गिग-इकॉनमी में काम करने वालों पर भारी मार
१ जुलाई २०२२ऑस्ट्रेलिया में एक डिलीवरी ड्राइवर के हक में आए अदालत के फैसले ने दुनियाभर में कथित ‘गिग इकॉनमी' में काम करने वाले लोगों को हौसला दिया है. ऐसे समय में जबकि दुनियाभर में इस बात पर बहस हो रही है कि गिग इकॉनमी में काम करने वाले लोगों के अधिकार कैसे सुनिश्चित किए जाएं, ऑस्ट्रेलिया की एक अदालत ने एक हादसे में मारे गए फूड डिलीवरी ड्राइवर के परिवार को आठ लाख तीस हजार डॉलर का हर्जाना देने का आदेश दिया है.
चीनी मूल के 43 वर्षीय शियाओजुन चेन की सितंबर 2020 में एक ऑर्डर पर डिलीवर करते जाते वक्त सिडनी में एक बस से टकराकर मौत हो गई थी. उनके दो बच्चे, पत्नी और 75 वर्षीय पिता चीन में ही रहते हैं और उन्हीं की आय पर निर्भर थे. चेन फूड ऐप ‘हंगरी पांडा' के लिए डिलवरी करते थे.
ऑस्ट्रेलिया की ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन ने बताया कि हंगरी पांडा ने अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की जिसके बाद ‘पर्सनल इंजरी कमीशन' ने चेन को हर्जाने का हकदार पाया. यूनियन के राष्ट्रीय सचिव माइकल केन कहते हैं, "दो साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार शियाओजुन के परिवार को न्याय मिल गया है."
ऑस्ट्रेलिया की ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन उन दर्जनों देशों के कर्मचारी संघों में से एक है जो फूड डिलीवरी ड्राइवर और गिग इकॉनमी में काम करने वाले अन्य लोगों के लिए न्यूनतम आय और अन्य कर्मचारी लाभ दिलाने के लिए आंदोलनरत हैं. ज्यादातर देशों में ऐप के जरिए कारोबार करने वाली ये कंपनियां अपने साथ काम करने वाले ड्राइवर आदि कर्मचारियों को सिर्फ ठेकेदार मानती हैं इसिलए वे न्यूनतम आय, नियमित छुट्टियां और अन्य कई तरह के लाभों के हकदार नहीं माने जाते.
भारत में भी जारी है संघर्ष
भारत में भी इसी तरह के अधिकार पाने के लिए डिलीवरी ड्राइवर संघर्षरत हैं. हाल ही में जब इंटरनेट वेबसाइट के जरिए घर का सामान बेचने वाली कंपनी फ्राजो ने डिलीवरी ड्राइवरों को मिलने वाला ईंधन का खर्च देना बंद कर दिया और कमीशन में कमी कर दी तो कंपनी के साथ काम करने वाले सौ से ज्यादा ड्राइवरों ने हड़ताल कर दी.
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ड्राइवरों ने विरोध में प्रदर्शन भी किया. नोएडा के फ्राजो राइडर हेमराज शर्मा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "ईंधन इतना महंगा हो गया है. हमें ऑर्डर डिलीवर करने के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता है. ईंधन का खर्च नहीं मिलेगा तो यह काम करने में कुछ बचेगा ही नहीं. हम 10-12 घंटे रोजाना काम करते हैं लेकिन आखिर परिवार के लिए कुछ बचता ही नहीं है." इस बारे में फ्राजो ने मीडिया में कोई बयान नहीं दिया है.
दुनियाभर में ईंधन और अन्य उत्पादों की कीमतों में हुई भारी वृद्धि ने इन डिलीवरी ड्राइवरों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. भारतीय गिग वर्कर्स यूनियन की राष्ट्रीय संयोजक रितिका कृष्णास्वामी कहती हैं कि ईंधन की कीमतों ने तो डिलीवरी ड्राइवरों को खासतौर पर प्रभावित किया है. वह कहती हैं, "महंगाई सभी को प्रभावित कर रही है. उन लोगों को भी जो इन वेबसाइटों/ऐप का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए लोग अब ऑर्डर करने या कैब पर खर्च करने से बच रहे हैं. उसी वक्त कंपनियां ईंधन या कमीशन आदि में कमी कर रही हैं क्योंकि मांग कम हो गई है. इसलिए वे कर्मचारी मार झेल रहे हैं जिनके पास कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है."
‘कोई विकल्प नहीं'
हाल ही में वर्ल्ड बैंक ने कहा था कि वैश्विक अर्थव्यवस्था एक ऐसे दौर में प्रवेश कर रही हैं जबकि महंगाई बढ़ेगी और विकास दर कमजोर होगी. यही वजह है कि मेलबर्न से लेकर सैन फ्रांसिस्को तक तकनीकी कंपनियां लोगों की छंटनी कर रही हैं. इनमें कथित गिग वर्कर भी शामिल हैं जो खाना डिलीवर करने से लेकर बागबानी तक और सफाई से लेकर कोडिंग तक अलग-अलग तरह के काम ऐप के जरिए करते हैं.
करोड़ों की डिजिटल मुद्रा मुफ्त बांट रहा है चीन
ऐसे मुश्किल हालात से गुजर रहे कर्मचारियों के लिए कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से अच्छी खबरें भी आई हैं, जहां की सरकारें इन लोगों के लिए बेहतर तन्ख्वाहों और अन्य अधिकारों के लिए कोशिश कर रही हैं. भारत में भी नीति आयोग ने सिफारिश की थी कि गिग-वर्करों को सामाजिक सुरक्षा जैसे लाभ मिलने चाहिए, जिनमें जीवन बीमा आदि शामिल हैं.
नीति आयोग का अनुमान है कि देश में 2030 तक 2.4 करोड़ ऐसे कर्मचारी होंगे. और कृष्णास्वामी कहती हैं कि उनके लिए हालात अच्छे नजर नहीं आते. वह कहती हैं, "धनी देशों में गिग-वर्कर डाटा जैसे अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं जबकि गरीब देशों में उनका संघर्ष जायज वेतन के लिए है. यह रोजगार के सबसे खराब रूपों में से एक है लेकिन बहुत से आप्रवासी कामगारों के लिए और कोई विकल्प ही नहीं है."
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)