आर्थिक मंदी: दुनिया 100 सालों में पांच बार देख चुकी है आर्थिक संकट
विश्व बैंक ने हाल ही में कहा था कि 2023 में पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है. पिछले 100 सालों में कम से कम पांच बार वैश्विक स्तर पर आर्थिक संकट आ चुके हैं. कैसे आए ये संकट?
1929-39 का 'द ग्रेट डिप्रेशन'
1929 के 'द ग्रेट डिप्रेशन' की शुरुआत अमेरिका में स्टॉक दामों में भारी गिरावट के साथ हुई थी और फिर उसका असर पूरी दुनिया में फैल गया था. यह संकट 1939 तक चला जिसकी वजह से इसे दुनिया की सबसे लंबी और सबसे ज्यादा देशों पर असर डालने वाली मंदी कहा जाता है. इस संकट के दौरान वैश्विक जीडीपी करीब 15 प्रतिशत गिर गई. अमेरिका में बेरोजगारी दर 23 प्रतिशत हो गई थी. कुछ देशों में तो यह दर 33 प्रतिशत तक पहुंच गई थी.
1975 की आर्थिक मंदी
1973 के अरब-इस्राएल युद्ध में इस्राएल का समर्थन करने के लिए तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक ने अमेरिका समेत कुछ देशों को तेल देने पर प्रतिबंध लगा दिया. इस वजह से तेल के दाम करीब 300 प्रतिशत बढ़ गए. इस झटके की वजह से सात औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में 1975 में पहले तो महंगाई बहुत बढ़ गई और फिर मंदी आ गई. जर्मनी और जापान इस मंदी से बच गए थे.
1982 की मंदी
मंदी के इस दौर के पीछे कई कारण थे. 1979 की ईरानी क्रांति के समय भी तेल के दाम काफी बढ़ गए थे. इसके कारण अमेरिका जैसे बड़े देशों ने अपनी मौद्रिक नीतियों को कड़ा बना दिया. इस बीच कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में विदेश से लिए ऋण का बोझ काफी बढ़ गया. विकसित देश तो इस संकट से काफी जल्दी उबर गए लेकिन लैटिन अमेरिका, द कैरेबियन और अफ्रीका के उप-सहारा वाले देशों में विकास की गति धीमी पड़ गई.
1991 की मंदी
यह आर्थिक संकट 1990-91 में हुए खाड़ी युद्ध के बाद आया था, लेकिन इसमें अमेरिकी बैंकों की बुरी हालत, स्कैंडिनेवियन देशों में बैंकिंग संकट आदि जैसे और भी कारणों का योगदान था.
2008-09 की आर्थिक मंदी
यह 'द ग्रेट डिप्रेशन' के बाद दुनिया का सबसे बुरा आर्थिक संकट था. इसकी शुरुआत अमेरिका के प्रॉपर्टी बाजार से हुई थी लेकिन जल्द ही इसकी चपेट में अमेरिका के बड़े बैंक और वित्तीय संस्थान आ गए. धीरे धीरे यह संकट पूरी दुनिया में फैल गया.
2023 में मंदी?
कोविड-19 महामारी के बाद मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन, यूक्रेन युद्ध और चीन में बार बार लग रही तालाबंदी की वजह से वैश्विक महंगाई आसमान छू रही है. इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए विकसित देशों ने कई बार ब्याज दरें बढ़ा दी हैं. विश्व बैंक का अनुमान है कि यह ट्रेंड भविष्य में भी जारी रहेगा और इस वजह से बैंक के अर्थशास्त्रियों ने चिंता जताई है कि 2023 में वैश्विक आर्थिक मंदी आ सकती है.