनी का ऊर्जा आयात बिल कुल मिला कर 124 अरब यूरो रहने के आसार हैं. 2020 और 2021 में यह 7 अरब यूरो था. ऐसे में ऊर्जा की भारी खपत वाले उद्योगों का हाल समझा जा सकता है. देश के केमिकल सेक्टर को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है और 2022 में उनका उत्पादन 8.5 फीसदी तक नीचे जाने की आशंका है.
कोविड संकट के बराबर खर्च
ऊर्जा संकट से निबटने के लिए तय 440 अरब यूरो की रकम पहले ही कोविड के लिए निकाले गये 480 अरब यूरो के करीब पहुंच चुकी है. यह रकम 2020 से अब तक कोविड की महामारी से अर्थव्यवस्था को बचाने पर खर्च की गई. इसमें 295 अरब यूरो का राहत पैकेज जिसमें गैस कंपनी यूनिपर को दिया गया 51.5 यूरो और सेफे को 14 अरब यूरो का राहत पैकेज भी शामिल है.
रूसी गैस के बिना सर्दी से कैसे मुकाबला कर रहा है जर्मनी
इसके अलावा यूटिलिटी कंपनियों को 100 अरब यूरो और एलएनजी टर्मिनल बनाने पर 10 अरब यूरो का खर्च शामिल है. इसमें 52.2 अरब यूरो की वह रकम भी शामिल है जो सरकारी कर्जदाता केएफडब्ल्यू ने यूटिलिटी कंपनियों और कारोबारियों को गैस की खरीदारी का स्रोत बदलने, कोयला खरीदने और इसी तरह के दूसरे कामों के लिए दिये.
इन सारी कोशिशों के बावजूद रूसी गैस की कमी कैसे पूरी होगी इसे लेकर अनिश्चितता खत्म नहीं हुई है. जर्मनी ने पिछले साल रूस से लगभग 58 अरब क्यूबिक मीटर गैस आयात किया था. यह उसकी कुल ऊर्जा जरूरत का लगभग 17 फीसदी है.
जर्मनी 2030 तक अपनी सारी ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसदी अक्षय स्रोतों से हासिल करना चाहता है. 2021 में यह लगभग 42 फीसदी थी. इसमें मौजूदा विकास की दर देखें तो इस लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल लग रहा है. जर्मनी ने 2021 में 5.6 गीगावाट की सौर उर्जा और 1.7 गीगावाट की पवन ऊर्जा के प्लांट लगाये हैं. 80 फीसदी अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर साल 10 गीगावाट पवन ऊर्जा और 22 गीगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता बढ़ानी होगी.
एलएनजी की योजना
जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने 2024 के मध्य तक रूसी ऊर्जा से पूरी तरह छुटकारा पाने की योजना बनाई है. कई आर्थिक जानकार हालांकि इस योजना को जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी बता रहे हैं. खासतौर से एलएनजी के मामले में तो जर्मनी को अभी पहाड़ चढ़ना है. जर्मनी के पास कोई एलएनजी टर्मिनल नहीं था. उसने छह फ्लोटिंग एलएनजी टर्मिनल लगाने की योजना बनाई है जिनमें से पहल टर्मिनल रिकॉर्ड समय में पिछले महीने तैयार हुआ जबकि दूसरा दिसंबर में तैयार हो जाने की उम्मीद है. ये दोनों अगले साल काम करना शुरू कर देंगे. इनके अलावा बाकी के तीन 2023 के आखिर तक तैयार हो जायेंगे.
ऊर्जा संकट में जर्मनी हलकान लेकिन इटली को दिक्कत नहीं
2022 के दिसंबर में ही एक निजी एलएनजी शिप टर्मिनल भी जर्मनी पहुंच रहा है. इसकी क्षमता 4.5 अरब क्यूबिक मीटर की है जबकि बाकी टर्मिनल सालाना 5 अरब क्यूबिक मीटर गैस आयात कर सकेंगे. इस तरह से इन सबकी कुल क्षमता प्रति वर्ष 29.5 अरब क्यूबिक मीटर गैस की है.
जर्मन गैस कंपनियों ने भरोसा दिया है कि वो 2024 के आखिर तक इन सभी टर्मिनलों को पूरी क्षमता से चलाने के लिए गैस का इंतजाम कर लेंगी. हालांकि यह गैस आयेगी कहां से यह अभी तय नहीं है. अब तक जर्मनी ने गैस के लिए केवल दो करार किये हैं. पहला करार ऑस्ट्रेलिया की वुडसाइड से यूनिपर की है जो 1 अरब क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष के लिए है. दूसरा करार आबू धाबी की नेशनल ऑयल कंपनी की आरडब्ल्यूई से दिसंबर में 137,000 क्यूबिक मीटर के लिए है और भविष्य के बारे में मात्रा का जिक्र नहीं है.
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने कनाडा से लेकर कतर और नॉर्वे समेत कई देशों का दौरा इसी उम्मीद में किया है. हालांकि अभी कतर को छोड़ कर और कहीं से बात बनती दिखी नहीं है. कतर के साथ जर्मन कंपनी आरडब्ल्यूई ने 15 साल के लिए 20 लाख टन गैस की सप्लाई का करार किया है.
फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि जर्मनी अपने ऊर्जा संकट पर किस तरह से काबू पायेगा. हां पैसे जरूर खर्च हो रहे हैं और कोशिशें भी जारी हैं लेकिन इनके नतीजों को देखने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)