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आलोचकों के निशाने पर क्यों हैं पवन ऊर्जा फार्म?

१७ दिसम्बर २०२१

जर्मनी में कांच की इमारतों की वजह से सबसे ज्यादा पक्षियों की मौत हो रही है. हर साल 6 करोड़ पक्षियों की मौत के जिम्मेवार घरेलू बिल्लियां हैं. इन सब के बावजूद, आलोचकों के निशाने पर पवन ऊर्जा फार्म क्यों हैं?

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तस्वीर: zhang zhiwe/Zoonar/picture alliance

जैसे-जैसे बिजली के लिए पवन ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे इसे लेकर आलोचनाएं भी बढ़ती जा रही हैं. दावा किया जा रहा है कि पवन ऊर्जा के निर्माण के दौरान जो आवाज उत्पन्न होती है उससे इंसानों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है. कई लोग पवन ऊर्जा पैदा करने के लिए लगाए गए विशाल टरबाइन को अभिशाप मानते हैं. कुछ का कहना है कि ये बड़े टरबाइन वन्यजीवों के लिए नुकसानदायक हैं. वहीं, कुछ लोग पवन ऊर्जा से होने वाले फायदे के वितरण में असमानता की बातें भी करते हैं. ऐसे में यह देखा जाना जरूरी हो गया है कि इन दावों में कितनी सच्चाई है?

क्या प्रकृति की छवि को नुकसान हो रहा है?

पवन ऊर्जा पैदा करने के लिए स्थापित किए जाने वाले टरबाइन वाकई प्रकृति की छवि को बदल देते हैं. इन टरबाइन के ब्लेड करीब 250 मीटर (820 फीट) तक लंबे होते हैं. मौसम साफ होने पर, भूरे रंग की ये संरचनाएं साफ तौर पर दिखाई देती हैं. हालांकि, बिजली उत्पादन के अन्य तरीकों के दौरान भी प्रकृति की छवि बदल जाती है.

कोयले से उत्पन्न होने वाली बिजली के लिए, कोयला खनन के दौरान पूरे के पूरे गांव को विस्थापित करना पड़ता है. बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई की जाती है. वहीं, हाई-वोल्टेज वाली ट्रांसमिशन लाइनें कई इलाकों से होकर गुजरती हैं जिनके लिए बड़े-बड़े टावर बनाए जाते हैं. जहां ये टावर बनते हैं वहां रहने वाली आबादी को किसी दूसरी जगह पर विस्थापित किया जाता है.

बिजली संयंत्रों की चिमनियों से निकलने वाला धुंआ और भाप आकाश में कई किलोमीटर तक फैल जाता है. इस तरह तुलनात्मक रूप से देखा जाए, तो पवन टरबाइन स्वच्छ होते हैं. इनसे किसी भी तरह का जहरीला धुंआ नहीं निकलता है और न ही अपशिष्ट पदार्थ, पारा या कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.

दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में, जर्मनी में पवन ऊर्जा फार्म को बेहतर तरीके से विकसित किया गया है. देश की लगभग एक तिहाई ऊर्जा की आपूर्ति पवन ऊर्जा से होती है. यहां की एक बड़ी आबादी इस तरह से ऊर्जा के उत्पादन का समर्थन करती है.

80 प्रतिशत आबादी का कहना है कि समुद्र के किनारे पवन ऊर्जा फार्म का विकास ‘कुछ हद तक महत्वपूर्ण है.' लगभग 47 प्रतिशत का कहना है कि उनके आस-पास के इलाकों में स्थापित किए गए पवन ऊर्जा फार्म ‘कुछ हद तक अच्छा' या ‘बहुत अच्छा' हैं.

तुलनात्मक रूप से देखें, तो करीब 62 प्रतिशत जर्मन सौर ऊर्जा फार्म के पास रहकर खुश हैं. वहीं, महज 6 प्रतिशत परमाणु ऊर्जा संयंत्र और 4 प्रतिशत कोयला से चलने वाले बिजली संयंत्रों का समर्थन करते हैं.

क्या पवन ऊर्जा फार्म के शोर आपको बीमार करते हैं?

तेज हवाएं बहने के दौरान, टरबाइन काफी तेजी से घूमते हैं. ये टरबाइन अपनी पूरी क्षमता से घूमते हैं, तो 100 मीटर के दायरे में आवाज का स्तर 105 डेसिबल तक पहुंच सकता है. यह खनन के दौरान उत्पन्न होने वाली आवाज के बराबर होता है. वहीं, 250 मीटर के दायरे में आवाज का स्तर 45 डेसिबल तक होता है. इस दौरान जंगल में होने वाली सरसराहट जैसी आवाज का अनुभव होता है. वहीं, 500 मीटर के दायरे में आवाज का स्तर 40 डेसिबल तक होता है. हल्की बारिश होने पर जो आवाज होती है, यह उतना ही होता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि आवासीय क्षेत्रों में स्थापित पवन ऊर्जा फार्म से ज्यादा से ज्यादा 45 डेसिबल आवाज होनी चाहिए. जर्मनी में, दिन में अधिकतम 55 और रात में 40 डेसिबल आवाज की अनुमति है. ऐसे में, यहां पवन ऊर्जा फार्म आवासीय क्षेत्रों में स्थापित नहीं किए जा सकते.

इसके अलावा, पवन ऊर्जा फार्म 20 हर्ट्ज से कम की फ्रीक्वेंसी वाली आवाज उत्पन्न करते हैं, जिसे इन्फ्रासाउंड कहा जाता है. इंसान के कान इतने कम फ्रीक्वेंसी की आवाज को नहीं सुन सकते. इस तरह की आवाज झरने, समुद्र की लहरों या हीटर और एयर कंडीशनर जैसी मशीनों से भी उत्पन्न होते हैं.

आलोचकों का कहना है कि पवन ऊर्जा फार्म से उत्पन्न इन्फ्रासाउंड मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. हालांकि, अध्ययनों से पता चलता है कि ये फार्म कार ट्रैफिक की तुलना में काफी कम इन्फ्रासाउंड उत्पन्न करते हैं. नए शोध के मुताबिक, पवन फार्म से उत्पन्न होने वाले इन्फ्रासाउंड से मानव स्वास्थ्य को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है.

पक्षियों और प्रकृति को नुकसान पहुंचता है?

जिस तरह से सड़कें और इमारतें बनाने के लिए, जमीन में कई मीटर तक नींव डाली जाती है उसी तरह पवन ऊर्जा फार्म बनाने के लिए भी नींव डाली जाती है. इसके अलावा, इसमें लगे ब्लेड की चपेट में आने से ज्यादा ऊचाई पर उड़ने वाले चमगादड़ और पक्षियों की जान जा सकती है. यही एक वास्तविकता है जिसे आधार बनाकर आलोचक अक्षय ऊर्जा के इस रूप की तीखी आलोचना करते हैं.

जलवायु संकट से निपटने और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए, पर्यावरणविद् समूहों ने पवन ऊर्जा के विस्तार का आह्वान किया है. जर्मन पर्यावरण समूहों के एक संयुक्त पत्र के अनुसार, अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना ‘जैव विविधता को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है.'

जहां तक हो सके, बेहतर योजना बनाकर पर्यावरण के नुकसान को कम करने की कोशिश की जानी चाहिए. उदाहरण के लिए, प्रकृति के लिए संरक्षित इलाकों में पवन फार्म को स्थापित नहीं किया जा सकता. इसके बजाय, इसे उन इलाकों में स्थापित किया जाना चाहिए जहां पहले कोयला खनन होता था या जहां काफी ज्यादा खेती है.

आधुनिक पवन फार्म को पहले की अपेक्षा बेहतर तरीके से डिजाइन किया गया है. इस वजह से वे चमगादड़ और अन्य पक्षियों के लिए कम खतरनाक हैं. अब इनकी ऊंचाई बढ़ा दी गई है. साथ ही, ऐसे सेंसर लगाए गए हैं जिससे पक्षियों के नजदीक आने पर ब्लेड घूमने बंद हो जाते हैं या उनकी गति कम हो जाती है.

जर्मनी के नेचर ऐंड बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन यूनियन (एनएबीयू) का अनुमान है कि जर्मनी में पवन फार्म की वजह से हर साल करीब एक लाख पक्षियों की मौत होती है. हालांकि, यह अन्य वजहों से होने वाली मौत की तुलना में काफी कम है.

कांच से ढकी इमारतें, पवन फार्म की तुलना में ज्यादा खतरनाक हैं. इनकी वजह से हर साल करीब 10 करोड़ पक्षियों की मौत होती है. वहीं, कार, ट्रक और ट्रेनों से टक्कर की वजह से 7 करोड़ पक्षियों की मौत होती है.

बिजली के तार की वजह से 20 लाख पक्षियों की मौत होती है. 10 लाख से ज्यादा पक्षियों का हर साल शिकार किया जाता है. इन सब के अलावा, सिर्फ घरेलू बिल्लियां ही जर्मनी में हर साल 6 करोड़ पक्षियों की मौत के लिए जिम्मेदार हैं.

एनएबीयू के मुताबिक, अब तक पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा औद्योगिक खेती है. मोनोकल्चर और कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीड़ों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है. इससे पक्षियों के सामने भोजन का संकट उत्पन्न हो गया है. जर्मनी में पिछले दशकों में पक्षियों के 1.3 करोड़ प्रजनन जोड़े गायब हो गए. अगर इन्हें भोजन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता, तो हर साल 17 करोड़ पक्षी पैदा होते.

भरोसेमंद है पवन ऊर्जा?

कभी-कभी हवा की रफ्तार काफी कम हो जाती है जिससे ब्लेड घूमने बंद हो जाते हैं और बिजली उत्पन्न नहीं होती है. इसलिए, पावर ग्रिड को ऊर्जा के उत्पादन और भंडारन के अन्य स्रोतों की जरूरत होती है.

नॉर्वे और कोस्टा रिका में पहले से ही पूरी तरह से नवीकरणीय बिजली ग्रिड हैं. यह हवा के साथ-साथ पानी, भूतापीय ऊर्जा, बायोमास और सौर ऊर्जा पर निर्भर है. नवीकरणीय ऊर्जा के ये स्रोत दुनिया के अन्य हिस्सों में पवन ऊर्जा की जगह ले सकते हैं. इलाकों के हिसाब से, ऊर्जा के अलग-अलग स्रोत तैयार किए जा सकते हैं. कुछ क्षेत्रों में इसके भंडारण के लिए, ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट और बड़े पैमाने पर बैटरी की जरूरत होती है.

क्या सिर्फ अमीरों को लाभ होता है?

समुद्र के किनारे 6 मेगावाट की उत्पादन क्षमता वाला बड़ा पवन फार्म स्थापित करने के लिए, 8 से 12 मिलियन यूरो की जरूरत होती है. यहां प्रति किलोवाट उत्पादन का खर्च 4 से 8 सेंट आता है. यहां निवेश करने पर 10 प्रतिशत से अधिक का मुनाफा हो सकता है.

ऐसे में इन फार्मों से कमाई की संभावना काफी अधिक है. बड़े फार्मों के साथ-साथ नगरपालिका और स्थानीय सहकारी समितियों को भी इससे लाभ होता है. हालांकि, अगर इसका लाभ स्थानीय आबादी को नहीं मिलेगा, तो वे नाराज हो सकते हैं. इसलिए, बाहरी निवेशकों द्वारा शुरू की गई परियोजनाएं अक्सर विफल हो जाती हैं.

जब स्थानीय नागरिक स्वयं परियोजना में निवेश कर सकते हैं और मुनाफे में भागीदार बन सकते हैं, तो इन फार्मों को ज्यादा समर्थन मिलता है. महज कुछ सौ यूरो का निवेश कर, स्थानीय लोग इन फर्मों को संचालित कर सकते हैं. दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे पवन ऊर्जा फार्म हैं जहां स्थानीय लोगों की भागीदारी है, लेकिन जर्मनी में इनकी संख्या काफी ज्यादा है. इससे लोगों को नौकरियां भी मिलती हैं और उनका पर्यावरण भी स्वच्छ रहता है.