धरती को प्रदूषण से बचाने के लिए अमीरों को कैसे रोकें?
६ जनवरी २०२३ये प्रचंडता उस समय और तूफानी हो गई जब मेकअप की सरताज काइली जेनर ने पिछली जुलाई में अपने दोस्त ट्रैविस स्कॉट के साथ एक तस्वीर पोस्ट की जिसमें उनके दो प्राइवेट जेट भी देखे जा सकते थे और कैप्शन था, "तुम मेरा वाला लोगे या अपना वाला?"
जेनर की इस पोस्ट पर वायरल होने वाले बहुत सारे ट्वीटों में से एक में ईटिंग डिसऑर्डर अभियान से जुड़ीं कारा लिसेटे ने लिखा, "यूरोप जल रहा है, जबकि काइली जेनर अपने प्राइवेट जेट में 15 मिनट की उड़ानों का मज़ा उठा रही हैं. मैं हर चीज रिसाइकिल कर सकती हूं, अपने तमाम कपड़े सेकंड हेंड खरीद सकती हूं, अपना खुद का खाना उगा सकती हूं लेकिन तब भी जेनर की एक उड़ान के फुटप्रिंट का मुकाबला नहीं कर सकती."
जेनर की इंस्टाग्राम पोस्ट ने अमीर देशों के युवाओं में पनप रहे विरोध को हवा दे दी जो अपने कार्बन फुटप्रिंट में कटौती को लेकर दबाव महसूस करते हैं. इसमें दिखता है कि दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों और जलवायु परिवर्तन से डरी हुई पीढ़ी के बीच कितनी खाई है, वो पीढ़ी जो नाइंसाफी से गुस्से में है और अपनी खुद की जीवनशैलियों के खर्चीले, भड़काऊ तरीकों को न छोड़ने पर भी आमादा है. 24 साल की एक ट्विटर यूज़र ने लिखा, "इसीलिए मैंने कोशिश करना छोड़ दिया."
हाल में टेलर स्विफ्ट और किम कर्दिशयान जैसी शख्सियतों के प्राइवेट जेट ने वे उड़ाने भरीं जो कुछ ही घंटों की ड्राइव पर थीं. मिनटों के हिसाब से उनकी यात्राओं ने एक औसत भारतीय के सालाना उत्सर्जन के मुकाबले ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित की थी. फ्लाइट डाटा दिखाता है कि शुरुआती दिसंबर में एक रात, काइली जेनर और ट्रेविस स्कॉट के प्राइवेट जेटों ने वही उड़ान भरी, और पांच घंटे के अंतराल में कैलिफोर्निया के वान न्युस एयरपोर्ट पर उतर गए.
कार्बन प्रदूषण का 'हास्यास्पद' स्तर
फिर भी, हवा में सेलेब्रिटी के पैदा किए उत्सर्जन समन्दर में उनके उत्सर्जन के मुकाबले कुछ भी नहीं. रूसी कुलीन रोमन अब्रामोविच की 162 मीटर लंबी नाव में दो हैलीपेड और एक स्विमिंग पुल है और वो कई किलों, महलों, विमानों और लीमोसिन कारों के मुकाबले कई गुना ज्यादा सीओटू उत्सर्जित करती है. 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक अब्रामोविच की याट ने 2018 में 11,000 लोगों की आबादी वाले प्रशांत द्वीप के राष्ट्र टुवालु से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित की थी.
इस अध्ययन के अगुआ और इंडियाना यूनिवर्सिटी में रिसर्चर बिएट्रीज बैरोस कहते हैं, "ये खासतौर पर निराश कर देने वाली बात है. क्योंकि द्वीप राष्ट्र, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी जैसे जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से सबसे ज्यादा घिरे हुए हैं."
दशकों से कार्बन उत्सर्जनो की सबसे बड़ी असमानताएं, अमीर और गरीब देशों के बीच रही हैं. अब देशों के भीतर असमानताएं साफ और गंदी जीवनशैलियो के बीच की खाई को स्पष्ट करती हैं. सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाले दुनिया के एक फीसदी शीर्ष लोग- 132000 डॉलर की सालाना पगार वाले लोग- पिछले 30 साल में कार्बन प्रदूषण की 20 फीसदी वृद्धि के जिम्मेदार हैं. वे दुनिया के तमाम बड़े शहरो में मौजूद हैं- मुंबई से लेकर मियामी तक.
उत्सर्जन असमानता पर काम कर रहे स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान से जुड़ी वैज्ञानिक अनीशा नजारेथ कहती हैं, "शीर्ष एक फीसदी लोग, नीचे के 50 फीसदी लोगों जितनी मात्रा खर्च करते हैं. और पैमाने के स्तर पर जाहिर है ये कार्बन बजट का एक हास्यास्पद अनुपात है."
उस टॉप आय ब्रैकट में आने वाले लोगों की खरबपतियों जैसी विलासिता भरी जीवनशैली नहीं है. भले ही प्राइवेट जेट और विशाल नावें इस पैमाने के चरम छोर पर हैं, यात्री जहाज और यात्री विमान, उनसे ठीक पीछे ही हैं.
मिसाल के लिए उड़ान, दुनिया में सबसे ज्याद प्रदूषणकारी गतिविधियों में से एक है. एविशयन यानी उड्ययन से भले ही वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का तीन फीसदी हिस्सा आता हो लेकिन उड़ान भरने वालों के लिए तो ये प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है. जानकारों का अनुमान है कि हर साल दो से चार फीसदी वैश्विक आबादी विमान से यात्रा करती है.
इसी तरह किसी और के मुकाबले, अरबपति ज्यादा फॉसिल ईंधन जलाते हैं. साफ ऊर्जा के परामर्शदाता और स्वतंत्र लेखक केतन जोशी, अमीर देशों के मध्यवर्गीय लोगों का हवाला देते हुए कहते हैं, "दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो हमें उसी रोशनी में देखते हैं. आप भी तो किसी के काइली जेनर हैं."
अमीर जीवनशैलियों के लिए 'आश्चर्यजनक समर्थन'
शोधकर्ताओं ने इससे निपटने के तरीके निकाले हैं. टैक्स बढ़ाकर, कानूनी कमियों को भरकर और टैक्स जन्नतों पर अंकुश लगाकर नीति निर्माता, आलीशान जीवनशैलियों वाली कार्बन की भरपूर खपत की अतियों को रोक सकते हैं. धरती को गरम होने से रोकने के लिए जरूरी साफ ऊर्जा के बुनियादी ढांचे में निवेश के जरूरी पैसे भी निकल सकते हैं.
लेकिन टैक्स बढ़ाने की नीतियों का अक्सर तीखा विरोध होता है. उनसे भी, जिन्हें उनसे लाभ होगा. स्वीडन में लुंड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर स्टीफान ग्योसलिंग के मुताबिक, "असल में, अति संपन्न लोगों की जीवनशैलियों के प्रति हम हैरानी भरा समर्थन देखते हैं." ग्योसलिंग ने उड़ान के उत्सर्जनों में गैरबराबरी का अध्ययन किया है. अमीरों को आदर्श मानने वाली संस्कृतियों में पले बढ़े लोग अपनी जिंदगियों को प्रतिबंधित करने वाली नीतियों का अक्सर विरोध करते हैं.
फ्लाइट टैक्स का बोझ, मिसाल के लिए, प्रमुख रूप से अमीर लोगों को नुकसान पहुंचाएगा- खासकर बिजनेस क्लास के यात्रियों को. यूरोपीय संघ में, हवाई यात्रा का आधा खर्च 20 फीसदी सबसे अमीर वर्ग से आता है. अमेरिका और कनाडा में 79 फीसदी उड़ानों में साल में चार बार जाने वाले 19 फीसदी वयस्क होते हैं. कुछ वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों ने फ्रीक्वेन्ट फ्लायर यानी विमान से अक्सर यात्रा करने वाले लोगों के लिए कर का सुझाव रखा है जिसमें हर अतिरिक्त उड़ान पर व्यक्ति को ज्यादा कीमत चुकानी होगी.
इन असमानताओं का मतबल उड़ानों पर टैक्स लगाने की नीतियों से सबसे सक्षम लोगों से राजस्वकी वसूली की जा सकती है. पर्यावरणीय थिंक टैंक, इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्ट के अक्टूबर में कराए एक अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल फ्रीक्वेन्ट फ्लायर लेवी से 121 अरब डॉलर की राशि निकाली जा सकती है जो 2050 तक एविएशन को कार्बनमुक्त करने के लिए हर साल निवेश के लिए जरूरी है. हर साल छह से ज्यादा उड़ान लेने वाले, फ्रीक्वेंट फ्लायर्स को उस लेवी का 81 फीसदी चुकाना होगा. विमान से ही यात्रा करने वाले अति-संपन्न लोग, कुल आबादी का 2 फीसदी हिस्सा हैं.
नीति निर्माता, केरोसीन से चलने वाले प्राइवेट जेटों पर भी रोक लगाकर, अति संपन्न लोगों के कारण होने वाले उत्सर्जनों में कटौती कर सकते हैं. ऐसे प्रतिबंध से उड़ानों का सिर्फ एक छोटा सा प्रतिशत ही प्रभावित होगा लेकिन अरबपतियों के हाथ में साफ तकनीकों में निवेश के लिए रकम छोड़ जाएगा जो पर्यावरणीय अनुकूल उड़ानों के लिए जरूरी है. विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे शुरुआती निवेश सभी के लिए, टिकाऊ विमान ईंधन और इलेक्ट्रिक उड़ानें तैयार करने में काम आ सकेगा. जितना तेजी से उनका विस्तार होगा उतना ही तेजी से कीमतें नीचे आएंगी.
शोधकर्ताओं का जोर इस पर भी है कि शीर्ष एक फीसदी लाभार्थियों- और हर साल 37200 यूरो की कमाई वाले शीर्ष के 10 फीसदी लोगों को- जलवायु कार्रवाई अपनी खरीद तक ही सीमित नहीं रखनी चाहिए.
नेचर पत्रिका में 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक उपभोक्ता, निवेशक, रोल मॉडल, सांगठनिक भागीदार और नागरिक के तौर पर अमीर लोग, जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. इसका अर्थ ये है कि ये काम, फॉसिल ईंधन कंपनियों को कर्ज देने वाले बैंकों से अपनी जमा राशि निकालकर, स्थानीय प्रशासन की बैठकों में सार्वजनिक परिवहन के पक्ष में अभियान चलाकर या अपने कंपनी प्रबंधन को बिजनेस उड़ानों के बदले वर्चुअल बैठकें करने का दबाव डालकर किया जा सकता है.
जलवायु वैज्ञानिक और अध्ययन के शीर्ष लेखक क्रिस्टियान नीलसन कहते हैं, "अगर समाज के उच्च वर्ग के ये लोग अपनी आय और प्रभाव के दम पर सक्रियता से ये काम करते तो आज हम बदलावों की गति में और तेजी देख रहे होते. ये सुविधा औसत व्यक्ति को उपलब्ध नहीं है."
लेकिन इस मामले का दूसरा पहलू भी है. दुनिया के चुनिंदा सबसे ज्यादा संपन्न लोगों और कंपनियों ने फॉसिल ईंधनों पर रोक लगाने वाली नीतियों के खिलाफ लॉबीइंग में भी पैसा झोंका हुआ है. स्टॉकहोम पर्यावरण संस्थान से जुड़ी अनीशा नजारेथ कहती हैं कि "अति-संपन्न लोगों के साथ ज्यादा बड़ी समस्या ये है कि वे अभियानों को डोनेशन देकर, राजनीतिक प्रभाव हासिल करते हैं- और इस तरह आमतौर पर बाकी तमाम लोगों की जीवनशैलियों को भी प्रभावित करते हैं."