बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती करीबी को कैसे देखता है भारत
३ जनवरी २०२५बीते साल अगस्त में छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन और हिंसक प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिर गई थी और वह भागकर भारत आ गई थीं. इसके बाद वहां अंतरिम सरकार का गठन हुआ और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस उस अंतरिम सरकार के प्रमुख बने. इस घटनाक्रम के बाद से बांग्लादेश और पाकिस्तान मेल-मिलाप की राह पर आगे बढ़ते दिख रहे हैं.
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पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और यूनुस ने दिसंबर में काहिरा में एक सम्मेलन के दौरान हुई मुलाकात के बाद आपसी हितों के सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने पर सहमति जताई.
समुद्री संपर्क और सैन्य संबंध
1971 के स्वतंत्रता युद्ध के बाद से बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच समुद्री रास्ते से ज्यादा संपर्क नहीं था, लेकिन अब इन दोनों देशों के बीच समुद्री रास्ते से संपर्क बढ़ रहा है. इससे इन दोनों देशों के बीच के संबंधों में ऐतिहासिक तौर पर सुधार हो रहा है.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान से आने वाले सामानों की जांच के लिए तय किए गए पुराने नियमों को हटा दिया है. अब पाकिस्तान से आने वाले सामानों को आसानी से बांग्लादेश में लाया जा सकता है. जबकि, पहले इन सामानों की गहन जांच होती थी.
कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान फरवरी 2025 में बांग्लादेश की सेना को प्रशिक्षण देना शुरू कर देगा, जिससे दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध मजबूत होंगे. बांग्लादेश कथित तौर पर कराची बंदरगाह पर ‘अमन 2025' संयुक्त नौसैनिक अभ्यास में पाकिस्तान के साथ शामिल होगा.
जैसे-जैसे पाकिस्तान बांग्लादेश के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है, क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ रही हैं. भारत इन घटनाक्रमों पर बहुत ध्यान दे रहा है, क्योंकि इससे दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन बदल सकता है.
भारत के लिए रणनीतिक महत्व
शेख हसीना के समय भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध अच्छे थे, लेकिन हसीना को सत्ता से हटाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध खराब हो गए हैं. फिलहाल, हसीना भारत में निर्वासन में रह रही हैं.
विदेश नीति के विशेषज्ञों और राजनयिकों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत को अपने पूर्वोत्तर राज्यों में अस्थिरता और सुरक्षा खतरों से जुड़े जटिल भू-राजनीतिक माहौल से निपटना होगा. भारत इन घटनाक्रमों पर बारीकी से नजर रख रहा है. साथ ही, वह बांग्लादेश के साथ अपनी सीमा पर सुरक्षा भी बढ़ा रहा है.
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मंत्रया इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज की संस्थापक शांति मैरियट डिसूजा ने डीडब्ल्यू को बताया, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के संबंध बेहतर हुए हैं और इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है.”
भारत लंबे समय से सीमा पर मानव तस्करी, घुसपैठ और उग्रवादी विद्रोह को लेकर चिंतित है. इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश की सीमा पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम जैसे भारतीय राज्यों से लगती है, जहां हिंसक घटनाएं होने की आशंका रहती है.
डिसूजा ने कहा, "इस बात पर विचार करना जरूरी है कि क्या बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच मजबूत होते संबंध का मकसद सिर्फ भारत के दबाव को कम करना है या फिर ये भारत को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा हैं? अगर हम मान लें कि इनकी योजना भारत को अस्थिर करने की है, तो क्या बांग्लादेश की मौजूदा सरकार ऐसा कर पाएगी? इसका जवाब है, नहीं.”
बांग्लादेश में पाकिस्तान का बढ़ रहा प्रभाव
डिसूजा के मुताबिक, यह स्पष्ट नहीं है कि यूनुस की नीतियां बांग्लादेश की नौकरशाही को प्रभावित करेंगी या नहीं, जिसके लिए अंतरिम सरकार एक अस्थायी व्यवस्था है. उनका कहना है, "भारत को क्षेत्र में तेजी से बदलती आंतरिक और बाहरी परिस्थितियों से निपटने लायक नीतियां बनाने के लिए जमीनी स्तर पर अपनी नजर रखने की आवश्यकता है. उसे क्षेत्र में हो रहे सभी बदलावों पर बारीकी से ध्यान देना होगा.”
पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत के अपने पड़ोसी देशों, विशेष रूप से बांग्लादेश के साथ लंबे समय से चले आ रहे संबंधों में समृद्धि को बढ़ावा देना और भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करना शामिल रहा है. दूसरे शब्दों में कहें, तो भारत अपने पड़ोसी देशों, खासकर बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है. भारत चाहता है कि उसके पड़ोसी देश तरक्की करें और बदले में भारत की सुरक्षा की चिंताओं का भी ध्यान रखें.
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बिसारिया ने कहा, "अब बांग्लादेश की नई सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है.” उन्होंने आगे कहा कि अगर पाकिस्तान बांग्लादेश के साथ अपने सुरक्षा संबंधों को मजबूत करता है और भारत के प्रभाव को कम करने की कोशिश करता है, तो इससे इस क्षेत्र की सुरक्षा पर बुरा असर पड़ सकता है. इस क्षेत्र में शांति भंग हो सकती है.
बिसारिया बताते हैं, "भारत इस बदलती हुई स्थिति पर बारीकी से नजर रखेगा. भारत को पूर्वोत्तर में पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए सैन्य गतिविधियों को बढ़ाने और सुरक्षा उपाय अपनाने की भी जरूरत पड़ सकती है.”
हथियारों के आदान-प्रदान से बढ़ी चिंताएं
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच नया गठबंधन भारत के रणनीतिक हितों के लिए एक बड़ा खतरा है. खास तौर पर सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए, जिसे अक्सर चिकन नेक के नाम से जाना जाता है.
भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील यह रास्ता भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है, लेकिन यह बहुत संकरा है. इस रास्ते का सबसे संकरा हिस्सा केवल 20 से 22 किलोमीटर (12 से 14 मील) चौड़ा है. भारत को डर है कि चीन विकास कार्यों के बहाने बांग्लादेश के साथ मिलकर इस गलियारे के पास अपना प्रभाव बढ़ा सकता है.
इस बीच, भारत ने बांग्लादेश के साथ अपनी सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी है. भारत ने तकनीकी समाधानों का उपयोग किया है और सीमा सुरक्षा बल द्वारा उच्च स्तरीय निरीक्षण भी किया गया है. इसका उद्देश्य सीमा पर बिना बाड़ वाले इलाके में होने वाली घुसपैठ और तस्करी को रोकना है. साथ ही, सीमा सुरक्षा मजबूत करनी है.
बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत की चिंता है कि बांग्लादेश में हथियार और विस्फोटक पहुंच सकते हैं. इसका इस्तेमाल इस्लामी आतंकवादी कर सकते हैं, जिन्हें यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार ने रिहा कर दिया है. चक्रवर्ती ने दावा किया कि अगर भारत में विद्रोही समूहों तक ये हथियार पहुंचा दिए जाते हैं, तो इससे देश की सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा हो सकता है.
हालांकि, जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में बांग्लादेश से जुड़े मामलों की विशेषज्ञ श्रीराधा दत्ता ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत-बांग्लादेश संबंध इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश में निर्वाचित सरकार बनने के बाद तनाव कम हो जाएगा. दत्ता कहती हैं, "हालांकि बांग्लादेश और पाकिस्तान एक-दूसरे के साथ जुड़ने के संकेत दे रहे हैं, लेकिन भारत ही बांग्लादेश के लिए ज्यादा मायने रखता है.”
दत्ता कहती हैं, "दोनों पक्षों को मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए बातचीत शुरू करनी होगी. जब भारत और उसके पड़ोसी देश आपस में बातचीत शुरू करेंगे, तब भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताओं पर भी ध्यान दिया जाएगा, लेकिन ऐसा तब संभव है जब पड़ोसी देश बातचीत के लिए तैयार हो और बिना किसी कारण विवाद न करे.”