जर्मन चुनाव: कितने भरोसे के हैं ओपिनियन पोल
१३ सितम्बर २०२१जनमत सर्वेक्षण पर शोध कर रहे इंस्टीट्यूट फॉर टारगेट ग्रुप कम्युनिकेशन आइएफजेड के संस्थापक व प्रबंध निदेशक थॉमस विंड कहते हैं, "सर्वेक्षण अधिक गलत नहीं, बल्कि अधिक विस्तृत हो गए हैं." उनका मानना है कि वास्तविक सर्वेक्षण में कोई समस्या नहीं है, समस्या उनकी बढ़ती संख्या में है. विंड कहते हैं, "हर दिन एक नया आंकड़ा या नया सर्वे प्रकाशित होता है और उसका असर होता है."
अधिक सर्वे, कम प्रतिभागी
राजनीतिक विज्ञानी फ्रांक ब्रेटश्नाइडर ने होहेनहाइम यूनिवर्सिटी में जनमत अनुसंधान तथा चुनाव सर्वेक्षण पर काफी अध्ययन किया है. और वे इस कथन की पुष्टि करते हैं. उनका कहना है कि 1980 से जर्मनी में चुनाव संबंधी ओपिनियन पोल और उनकी रिपोर्टिंग, दोनों की ही संख्या में दस गुणा इजाफा हुआ है.
लेकिन दूसरी ओर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में भाग लेने को इच्छुक लोगों की तादाद लगातार कम होती जा रही है. एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन, 'चुनाव सर्वे संबंधी त्रुटियां समय व स्थान,' के अनुसार बीस साल पहले सर्वेक्षण में जहां पूछे गए लोगों में तीस फीसद सर्वे में भाग लेते थे वहीं अब यह दर दस प्रतिशत से भी कम हो गई है.
अनिर्णय की स्थिति
जहां तक चुनाव सर्वेक्षण की गुणवत्ता का सवाल है, वह सैंपल से तय होती है. उन लोगों से निपटना एक बड़ी समस्या होती है, जो अनिर्णय की स्थिति में होते हैं. विशेषज्ञ विंड कहते हैं, "2016 में ब्रेक्जिट पर हुए जनमत संग्रह या अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव संबंधी सर्वेक्षण से यह साफ है कि हम लोग कुछ टारगेट ग्रुप तक पहुंच नहीं बना पाते हैं." अनिर्णय की स्थिति वालों को डीडब्ल्यू द्वारा महीने में एक बार प्रकाशित एआरडी डॉयचलैंड ट्रेंड सहित कई सर्वे से अलग रखा गया है.
विंड कहते हैं, "अनिर्णय की स्थिति वाले हमारे लिए इसलिए समस्या पैदा करते हैं क्योंकि उनकी संख्या सर्वेक्षण में भाग लेने वालों बीस प्रतिशत या उससे अधिक होती है." राजनीति विज्ञानी ब्रेटश्नाइडर इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं, "उदाहरण के तौर पर अमेरिका में ट्रंप के कई समर्थकों ने सर्वेक्षण में भाग लेने से इसलिए इंकार कर दिया, क्योंकि उनकी नजर में वे फेक न्यूज मीडिया की तरह व्यवस्था का हिस्सा थे."
ब्रेटश्नाइडर कहते हैं, "चूंकि उन्होंने पिछले चुनाव में वोट नहीं किया था, इसलिए उनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन अब वे चुनावों में भाग ले रहे हैं, इससे वे चुनाव पूर्व सर्वेक्षण तथा चुनाव परिणाम के बीच विसंगति का कारण बनते हैं." यही बात जर्मनी में धुर दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी एएफडी और उनके समर्थकों पर लागू होती है.
मूल्यांकन व पारदर्शिता
सर्वे कैसे किया गया है, यह भी उसके परिणाम को प्रभावित कर सकता है. लैंडलाइन टेलीफोन के द्वारा किया जा रहा सर्वे सार्थक माना जाता है क्योंकि वे किसी क्षेत्र विशेष से होते हैं और जिनसे इंटरव्यू किया जाता है उनके पास बात करने के लिए ज्यादा समय होता है. वहीं दूसरी तरफ सेल फोन से सर्वे में यह पता नहीं होता है कि उस वक्त वह व्यक्ति कहां है और क्या उससे वाकई संपर्क किया जा सकता है.
ऑनलाइन सर्वेक्षण करना आसान है, लेकिन वह अक्सर गुमनाम होता है तथा उन लोगों के लिए है जो इंटरनेट पर ज्यादा देर तक सक्रिय रहते हैं. इसलिए सैंपल क्वालिटी को बेहतर बनाने के लिए सर्वेक्षण करने वाली संस्थाएं कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को ज्यादा तवज्जो देते हैं. जनमत सर्वेक्षण शोधकर्ता विंड कहते हैं, "ऐसे में चीजें रहस्यमयी होने लगती हैं." क्योंकि ये संस्थान अपनी कार्य पद्धति के बारे मं कुछ नहीं बताते.
चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षण के मूल्यांकन तथा विश्लेषण में त्रुटि का संदेह बना रहता है. ऐसा इसलिए होता है कि सांख्यिकीय तौर पर गणना में प्राय: दो से तीन प्रतिशत तक का विचलन होता है. उदाहरण के तौर पर 2.5 प्रतिशत के संभावित विचलन के साथ यदि कोई पार्टी सर्वे में 24 फीसद वोट प्राप्त करती है तो वास्तव में उसका वोट प्रतिशत महज 21.5 प्रतिशत हो सकता है.
कितने सटीक है जर्मन नतीजे
अनिश्चितता के तमाम कारकों के बावजूद जर्मनी में संघीय चुनावों के लिए सर्वेक्षण पिछले 20 वर्षों में बहुत सटीक रहे हैं. वेबसाइट वालरेष्ट.डीई तथा डावुम.डीई पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार पिछले दो दशकों में केवल दो बार विचलन की दर तीन प्रतिशत की सामान्य दर से अधिक हुई है. जर्मनी की डी साइट वेबसाइट द्वारा 2001 से चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पार्टियों के चुनाव परिणामों के पूर्वानुमान की औसत शुद्धता 1.74 प्रतिशत थी. पिछले दस सालों पर नजर डालें तो विचलन में औसतन 0.41 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई.
क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) तथा बवेरिया की उसकी सहोदर पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) को 2017 के संघीय चुनावों में सभी सर्वेक्षण संस्थानों ने बहुत बेहतर आंका था. डी साइट के डाटा पत्रकार क्रिश्चियान एंट को संदेह है कि विसंगति के आंकड़ों में वृद्धि एएफडी की सफलता और जर्मनी की पार्टियों में तेजी से आ रही टूट से संबंधित हो सकती है. अध्ययन से पता चलता है कि 1940, 1950,1960 व 1970 के बीच संभावित गल्ती की दर 2.1 प्रतिशत थी जबकि 2000 से यह दर दो प्रतिशत पर स्थिर है.
लेखकों के अनुसार "पार्टी जितनी बड़ी होगी, विचलन उतना ही ज्यादा होता है." सच ये है कि चुनाव सर्वेक्षण भले ही उससे अधिक सटीक हों, जितना लोग विश्वास करते हैं, लेकिन विसंगति अक्सर दो-तीन प्रतिशत से अधिक होती है. जैसा कि छह जून, 2021 को जर्मनी के सैक्सनी अनहाल्ट राज्य के चुनाव में हुआ. सर्वेक्षण में सीडीयू की स्पष्ट जीत का पूर्वानुमान नहीं लगाया गया था, बल्कि सीडीयू तथा एएफडी के बीच कांटे की टक्कर की बात कही गई थी. मीडिया में जनमत सर्वेक्षण की रिपोर्टिंग में शुद्धता की कमी सर्वेक्षणों और चुनाव परिणामों में विसंगति को और बढ़ा सकती है.