पड़ोसी देशों से क्यों पिछड़ गया जर्मनी का रेल नेटवर्क
२ फ़रवरी २०२४जर्मनी में सरकार नियंत्रित राष्ट्रीय रेलवे सेवा डॉयचे बान (डीबी) और ट्रेन ड्राइवरों के यूनियन 'जीडीएल' के बीच वेतन को लेकर विवाद जारी है. जनवरी 2024 की शुरुआत में ही जर्मनी में तीन दिन की रेल हड़ताल हुई. इस हड़ताल को एक महीना भी नहीं बीता था कि रेल ड्राइवर दूसरी बार हड़ताल पर चले गए. इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल से आम लोग काफी परेशान हुए. कुछ लोगों को कई घंटे स्टेशन पर गुजारने पड़े, तो कई लोग ट्रैफिक जाम में फंसने को मजबूर हुए.
हालांकि, जर्मनी में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. यहां अक्सर रेल हड़ताल होती रहती है. ये हड़तालें डीबी की कई चुनौतियों में से एक हैं. यहां अक्सर कई अन्य वजहों से भी लंबी दूरी की ट्रेनें रद्द होती रहती हैं या देर से चलती हैं. इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ता है.
बार-बार रद्द होती है ट्रेन
जर्मनी में ज्यादातर ट्रेनों का संचालन डॉयचे बान करता है. लंबी दूरी के लगभग 95 फीसदी परिवहन, 67 फीसदी स्थानीय आवागमन और 42 फीसदी माल ढुलाई इसी रेलवे नेटवर्क के जरिए होता है. डीबी के प्रवक्ता के मुताबिक, 2023 में लंबी दूरी की सिर्फ 64 फीसदी ट्रेनें अपने गंतव्य पर समय से पहुंचीं, यानी अपने तय समय से ज्यादा-से-ज्यादा छह मिनट की देरी से पहुंचीं. हालांकि इस आंकड़े में ऐसे मामले शामिल नहीं हैं, जब काफी ज्यादा देर होने की वजह से ट्रेनें रद्द कर दी गईं.
गैर-लाभकारी संस्था कंज्यूमर चॉइस सेंटर जर्मनी ने 2023 में एक अध्ययन किया. इसके मुताबिक, यात्री सुविधा के हिसाब से यूरोप के 10 सबसे खराब रेलवे स्टेशनों की सूची तैयार की गई. इनमें छह स्टेशन जर्मनी के थे. इस अध्ययन के दौरान नेटवर्क कनेक्शन और ट्रेनों के देर से चलने जैसी समस्याओं का आकलन किया गया. इससे पता चला कि जर्मन रेल नेटवर्क, कार्यक्षमता और सेवा के मामले में अपने पड़ोसियों से काफी पीछे है.
जर्मनी के ट्रेन नेटवर्क में गड़बड़ी कहां हुई?
डीबी का नियंत्रण जर्मनी की केंद्र सरकार के हाथों में है, लेकिन यह निजी कंपनी की तरह काम करता है. इसका मतलब है कि यह कंपनी प्रतिस्पर्धी निविदाओं के जरिए प्राइवेट सब-कॉन्ट्रैक्टर को काम देती है और मुनाफा कमाने का प्रयास करती है. इसके बावजूद, कंपनी को सरकारी धन भी मिलता है और इसमें एकाधिकार जैसे लक्षण भी दिखते हैं.
यात्रियों के हित की बात करने वाले गैर-लाभकारी समूह 'प्रो बान' से जुड़े अर्थशास्त्री आंद्रेयास श्रोएडर ने डीडब्ल्यू को बताया कि जर्मनी की दिग्गज रेलवे कंपनी के सामने आने वाली चुनौतियों पर लोगों की राय राजनीतिक आधार पर अलग-अलग है. इसकी मुख्य वजह डीबी की सार्वजनिक और निजी, दोहरी संरचना है.
उन्होंने कहा, "वामपंथी झुकाव वाले आलोचकों का कहना है कि इन चुनौतियों की मुख्य वजह निजीकरण है. वे इसकी तुलना स्विट्जरलैंड जैसे देशों में सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों की कार्यप्रणाली से करते हैं. वहीं दूसरी ओर आर्थिक उदारवादी समूह के लोग यह तर्क दे सकते हैं कि इन चुनौतियों की मूल वजह प्रतिस्पर्धा में कमी है. वे इटली जैसे देशों का उदाहरण दे सकते हैं, जहां रेलवे के क्षेत्र में कम-से-कम दो बड़ी कंपनियां हैं और इसके कारण उनके प्रदर्शन में सुधार हुआ है.”
हालांकि, दोनों धड़ों के पर्यवेक्षकों का व्यापक तौर पर यह मानना है कि हाल के वर्षों में बेहतर तरीके से निवेश नहीं होने के कारण डीबी के सामने कई समस्याएं पैदा हो गई हैं. सबसे पहली कटौती 2004 में की गई थी, जब रेलवे लाइनों के निर्माण और उन्हें बेहतर बनाने के लिए डीबी को आवंटित किए जाने वाले वार्षिक बजट को चार अरब यूरो से कम करके डेढ़ अरब यूरो कर दिया गया था.
श्रोएडर बताते हैं, "हमने अपने रेलवे नेटवर्क की जगह कार उद्योग और राजमार्गों में निवेश किया. यह निवेश सफल भी रहा. जर्मनी का सड़क नेटवर्क काफी बेहतर हो गया, लेकिन अब इसी तरह का काम रेल नेटवर्क के लिए भी करने का समय आ चुका है.”
श्रमिकों की कमी और पुराना बुनियादी ढांचा
दशकों से कम निवेश होने की वजह से डीबी में कई सारी समस्याएं पैदा हो गई हैं. जनवरी में प्रकाशित एक रिपोर्ट में डीबी ने अपने मौजूदा रेल नेटवर्क को ‘पुराना' और ‘कमजोर' बताया. इस वजह से तेजी से बढ़ते यातायात के साथ तालमेल बैठाने में समस्या आ रही है.
समस्याएं सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. जापान, स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड जैसे बेहतर रेलवे नेटवर्क वाले देशों में 90 से 99 फीसदी ट्रेनें समय से अपने गंतव्य पर पहुंचती हैं. वहां तेज-रफ्तार ट्रेनों के लिए विशेष लाइन होती है. जबकि जर्मनी में इंटरसिटी एक्सप्रेस जैसी हाई-स्पीड ट्रेनें भी उसी ट्रैक पर दौड़ती हैं, जिस पर लोकल ट्रेन और मालगाड़ी चलती है. सिर्फ कुछ ही रूट इंटरसिटी एक्सप्रेस के लिए आरक्षित हैं.
हर दिन करीब 76 लाख से अधिक लोग डीबी से यात्रा करते हैं. यह करीब दो लाख लोगों को रोजगार देता है. इसलिए इसे जर्मनी के सबसे बड़े नियोक्ता के तौर पर भी देखा जाता है.
फ्रांस के रेल नेटवर्क एसएनसीएफ में करीब पौने तीन लाख कर्मचारी हैं और करीब एक करोड़ लोग हर दिन इससे यात्रा करते हैं. स्पेन की कंपनी रेनफे ऑपेराडोरा में करीब 40 हजार कर्मचारी हैं और हर दिन लगभग 14 लाख लोग इससे यात्रा करते हैं. इसी तरह स्विस फेडरल रेलवे एसबीबी में लगभग 34,000 कर्मचारी हैं, जो हर दिन करीब 12 लाख यात्रियों को संभालते हैं.
तकनीक का अभाव
यूरोप के अन्य रेल नेटवर्क में बड़े पैमाने पर तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है और वहां ऑटोमेशन तकनीक से काफी मदद मिल रही है. जबकि डीबी अभी भी तकनीक के इस्तेमाल में थोड़ा पिछड़ा हुआ है. साथ ही, यह लगातार कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है. ड्राइवरों या सिग्नल ऑपरेटरों की कमी के कारण ट्रेनें देर से चल रही हैं.
'प्रो बान' के अध्यक्ष लुकास इफ्लैंडर ने डीडब्ल्यू को बताया, "यूनियन अपने कर्मचारियों के लिए बेहतर कामकाजी माहौल पर जोर दे रहे हैं. उम्मीद है कि इससे लोग इस क्षेत्र में काम करने के लिए प्रोत्साहित होंगे और इस नौकरी में बने रहेंगे. उनकी मांगें जायज लगती हैं, भले ही उन मांगों को पूरा होने में कुछ समय लग सकता है.”
क्या डॉयचे बान पटरी पर लौटेगा?
जर्मनी ने पहले ही डीबी के बजट को बढ़ाने का प्रयास शुरू कर दिया है. हालांकि श्रोएडर को उम्मीद है कि रेलवे नेटवर्क के विस्तार, आधुनिकीकरण और रख-रखाव के लिए बड़े स्तर पर निर्माण कार्य की जरूरत होगी.
उन्होंने कहा, "इस प्रक्रिया से बेहतर नतीजे मिलने में कई वर्ष लग सकते हैं. इस दौरान कई अन्य तरह की रुकावटें पैदा हो सकती हैं. इसलिए हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि ट्रेनें कुछ समय तक अनियमित तरीके से और देर से चल सकती हैं.”
श्रोएडर ने यह भी बताया कि जर्मनी जैसे घनी आबादी वाले देश में रेलवे नेटवर्क का आधुनिकीकरण, कम घनी आबादी वाले देशों की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा. उन्होंने कहा, "स्पेन या स्विट्जरलैंड जैसे देशों में रेल नेटवर्क बढ़ाने के लिए काफी जगह है. जर्मनी में बड़ी समस्या यह है कि रेल नेटवर्क को बढ़ाने के लिए शहरों, कस्बों और सामाजिक या निजी जरूरतों के लिए आवंटित जगहों के बीच से नए मार्ग तैयार करने होंगे.”
इफ्लैंडर के अनुसार, डीबी में संगठनात्मक स्तर पर भी सुधार की जरूरत है. उन्होंने तर्क दिया कि डीबी को हर एक परियोजना की खुद से देखरेख करने वाली एक विशाल कंपनी के प्रबंधन मॉडल से दूर जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "उदाहरण के तौर पर हम पड़ोसी देश पोलैंड को देखें. वहां बुनियादी ढांचे के निर्माण से जुड़ी परियोजनाएं तेजी से पूरी हो रही हैं, क्योंकि ऐसा काम छोटी कंपनियों को दिया जाता है.”
इफ्लैंडर ने सरकारी देखरेख बढ़ाने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि आम तौर पर डीबी खुद से बड़े फैसले लेता रहा है. जर्मन सरकार को गुणवत्तापूर्ण सेवा और मजबूत बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देते हुए सख्त दिशा-निर्देश देने चाहिए. वह आगे कहते हैं, "मूल रूप से प्रबंधन यह तय कर सकता है कि अपने फंड को कहां निवेश करना है. फिलहाल उसका ध्यान मुनाफा कमाने पर है, जिससे कंपनी को फायदा हो रहा है, लेकिन यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ रही है.”