अधिकार के मामले में यूरोपीय बच्चे बड़ों से भी बड़े हैं
८ जुलाई २०२३बच्चों की शिकायत पर अधिकारियों के सामने मां बाप की पेशी यहां आये दिन की बात है. अनामिका के साथ भी यही हुआ. नार्डिक देशों में अच्छा-खासा वक़्त बिता चुकी अनामिका (बदला हुआ नाम) फिलहाल डेनमार्क में रह रही हैं. अनामिका ने बताया, "मेरी 4 साल की बेटी ने एक दिन अपने स्कूल में जाकर अपनी टीचर को बता दिया कि मेरे पति ने मुझ पर हाथ उठाया. उसकी बात को गंभीरता से लिया गया और हमें फैमिली काउन्सिलिंग के लिए भी बुला लिया गया."
उन्होंने बताया कि यह उनके लिए अलग अनुभव था. यहां बच्चों की शिकायत को बहुत गंभीरता से लिया जाता है और सुनिश्चित किया जाता है कि क्या वह एक सही माहौल में पल रहा है. उन्हें इससे प्रशासन और सोशल इंस्टीट्यूशन के मजबूत होने का भी अंदाजा हुआ. उन्हें कई बार बुलाया गया और उनके मसले के बारे में बात की गयी. उन्हें काउंसलिंग भी ऑफर की गई.
बच्चों को बताना जरूरी
बच्चों की परवरिश को लेकर हमेशा एक बहस होती रहती है. उनके हकों के लेकर पश्चिमी देशों में खासा नियम कानून है. यहां की स्कूलिंग में भी इसे लेकर एक अलग नजरिया है. बच्चों को उनके हकों को लेकर प्राइमरी स्कूल से ही जागरूक किया जाने लगता है. आमतौर पर बच्चों को डे-केयर में भेजा जाता है. जहां उन्हें शुरू से किताबों के जरिये बॉडी पार्ट्स से अवगत करवाया जाता है.
मां बाप का धर्म अलग हो तो बच्चों का नाम कैसे तय होता है
उन्हें बताया जाता है कि बच्चा कैसे जन्म लेता है, जिससे उनके लिए बहुत सी बातें नॉर्मल हो जाती हैं. इस लिए बाकायदा शब्दकोष है, जो सेक्स एजुकेशन देने में मदद करता है. यहां बच्चों को बताया जाता है कि कैसे महिला मां बनती है. उन्हें बताया जाता है कि उनके निजी अधिकार क्या हैं. पांचवीं क्लास में इंटरकोर्स से जुड़ी जानकारियां भी दे दी जाती हैं, ताकि वो इससे जुड़े सभी पहलुओं से अवगत रहें.
सुरक्षा के नियम और हिंसा की मनाही
डेनमार्क ने बच्चों से जुड़े वेलफेयर और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए खास तौर पर ध्यान दिया है. यहां जन्म से ही बच्चे माता-पिता की देखभाल और सुरक्षा के हकदार होते हैं. उनके साथ शारीरिक और मानसिक हिंसा पर प्रतिबंध है. इसके अलावा, 6 साल की उम्र में अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है. उम्र बढ़ने के साथ उन्हें स्टूडेंट काउंसिल, ऐज एप्रोप्रियेट मूवीज और डिसीजन मेकिंग में भाग लेने का अधिकार होता.
यहां का लीगल सिस्टम नाम के बदलाव बच्चों के मत को शामिल करता है. इस दौरान उन्हें परिवार से अलग डाक्यूमेंट्स और कानूनी सलाह भी देता है. यहां बच्चों को 15 साल की उम्र में हेल्थकेयर, फाइनेंस आदि से जुड़े और भी अधिक प्राप्त हो जाते हैं.
उम्र बढ़ने के साथ बढ़ते जाते हैं अधिकार
जर्मनी में भी मां बाप को बच्चों के पालन-पोषण के समय बहुत सी चीजों पर ध्यान देना होता है. इससे जुड़े अधिकार बच्चों को जन्म के साथ ही मिल जाते है. बच्चों को घर पर अकेले छोड़ना उनकी उम्र और समझदारी पर निर्भर करता है. सिनेमा देखने पर आयु प्रतिबंध लागू होते हैं, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कुछ फिल्म दिखाने के लिए वयस्कों की देखरेख की जरूरत होती है.
पब और नाइट क्लबों में आयु सीमा होती है, 16 वर्ष से कम उम्र के लोगों को एडल्ट कंपनी की जरूरत होती है. 16 से 18 वर्ष के किशोरों को सुपरविजन के साथ आधी रात तक घर से बाहर रहने की अनुमति होती है. 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों के लिए कुछ सीमाओं के साथ अल्कोहल पीने की अनुमति है. टैटू और पियर्सिंग के लिए मां बाप की अनुमति जरूरी होती है. हिंसा किसी भी रूप में अवैध है.
जर्मनी की लेया फिस्टेलमन पिछले 5 साल से बतौर प्राइमरी और सेकेंडरी लेवल टीचर काम कर रही हैं. फिलहाल, वह कोलोन में एक स्कूल में पढ़ाती हैं. फिस्टेलमान बताती हैं, "मैं प्राइमरी और सेकेंडरी लेवल के बच्चों को पढ़ाती हूं. हम स्कूलों में बच्चों को सेक्स एजुकेशन देते हैं , उन्हें बताते हैं कि उनकी अनुमति के बिना उन्हें कोई टच नहीं कर सकता है. यह उनका शरीर है, जिसपर उन्हें अधिकार है. हम उन्हें गुड टच और बैड टच के बारे में बताते हैं, उन्हें अपने शरीर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों से भी भी अवगत कराया जाता है."
फिल्टेलमन ने यह भी बताया कि बच्चों को स्टूडेंट असेंबली और और स्टूडेंट पार्लियामेंट जैसी एक्टिविटीज में भाग लेने को कहा जाता है. इस दौरान बच्चे अपने अधिकारों पर बात करते हैं, किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रखते हैं, वो बदलाव के नए आइडियाज देते हैं और सक्रियता से अपने प्रपोजल भी रखते हैं.
निजता का अधिकार
बच्चों की निजता यानी प्राइवेसी का भी मसला बहुत बड़ा है. जर्मनी में बच्चा मां बाप के साथ बिस्तर में नहीं सो सकता. आमतौर पर यहां बच्चे वाले परिवार को एक बेडरूम का घर किराये पर भी नहीं मिलता. बच्चे का अलग कमरा होना जरूरी है. इसके साथ ही बड़े होने पर बच्चे यह फैसला ले सकते हैं कि स्कूल में उनकी परीक्षा का नतीजा उनके मां बाप को दिखाया जाए या नहीं.
जर्मनी में स्कूल में बच्चों की शिकायत को गंभीरता से लिया जाता है. इस विषय में फिस्टेलमन कहती हैं, अगर किसी बच्चे ने स्कूल में टीचर को शोषण या किसी भी पारिवारिक समस्या के बारे में कहा तो उसे गंभीरता से लिया जाता है. इस दौरान बच्चे का टीचर सबसे पहले हेडमास्टर या प्रिंसिपल को सूचित करता है. जिसके बाद वह इसे आगे अथॉरिटीज को बताता है, जो फिर उस बच्चे के घर जाकर सब ठीक होने की बात को सुनिश्चित करते हैं.
उन्होंने कहा, इस तरह के केस ज्यादातर शहरों में देखने को मिलते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह इतना देखने को नहीं मिलता है. जर्मनी किड्स राइट इंडेक्स 2023 में पांचवें पायदान पर रहा. हालांकि देश में बड़े नीतिगत बदलाव नहीं हुए, लेकिन 2021 में अपने मूल कानून में बच्चों के अधिकारों को मान्यता देना और सरकार को जवाबदेह ठहराने में युवा जलवायु कार्यकर्ताओं की भागीदारी एक नया विकास है.