गिलगित-बल्तिस्तान के पिघलते ग्लेशियरों से बड़ा खतरा
ग्लेशियर, ताजे पानी के सबसे बड़े भंडार हैं. दुनिया में हर चार में से एक इंसान, ऐसे इलाके में रहता है जो पानी के लिए ग्लेशियर और मौसमी बर्फ पर निर्भर है. अकेले एशिया में ही 10 बड़ी नदियां हिमालयी क्षेत्र से निकलती हैं.
पृथ्वी को ठंडा रखते हैं ग्लेशियर
ग्लेशियर एक सुरक्षा कवच की तरह हैं. ये सूर्य से आने वाली अतिरिक्त गर्मी को वापस अंतरिक्ष में भेज देते हैं. नतीजतन, ये हमारे ग्रह को ठंडा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. ग्लेशियरों की परत एकाएक नहीं जमी. ये सैकड़ों-हजारों सालों की जमापूंजी हैं. लेकिन अब ग्लेशियर नाटकीय रफ्तार से पिघल रहे हैं. तस्वीर: तिब्बत का सापु ग्लेशियर
कोई भी हिस्सा अछूता नहीं
वैज्ञानिक कहते हैं, जो चीजें आमतौर पर पृथ्वी की जिंदगी के एक लंबे हिस्से के दौरान होती हैं, वो हमारे सामने कुछ ही साल में घट रही हैं. कुछ दशकों में ग्लेशियरों का एक बड़ा हिस्सा गायब हो चुका होगा. शोधकर्ताओं का कहना है कि मध्य और पूर्वी हिमालयी क्षेत्र के ज्यादातर ग्लेशियर शायद अगले एक दशक में मिट जाएंगे. तस्वीर: स्विट्जरलैंड में ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए उन पर इंसूलेटेड कंबल रखा गया.
कुछ देशों पर ज्यादा जोखिम
कुछ हिस्सों पर खतरा ज्यादा तात्कालिक और गंभीर है. ग्लेशियरों के पिघलने और इसके कारण आने वाली बाढ़ से जिन देशों को सबसे ज्यादा जूझना होगा, उनमें पाकिस्तान भी है. काराकोरम पर्वत श्रृंखला में पिघलते ग्लेशियरों के कारण नई झीलें बनने लगी हैं. तस्वीर: गिलगित-बल्तिस्तान की यासिन घाटी. एक ग्लेशियर झील के नजदीक का यह इलाका बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित रहा.
डेढ़ करोड़ लोगों पर मंडरा रहा है जोखिम
नेचर कम्युनिकेशंस नाम के जर्नल में छपे शोध के मुताबिक, दुनिया में करीब डेढ़ करोड़ लोगों पर ग्लेशियर झीलों में संभावित बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. इनमें लगभग 20 लाख लोग पाकिस्तान में हैं. तस्वीर: गिलगित-बल्तिस्तान की हुंजा घाटी का एक गांव. यहां ग्लेशियर से बनी झील में आई बाढ़ के कारण काफी नुकसान हुआ.
पस्सु गांव के साथ ऐसा ही हुआ
जलस्तर बढ़ने पर झील का पानी किनारा तोड़कर निकलेगा और ढेर सारा पानी हरहराता हुआ नीचे भागेगा. ऐसे में रास्ते के रिहायशी इलाकों को बड़ा नुकसान हो सकता है. 2008 में पस्सु गांव के साथ ऐसा ही हुआ. तब से यहां रहने वालों की हिफाजत के लिए जल्दी चेतावनी देने की एक व्यवस्था बनाई गई है.
ग्लोबल वॉर्मिंग का असर
बढ़ती गर्मी का असर काराकोरम में बहुत गहराई तक दिखता है. यह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में है. एवरेस्ट के बाद दूसरी सबसे बड़ी चोटी के2 है, जो इसी काराकोरम श्रृंखला का हिस्सा है. इसके अलावा ब्रॉड पीक, गाशेरब्रुम 1 और गाशेरब्रुम 2, यहीं हैं. ये सभी 26,000 फुट से ज्यादा ऊंची चोटियां हैं. सोचिए, ग्लोबल वॉर्मिंग इन ऊंचे पहाड़ों पर क्या कहर बरसा रही है. तस्वीर: स्विट्जरलैंड का एक ग्लेशियर
जोखिम का जल्द अंदाजा लगाकर बच सकती हैं जानें
यह अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है कि झील से पानी कब उफनने लगेगा. फिर भी, एक्सपर्ट्स इसपर काम कर रहे हैं. तारिक जमील, हुंजा घाटी की निगरानी करने वाले जोखिम प्रबंधन केंद्र के प्रमुख हैं. उनकी टीम अर्ली वॉर्निंग सिस्टम विकसित करने पर काम कर रही है. जोखिम की घड़ी में लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की भी योजना बनाई जा रही है.
ग्लेशियरों के नुकसान की भरपाई नहीं
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अगली सदी, यानी 2100 तक हिमालयी ग्लेशियरों का 75 फीसदी हिस्सा खत्म हो सकता है. जानकारों के मुताबिक, ये ऐसा नुकसान है जिसकी शायद ही कोई भरपाई हो सके. इस इलाके में 200 से ज्यादा ग्लेशियर झीलें खतरनाक मानी जा रही हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, इनसे होने वाले हादसों के कारण बचाव और पुनर्निर्माण के लिए हर साल कम-से-कम 200 अरब डॉलर चाहिए होगा. तस्वीर: तिब्बत का सापु माउंटेन